छप्पय छन्द:- गुमान प्रसाद साहू
।।हमर देश के हाल।।
हमर देश के हाल, देख तो होगे कइसन।
मनखे बदलै रंग, रोज गिरगिट के जइसन।
लड़त हवै जी रोज, खेत बर भाई भाई।
जात पात के आज, बाढ़गे हावय खाई।
रावण हा छेल्ला घुमै, आज जेल मा राम हे।
देखव उल्टा नाम के, मनखे मन के काम हे।।
।।छोड़व भेद।।
बनके रहव मितान,सबो ला अपने जानव।
करव कभू झन भेद, सबे ला एके मानव।
जात पात हा आय,नाम बस जिनगी भर के।
अमर बनालव नाम, दीन के सेवा करके।
रंग लहू के एक हे, रग मा सबके जान लव।
ऊँच नीच ला छोड़ दव,सबला एके मान लव।।
।।नशा पान।।
दारू गुटखा पान, हानिकारक बड़ हावय,
करय अपन नुकसान, जेन हा येला खावय।
आनी-बानी रोग, खाय ले येकर होथे,
परे नशा के जाल, जान कतको हे खोथे।।
किरिया खाके तुम सबो, नशा पान ला छोड़ दव।
आज नशा के जाल ला,जग ले सबझन तोड़ दव।
।।किसान।।
माटी हमर मितान, करम हा हरय किसानी।
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन।
भुइयाँ के भगवान,तभे जी हमन कहाथन।
भेद भाव जानन नही,सबो हमर बर एक हे।
काम हमन करथन उही,लगै जेन हा नेक हे।।
।।नारी।।
झन कर अतियाचार, मान के नारी अबला।
हरय शक्ति अवतार, दिखाये हावय सब ला।
नइहे अइसन काम, करय नइ जेला नारी।
नारी बिन हे जान, हमर जिनगी अँधियारी।
नर ले आघू आज हे,नारी जग मा
जान ले।
नारी ममता रूप अउ, बेटी लक्ष्मी मान ले।।
छन्दकार :- गुमान प्रसाद साहू ,
समोदा (महानदी),
जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़
।।हमर देश के हाल।।
हमर देश के हाल, देख तो होगे कइसन।
मनखे बदलै रंग, रोज गिरगिट के जइसन।
लड़त हवै जी रोज, खेत बर भाई भाई।
जात पात के आज, बाढ़गे हावय खाई।
रावण हा छेल्ला घुमै, आज जेल मा राम हे।
देखव उल्टा नाम के, मनखे मन के काम हे।।
।।छोड़व भेद।।
बनके रहव मितान,सबो ला अपने जानव।
करव कभू झन भेद, सबे ला एके मानव।
जात पात हा आय,नाम बस जिनगी भर के।
अमर बनालव नाम, दीन के सेवा करके।
रंग लहू के एक हे, रग मा सबके जान लव।
ऊँच नीच ला छोड़ दव,सबला एके मान लव।।
।।नशा पान।।
दारू गुटखा पान, हानिकारक बड़ हावय,
करय अपन नुकसान, जेन हा येला खावय।
आनी-बानी रोग, खाय ले येकर होथे,
परे नशा के जाल, जान कतको हे खोथे।।
किरिया खाके तुम सबो, नशा पान ला छोड़ दव।
आज नशा के जाल ला,जग ले सबझन तोड़ दव।
।।किसान।।
माटी हमर मितान, करम हा हरय किसानी।
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन।
भुइयाँ के भगवान,तभे जी हमन कहाथन।
भेद भाव जानन नही,सबो हमर बर एक हे।
काम हमन करथन उही,लगै जेन हा नेक हे।।
।।नारी।।
झन कर अतियाचार, मान के नारी अबला।
हरय शक्ति अवतार, दिखाये हावय सब ला।
नइहे अइसन काम, करय नइ जेला नारी।
नारी बिन हे जान, हमर जिनगी अँधियारी।
नर ले आघू आज हे,नारी जग मा
जान ले।
नारी ममता रूप अउ, बेटी लक्ष्मी मान ले।।
छन्दकार :- गुमान प्रसाद साहू ,
समोदा (महानदी),
जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़
बहुत सुन्दर उदीम गुरुदेव जी। छत्तीसगढ़ी साहित्य ला आगू बढ़ाय बर सुन्दर कदम
ReplyDeleteसादर आभार गुरूदेव 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteसुघ्घर रचना भाई।
ReplyDeleteबह सुग्घर रचना गुमान जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteबहुतेच सुघ्घर छप्पय
ReplyDeleteसुग्घर ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुग्घर।हार्दिक शुभकामनाएं
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