छप्पय छन्द - नीलम जायसवाल
(1) बड़े के आदर
कर गुरु ला परनाम, चरन मा शीश ल धर ले।
दाई-ददा ल पूज, अपन तँय नाम ल कर ले।।
अपने ले बड़ जेन, सभे ला आदर देबे।
मन ले दीही रोज, सुघर तँय आशिष लेबे।।
बड़का के आशीष ले, जिनगी अपन सुधार ले।
जग मा तँय हा नाम कर, अउ परलोक सँवार ले।।
(2) कन्या भ्रूण हत्या
बेटी जग मा लान, जनम धर तँय दे आवन।
झन कर ओखर नाश,कोख ला करथे पावन।।
भ्रूण मार के पाप, कमाबे तँय का पाबे।
पछताबे दिन-रात, नरक मा तँय हा जाबे।।
बेटी नइ हे भार जी, तइहा के ये बात हे।
बेटी-बेटा एक हे आज अलग हालत हे।।
(3) शहरी जिनगी
शहरी जिनगी काय, नमक के कोनो टीला।
चढ़ के बइठे लोग, फेर झन होवय गीला।।
फैक्ट्री मन ले रोज, जहर घुर साँस म जावय।
परदूषन के बोझ, दबे जिनगी हा हावय।।
पानी त नइ साफ हे, कचरा के अम्बार हे।
आनी-बानी के खवइ, बीमारी भरमार हे।।
(4) गँवई जिनगी
सरलग जिनगी गाँव, लोग हें आरुग सिधवा।
गरुवा घूमय खार, देख लव घुघवा-गिधवा।।
हरियर-हरियर खेत, फरत हे पेड़ म अमरित।
कोनो हो त्योहार, बनाथे हिरदय पबरित।।
अउ चारो मूड़ा शान्ति हे, चिटिक नहीं हल्ला हवय।
हाँ सुग्घर निरमल साँस हे, बहत हवा खुल्ला हवय।।
(5) फागुन
फागुन महिना आय, बजत हे ढोल नगाड़ा।
सबला देवँव आज, बधाई गाड़ा-गाड़ा।।
मैत्री के संदेश, देत हे देखव होली।
बैर-कपट ला बार, होलिका मा हमजोली।।
अउ मस्तक टीका ला लगा, गला लगा के मान दे।
कर अब ले पक्का दोस्ती, जुन्ना गोठ ल जान दे।।
(6) होरी
होरी के त्योहार, नगाड़ा ढम-ढम बाजे।
अलकरहा सन भेस, सबे लइका मन साजे।।
कोनो पहिरय टोप, मुखौटा कोनो लावै।
कोनो नकली केश, लगा साधू बन जावै।।
घोरे हे रँग लाल ला, सब रँग धरे गुलाल जी।
सब ला रँग ले दे भिँजो, मच गे हवय बवाल जी।।
छन्दकार - श्रीमती नीलम जायसवाल
पता - भिलाई, दुर्ग,छत्तीसगढ़।
बहुत सुग्घर रचना दीदी
ReplyDeleteधन्यवाद गुरुजी
Deleteबहुत सुग्घर रचना दीदी
ReplyDeleteहार्दिक बधाई दीदी।सुग्घर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुग्घर...हटके सृजन बहुत बधाई
ReplyDeleteसुग्घर रचना बधाई
ReplyDeleteअति सुन्दर दीदी जी बधाई हो
ReplyDeleteअलग-अलग विषय मा बड़ सुग्घर छंद बर बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
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Deleteवाह वाह बहुतेच सुग्घर छप्पय छंद बर हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबधाई हो बहिनी👍👌💐
ReplyDeleteगुरदेव के आभार। सादर प्रणाम। सबो साधक भाई बहिनी मन के बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना
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