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Friday, February 28, 2020

विष्णुपद छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"



विष्णुपद छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

देख ददा दाई ला संगी, काबर रोवत हे।
बेटा चारो धाम घूम के, पइसा खोवत हे।।
पथरा के भगवान देख के, बड़ खुश होवत हे।
दाई ददा ल बड़ दुख देके, पाप ल  बोवत हे।।
बाप खाय बर लावातापा, घर मा होवत हे।
रँग रँग के खाना लइका बर, रोटी पोवत हे।।
अपन पिता माँ ला धमकावै, चिल्ला झन कहिके।
लपर लपर लइका ले बोलय, अलग जघा रहिके।।
जेन बाप रद्दा देखाइस, घर बइठावत हे।
दाई बोले बर सिखलाइस, मौन करावत हे।।
डउकी लइका संँग खुद घूमय, माँ बा ल धाँध के।
आनी बानी खाथे पीथे, मटन ला राँध के।।
"जलक्षत्री" परिवार एक सम, सबझन राहव जी।
सेवा कर लौ मात पिता के, सब सुख पाहव जी।।


छंदकार -अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम -तुलसी (तिल्दा नेवरा)
जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)

18 comments:

  1. बहुत सुग्घर धीवर जी

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  2. बहुत सुंदर क्या बात है

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद भैया जी

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  4. गुरुदेव अउ जितेन्द्र सर ला बहुत बहुत धन्यवाद
    जेकर सुग्घर प्रयास ले मोर रचना ह छंद खजाना म स्थान बनइस

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  5. गुरुदेव अउ जितेन्द्र सर ला बहुत बहुत धन्यवाद
    जेकर सुग्घर प्रयास ले मोर रचना ह छंद खजाना म स्थान बनइस

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  6. Replies
    1. आदरणीय बघेल गुरु जी सादर प्रणाम
      बहुत बहुत धन्यवाद

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  7. Replies
    1. आदरणीय मानिकपुरी सर जी सादर प्रणाम
      बहुत बहुत धन्यवाद

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  8. वाह्ह वाह जलक्षत्री भइया सिरतोन करारा व्यंग्य भरे रचना भइया बधाई गो 🙏🙏

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    1. आदरणीय मोहन भाई सादर प्रणाम
      बहुत बहुत धन्यवाद

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  9. Replies
    1. आदरणीय श्री हीरा गुरु जी सादर प्रणाम
      बहुत बहुत धन्यवाद

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  10. बहुत सुंदर रचना जलक्षत्री भैया

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    1. आदरणीय जगदीश साहू हीरा गुरु जी सादर प्रणाम
      बहुत बहुत धन्यवाद

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    2. आदरणीय जगदीश साहू हीरा गुरु जी सादर प्रणाम
      बहुत बहुत धन्यवाद

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  11. आदरणीय ज्ञानु गुरु जी सादर प्रणाम
    बहुत बहुत धन्यवाद

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