सार छंद--सुधा शर्मा
1-
जघा जघा मा मिलथे संगी,
देखव अब तो दारू।
भठ्ठी खुलगे पीयत बइहा,
माते नशा म कारू।
2-
गारी देवत फोर फोर के,
लाज शरम ला छोड़े।
मारा पीटी संग सुवारी,
मूड़ी कान ल फोड़े।
3-
लइका इस्कुल जावत हावें
लादे पीठ म बोझा।
कोंवर लइका उमर बँधाये,
किसिम किसिम के जोझा।
4-
मूड़ी बड़का पागा होगे
बेरा कइसन आगे।
धरे नवा रद्दा ला देखव,
सपना पीछू भागे।
5-
धरती मात गुहार लगावै,
बाढ़त हावे पीरा।
मनखे करनी बिगरत हावे,
गुण मा परगे कीरा।
6-
धुंआ अगास पीयत आकुल
बिगड़े धरती काया।
देखत मनखे अपन सुवारथ,
काटे रुखवा छाया।
7-
जंगल झाड़ी उजरत हावें,
नँदिया तरिया रोवत।
पथरा परगे बुद्धि म सबके,
अपने सुख ला खोवत।
8-
रंग रंग के होत बिमारी,
होय जहर कस पानी।
भरत अन्न पानी मा दवई,
बिपदा मा जिनगानी।
9-
झिल्ली गा झन बउरव कोनो,
गइया मन सब खाथें।
मूक होय गउ माता संगी,
अपने मौत बलाथें।
10-
धरती दाई के कोरा मा,
झिल्ली गल नइ पावय।
करे अन्न धन के नुकसानी,
परिया खेत बनावय।
छंद कारा--
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
1-
जघा जघा मा मिलथे संगी,
देखव अब तो दारू।
भठ्ठी खुलगे पीयत बइहा,
माते नशा म कारू।
2-
गारी देवत फोर फोर के,
लाज शरम ला छोड़े।
मारा पीटी संग सुवारी,
मूड़ी कान ल फोड़े।
3-
लइका इस्कुल जावत हावें
लादे पीठ म बोझा।
कोंवर लइका उमर बँधाये,
किसिम किसिम के जोझा।
4-
मूड़ी बड़का पागा होगे
बेरा कइसन आगे।
धरे नवा रद्दा ला देखव,
सपना पीछू भागे।
5-
धरती मात गुहार लगावै,
बाढ़त हावे पीरा।
मनखे करनी बिगरत हावे,
गुण मा परगे कीरा।
6-
धुंआ अगास पीयत आकुल
बिगड़े धरती काया।
देखत मनखे अपन सुवारथ,
काटे रुखवा छाया।
7-
जंगल झाड़ी उजरत हावें,
नँदिया तरिया रोवत।
पथरा परगे बुद्धि म सबके,
अपने सुख ला खोवत।
8-
रंग रंग के होत बिमारी,
होय जहर कस पानी।
भरत अन्न पानी मा दवई,
बिपदा मा जिनगानी।
9-
झिल्ली गा झन बउरव कोनो,
गइया मन सब खाथें।
मूक होय गउ माता संगी,
अपने मौत बलाथें।
10-
धरती दाई के कोरा मा,
झिल्ली गल नइ पावय।
करे अन्न धन के नुकसानी,
परिया खेत बनावय।
छंद कारा--
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
वाह वाह बहुत खूब, ज्वलंत मुद्दा मन ला विषय बनाके सुग्घर सार छंद तैयार करे बर बहुत बधाई दीदी
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
बहुत बहुत धन्यवाद भाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार छंद दीदी बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर नशा के विरुद्ध आवाज उठावत रचना दीदी जी
ReplyDeleteसुग्घर लिखे हव ,3रा ह नशा ले अलग हे। ये जमत नइ हे।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर।हार्दिक बधाई
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