अमृत ध्वनि छंद -- महेन्द्र देवांगन माटी
1 सावन
आइस सावन झूम के, दिखय घटा घनघोर ।
बिजुरी चमके जोर से, नाचय वन मा मोर ।।
नाचय वन मा, मोर पंख ला, अपन उठाके ।
देखय सबझन, आँखी फारे, हँसय लुकाके ।।
चिरई चिरगुन, ताली पीटे, दादुर गाइस ।
सबके मन मा, खुशी समागे, सावन आइस ।।
2 किसान
नाँगर बइला फाँद के, जोंतत खेत किसान ।
खातू कचरा डार के, बोंवत हावय धान ।।
बोंवत हावय, धान पान ला, एसो होही ।
पउर साल के, रोना अब तो, नइ तो रोही ।।
करथे सबझन, काम बरोबर, चलथे जाँगर ।
कोड़ा देवय, दवई डारय, फाँदय नाँगर ।।
3 बरसा
बरसत बादर जोर से, भीगत लइका लोग ।
सबझन ला अब होत हे, आनी बानी रोग ।।
आनी बानी, रोग रोज के, होवत हावय ।
डाक्टर आवय, दवई देवय, सुजी लगावय ।।
खपरा फूटय, छानही चुहय, भीगत चादर ।
बच के राहव, झन भीगव जी, बरसत बादर ।।
छंदकार
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
8602407353
बढ़िया संग्रह
ReplyDeleteबधाई हो माटी भैया💐💐👌👍
ReplyDeleteसावन ,किसान,बरसा के सुग्घर अमृतध्वनि छंद
बहुत सुन्दर गुरुदेव जी सादर नमन
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह वाह ।गजब सुग्घर ।हार्दिक बधाई ।
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