विष्णुपद छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
देख ददा दाई ला संगी, काबर रोवत हे।
बेटा चारो धाम घूम के, पइसा खोवत हे।।
पथरा के भगवान देख के, बड़ खुश होवत हे।
दाई ददा ल बड़ दुख देके, पाप ल बोवत हे।।
बाप खाय बर लावातापा, घर मा होवत हे।
रँग रँग के खाना लइका बर, रोटी पोवत हे।।
अपन पिता माँ ला धमकावै, चिल्ला झन कहिके।
लपर लपर लइका ले बोलय, अलग जघा रहिके।।
जेन बाप रद्दा देखाइस, घर बइठावत हे।
दाई बोले बर सिखलाइस, मौन करावत हे।।
डउकी लइका संँग खुद घूमय, माँ बा ल धाँध के।
आनी बानी खाथे पीथे, मटन ला राँध के।।
"जलक्षत्री" परिवार एक सम, सबझन राहव जी।
सेवा कर लौ मात पिता के, सब सुख पाहव जी।।
छंदकार -अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम -तुलसी (तिल्दा नेवरा)
जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
बहुत सुग्घर धीवर जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद गुरु जी
Deleteबहुत सुंदर क्या बात है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भैया जी
ReplyDeleteगुरुदेव अउ जितेन्द्र सर ला बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteजेकर सुग्घर प्रयास ले मोर रचना ह छंद खजाना म स्थान बनइस
गुरुदेव अउ जितेन्द्र सर ला बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteजेकर सुग्घर प्रयास ले मोर रचना ह छंद खजाना म स्थान बनइस
सुग्घर सृजन , बधाई
ReplyDeleteआदरणीय बघेल गुरु जी सादर प्रणाम
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
गजब सुग्घर सर
ReplyDeleteआदरणीय मानिकपुरी सर जी सादर प्रणाम
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
वाह्ह वाह जलक्षत्री भइया सिरतोन करारा व्यंग्य भरे रचना भइया बधाई गो 🙏🙏
ReplyDeleteआदरणीय मोहन भाई सादर प्रणाम
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
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ReplyDeleteआदरणीय श्री हीरा गुरु जी सादर प्रणाम
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना जलक्षत्री भैया
ReplyDeleteआदरणीय जगदीश साहू हीरा गुरु जी सादर प्रणाम
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय जगदीश साहू हीरा गुरु जी सादर प्रणाम
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय ज्ञानु गुरु जी सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद