छप्पय छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
(1) फूल सुमत के-
कोंन ख़िलावय फूल,सुमत के अँगना महकय।
गाँव गली अउ खोर,मया के पंछी चहकय।।
समता के नव भोर,बढ़ावय भाईचारा।
पुन्नी कस हर रात,मिटावय जग अँधियारा।।
ढूँढ़ आदमी नेक जी,द्वेष भाव ला फेंक जी।
लोभ मोह के सामने,झन माथा ला टेक जी।।
(2) मीठा बानी बोल जी-
राजा हो या रंक,सबो ला जाना परही।
हाय हाय कर जोर,चीज के झन तँय खरही।।
आये खाली हाथ,चले जाना हे सुन्ना।
झाँक अपन मन द्वार,लगे हे भारी घुन्ना।।
जग माया बाजार हे,सोंच समझ कर मोल जी।
जी ले जग मा प्रेम से,मीठा बानी बोल जी।।
(3) अंधभक्ति-
अंधभक्ति के राग,सुनावत चारो कोती।
पथरा बने महान,ददा तरसत हे ओती।।
दाई परे बिरान,देख लौ भूखा प्यासा।
अंधभक्त औलाद,फिरे रख पथरा आशा।।
राग अलापे छोड़ दौ,आँख मूँद नादान रे।
घट भीतर मा खोज लौ,असली जग भगवान रे।।
(4) करँव मँय काकर बिनती-
माथ नवाँ कर जोर,करँव मँय काकर बिनती।
देव बसे हें लाख,करँव मँय कइसे गिनती।।
काकर थामव हाथ,छोड़ दँव मँय हा काला।
बड़ा हवय भ्रमजाल,कहाँ हे गड़बड़ झाला।।
एक सधे तो सब सधे,छोड़व पूजा लाख ला।
अंधभक्ति के फेर मा,झन खोवव सच साख ला।।
(5) धर्म हे बारुद गोला-
सुन कलजुग के बात,बतावत हँव मँय तोला।
थाम हाथ विज्ञान,धर्म हे बारुद गोला।।
धर्म लड़ावत आज,सुनव आपस मा भाई।
मुस्लिम सिख अउ हिन्द,लड़ावत हे ईसाई।।
मानवता ला मान लौ,सब ले बड़का धर्म जी।
सत्य अहिंसा अउ दया,हो मानुष के कर्म जी।।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर,जिला- बिलासपुर (छ.ग.)
(1) फूल सुमत के-
कोंन ख़िलावय फूल,सुमत के अँगना महकय।
गाँव गली अउ खोर,मया के पंछी चहकय।।
समता के नव भोर,बढ़ावय भाईचारा।
पुन्नी कस हर रात,मिटावय जग अँधियारा।।
ढूँढ़ आदमी नेक जी,द्वेष भाव ला फेंक जी।
लोभ मोह के सामने,झन माथा ला टेक जी।।
(2) मीठा बानी बोल जी-
राजा हो या रंक,सबो ला जाना परही।
हाय हाय कर जोर,चीज के झन तँय खरही।।
आये खाली हाथ,चले जाना हे सुन्ना।
झाँक अपन मन द्वार,लगे हे भारी घुन्ना।।
जग माया बाजार हे,सोंच समझ कर मोल जी।
जी ले जग मा प्रेम से,मीठा बानी बोल जी।।
(3) अंधभक्ति-
अंधभक्ति के राग,सुनावत चारो कोती।
पथरा बने महान,ददा तरसत हे ओती।।
दाई परे बिरान,देख लौ भूखा प्यासा।
अंधभक्त औलाद,फिरे रख पथरा आशा।।
राग अलापे छोड़ दौ,आँख मूँद नादान रे।
घट भीतर मा खोज लौ,असली जग भगवान रे।।
(4) करँव मँय काकर बिनती-
माथ नवाँ कर जोर,करँव मँय काकर बिनती।
देव बसे हें लाख,करँव मँय कइसे गिनती।।
काकर थामव हाथ,छोड़ दँव मँय हा काला।
बड़ा हवय भ्रमजाल,कहाँ हे गड़बड़ झाला।।
एक सधे तो सब सधे,छोड़व पूजा लाख ला।
अंधभक्ति के फेर मा,झन खोवव सच साख ला।।
(5) धर्म हे बारुद गोला-
सुन कलजुग के बात,बतावत हँव मँय तोला।
थाम हाथ विज्ञान,धर्म हे बारुद गोला।।
धर्म लड़ावत आज,सुनव आपस मा भाई।
मुस्लिम सिख अउ हिन्द,लड़ावत हे ईसाई।।
मानवता ला मान लौ,सब ले बड़का धर्म जी।
सत्य अहिंसा अउ दया,हो मानुष के कर्म जी।।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर,जिला- बिलासपुर (छ.ग.)
शानदार सर
ReplyDeleteशानदार सर
ReplyDeleteअब्बड़ सुग्घर सृजन गुरुदेव सादर बधाई सादर प्रणाम ।
ReplyDeleteगुरुदेव जी सादर प्रणाम नायाब छप्पय छंद एकता, भाईचारा मानवता, देशप्रेम अउ विज्ञान के संदेश देवत। अंधविश्वास ला छोड़े,बर आप के आहवान बहुत अच्छा भाव लिये सृजन बहुतेच बधाई
ReplyDeleteहार्दिक बधाई सर।सुग्घर छप्पय छंद
ReplyDeleteबेहतरीन सरजी, बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर छप्पय छंद।हार्दिक बधाई।
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