छप्पय छन्द
छंदकार-सुधा शर्मा
(1) हमर बोली
छत्तीसगढ़ी जान ,हमर गा गुरतुर बोली।
महतारी के मान, मया हावे रंगोली।।
किसिम-किसिम के गोठ,मया के बोली-ठोली।
मया मयारू मीत,सजे हे सपना डोली।।
रंग रंग हाना हवय, गारी गीत ह संग के।
किस्सा कहिनी हा भरे,नाता सगा उमंग के।।
(2) जाड़
बरसत हावे जाड़ ,चलय जुड़ हवा खरेटा।
काँपत हावे हाड़,मूड़ मा बाँधव फेटा।।
लइका जुरे सियान,करय गा घाम अगोरा।
तापय आगी आँच,बइठ के ओरी ओरा।।
हावे धुँधरा देख तो, चारो कोती छाय गा।
बगरे हावे ओस के, मोती पान सजाय गा।।
(3) धान
पींयर पींयर धान, हवय गा झूमत बाली।
खेती करय किसान, होत हे तब हरियाली।।
जाँगर टोर कमाय,पाय तब सोना दाना।
माटी कहे सपूत,तोर बिन कहाँ ठिकाना।।
धरती राखय शान रे,भुइँया के भगवान रे।
काबर वो दुख पाय गा,करव ओखर सम्मान रे।।
(4) जुड़ हवा
चलत हवा जुड़ देख,छाय हे गजबे धुँधरा।
हाथ ठुठरथे गोड़,जीव अउ काँपय कुँदरा।।
ओढे ओन्हा तात, सबो झन तापय आगी।
रोज गरीब कमात,कहाँ वोहा बड़भागी।।
टपके पानी बूँदिया,मारे हवा किवाड़ गा।
सुरुज नरायन हे कहाँ,काँपत हावे हाड़ गा।।
(5) लोकतन्त्र
होगे हावे हार ,जीत हा ककरो हिस्सा।
राजनीति के खेल, इही हा हावय किस्सा।।
रुपिया पइसा फेंक,करँय गा बड़ बरबादी।
लोकतंत्र के नाव,हरय जनता आजादी।।
पाँच बरस बर आय गा,रंग ढंग देखाय गा।
जनता सबला भोगथे,एमन परब मनाय गा।।
(6) जाड़ा
काँपत हावे देह,सिहर गे हावे हाड़ा।
होवत भारी शीत,हाय रे गाड़ा-गाड़ा।।
उसरत नइए काम, घाम अउ आगी भाए।
पहिरे ओन्हा तात, साल अउ कमरा आए।।
रेजा कूली हे धरे, सिरमिट गारा हाथ मा।
पेट बिकाली घूमथे,जड़काला के साथ मा।।
(7) जाड़ा
अगहन महिना जाड़,हवा हर मारे सोटा।
खीला गड़थे हाड़,जुड़ हे लहर सपोटा।।
झमझम पानी धार,बहे कस सावन धारा।
मउसम बदले रूप, हाय ये बज गे बारा।।
ओन्हा भाये तात गा,हाथ जुड़ागे गोड़ गा।
बइठे गोरसी ताप गा,काम बूता ला छोड़ गा।।
(8) पुन्नी रात
आये पुन्नी रात, होय जग
आज अँजोरी।
अमरित के बरसात,करत हे ओरी ओरी।।
धरती लुगरा साज,गात हे
चाँद चकोरी।
नाचय मनवा रास, मया के बाँधे डोरी।।
पुन्नी के आभास रे,मन मा भरत उजास रे।
संगी सुरता आत हे,वृंदावन के रास रे।।
(9) बाप महतारी
रोवत हावे आज,बाप देखव महतारी।
लइका सबो भुलात,मया सुग्घर फुलवारी।।
काय बतावौं पीर,सुवारथ के सब मेला।
बुढ़त काल मा देख,छोड़ के जाँय अकेला।।
बोली करू सुनाय रे,रिबी रिबी तरसाय रे।
जादा लागय बोझ गा,वृद्धाश्रम पँहुचाय रे।।
(10) नवा जुग
देखव संगी आय, नवा जुग के ये बेरा।
मनखे अरझे जाय,सबो बेरा के फेरा।।
करें मया के गोठ,देख लव आनी बानी।
नशा करें सब पोठ,गिरे बहकत जिनगानी।
हवस भरे भरमार गा,कहिथें इही ल प्यार गा।
बिछलत उमर जवान के,जिनगी करे उजार गा।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम (छत्तीसगढ़)
शानदार सृजन सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद भाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी जी सादर नमन
ReplyDeleteसुग्घर छंद रचना दीदी जी
ReplyDeleteवाह्ह्ह वाह्ह्ह दीदी
ReplyDeleteसुग्घर छंद रचे हव दीदी जी आपमन...बहुत बधाई
ReplyDeleteसुग्घर सृजन आदरणीया ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteवाह वाह सुग्घर सृजन।
ReplyDeleteअब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण छप्पय छंद मा गजब सिरजाय हव दीदी बधाई
ReplyDeleteसुग्घर सृजन बर बधाई
ReplyDelete