एक दीया बार
नइ रहिस हे पाप कोनो नइ रहिस हे श्राप।
पर रहिस आजा बबा सिरतो अँगूठा छाप।
तोर गुरु-आशीष अक्षर-ज्ञान के उपहार।
पाठशाला म घलो तँय एक दीया बार।
आज सुख मा हे ग भैया तोर घर परिवार।
मान धन हे पद प्रतिष्ठा हे खुशी उजियार।
आज हे जनतंत्र अवसर एक सम अधिकार।
देश के कानून बर तँय एक दीया बार।
भेद भ्रम के जंक जाला छाय होही झार।
साल भर अच्छा बुरा का कर्म हे निरवार?
मन बचन हे कर्म आदत आचरण व्यवहार।
तोर मन अंतस घलो मा एक दीया बार।
मौसमी फल साग-भाजी दाल-रोटी भात।
खात हस तँय पेट भर के रोज ताते-तात।
पालथे सगरो जगत ला खेत पालनहार।
चल सखा खेती घलो बर एक दीया बार।
रोज जग के जीव नेमत देत हे परकाश।
एक दिन अड़चन घलो मा लै नही अवकाश।
भेद भ्रम "मँय" "मोर" नइहे देख ले संसार।
सीख देवइया सुरुज बर एक दीया बार।
मेहनत मा थक जथे जब मूड़ माथा पाँव।
देत हे आराम खातिर ठाँव छानी छाँव।
जे पता मा तोर वोटर कार्ड अउ आधार।
द्वार मा कुरिया घलो के एक दीया बार।
तोर भर बर घोर देइस जेन हा अँधियार।
दुख धराइस जेन तोला छीन के अधिकार।
ओ परानी के चतुर्री जान चिन्ह धिक्कार।
आखरी मा ओखरो बर एक दीया बार।
छन्दकार - श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
ग्राम - गोरखपुर, जिला - कबीरधाम, छत्तीसगढ़
उत्कृष्ठ रचना सर
ReplyDeleteएक दीया बार बहुत सुन्दर सर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर
Deleteवाहह बहुत जोर दार रोशनी वाले दीया ये रचना लिख के माध्पम ले आप मन बारे हव येखर ज्योति कभू नइ बुझाय न तेल सिराय
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर
Deleteबहुत सुघ्घर सृजन भाई सुखदेव एक दीया बार रूपमाला छंद बहुत बढ़ियाँ बधाई हो भाई जी
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन बर बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद 🙏
Deleteबड़ सुग्घर रचना
ReplyDeleteअड़बड़ सुग्ग्घर रचना सर जी
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