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Wednesday, October 30, 2019

छप्पय छंद-श्रीसुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'



छप्पय  छंद-श्रीसुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

प्रणम्य गुरुवर

अरुण निगम हे नाँव,मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य,मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव,कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य,उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर,बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले,होत छंद के साधना।

जल संरक्षण

बोरिंग हो गय बंद,बूँद भर जल नइ आवय।
अब मनखे नलकूप,खना के प्यास बुतावय।
चार पाँच सौ फीट,धड़ाधड़ पम्प उतरगे।
संकट हर दू चार कदम दुरिहागे टरगे।
जल संरक्षण के पवित,कारज कोन सिधोय जी।
हिजगा-पारी देख के,कलम धरे कवि रोय जी।

ममता

माँ के मया दुलार,खाद माटी अउ पानी।
असतित पावय जीव,फरै फूलै जिनगानी।
ठुमुक उचावय पाँव,धरे अँगरी माई के।
बचपन फोरे कण्ठ,पाय ममता दाई के।
मातु असीस प्रभाव हे,बैतरणी के पार जी।
महतारी ममता बिना,सुना सुना संसार जी।

झन जा दाई

घाम छाँव बरसात,अभी मै जाने नइ हँव।
जिनगानी के रंग,कतिक पहिचाने नइ हँव।
अतका जल्दी हाँथ,छोड़ के झन जा दाई।
घर बन जिनगी मोर,मात जाही करलाई।
कहि देबे भगवान ला,तोर बने पहिचान हे।
नइ आवँव बैकुंठ मँय,पूत अभी नादान हे।

नव पीढ़ी के हाथ मा

मोला नइ तो भाय,काखरो गोठ उखेनी।
जेखर कारण देश राज मा झगरा ठेनी।
बुता काम ला छोड़,भटकथे माथा जाँगर।
दया मया विश्वास नाश कर दे थे पाँघर।
घर परिवार समाज ला,रद्दा नेक दिखाव जी।
नव पीढ़ी के हाथ मा,संविधान पकड़ाव जी।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

18 comments:

  1. सुग्घर भाव भरे छप्पय छंद सृजन बर अहिलेश्वर जी ला बहुतेच शुभकामना हे।

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  2. अलग-अलग विषय म शानदार अउ धारदार रचना के अब्बड़ अकन बधाई हे सर।।

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  3. सारगर्भित छप्पय छंद,अहिलेश्वर जी बहुत बहुत बधाई।।

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  4. वाह्ह वाह वाह्ह भइया बहुते सुग्घर भावपूर्ण रचना सिजाय हव बधाई भइया

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  5. वाह अहिलेश्वर जी, बहुत सुग्घर भावपूर्ण छप्पय छंद रचे हव आपमन बहुत बधाई स्वीकार करव

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    1. सादर धन्यवाद श्लेष जी

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  6. बहुत शानदार रचना सर

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  7. बहुत बढिय़ा छप्पय छंद भाव व अर्थ में प्रधानता लिए ,सार विषय मन मा संदेश देवत, आनुभविक ,सीख धरे हमन बर रद्दा देखावत हवय रचना के बहुते बधाईसर ।

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  8. बहूतेच बढ़िया हे आदरणीय। विषय घलो बढ़िया लिए हो आप मन। आप ला बहुत बहुत बधाई।

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