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Saturday, February 1, 2020

सार छंद - श्लेष चन्द्राकर


सार छंद - श्लेष चन्द्राकर

विषय - रोजगार

रोजगार मिलना मुसकुल हे, नव पीढ़ी ला भइया।
इहाँ ठेलहा घूमत रहिथें, कतको पढ़े लिखइया।।

डिगरी धर के बइठे रहिथें, कहाँ नौकरी पाथें।
टूट जथे जब उनकर सपना, काम ठियाँ मा जाथें।।

उनकर सुनवाई होथे गा, जेमन पइसा ढिलथें।
इहाँ सिफारिश वाला मन ला, आज नौकरी मिलथें।।

रोजगार गा मिले सबो ला, ये उदीम कब होथे।
खुद सन ये अन्याव देख के, नव पीढ़ी हा रोथे।।

सबो हाथ ला काम मिले अब, अइसे होना चाही।
बइठे हन उम्मीद लगा के, नवा बिहिनिया आही।।

विषय - जनसंख्या

जनसंख्या बड़ बाढ़त हावय, कमती हे संसाधन।
अलकरहा उपयोग करत हे, बिन सोचे मनखेमन।।

बेटा के चाहत मा मनखे, जब परिवार बढ़ाथे।
बाढ़ जथे जब घर के खर्चा, तब अब्बड़ पछताथे।।

बेटी ला बेटा कस मानयँ, झन परिवार बढ़ावयँ।
पढ़ा लिखा के सुग्घर उनकर, जिनगी घला बनावयँ।।

कहाँ मिलत हे रोजगार गा, जनसंख्या के सेती।
बेचावत घर-द्वार सबो के, कम होगे हे खेती।।

काबू मा रइही जनसंख्या, जाग जही तब सबझन।
अउ अपनाही मनखे मन हा, जब परिवार नियोजन।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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