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Saturday, February 1, 2020

सार छंद-संतोष कुमार साहू



सार छंद-संतोष कुमार साहू

अगर रखे संतोष हृदय मा,शाँति पाय वो भारी।
ये उपाय हे सुख के भइया,समझय नर अउ नारी।।

जतके इच्छा पाले मन मा,बढ़े ओतके जादा।
एक चाह हा पूरा होवय ,दूसर होय इरादा।।

सबो रोग के एक दवा ये,सुन लव बहिनी भइया।
जेन तीर संतोष हवय तब,ओकर सुखी रवइया।।

घर घर मा सब रहे एकता,हरदम करे तरक्की।
अपना ले संतोष सबो झन,बात हवय ये पक्की।।

जेकर कर संतोष बसे हे,रथे सदा वो तगड़ा।
छोटे छोटे बात बात मा,होय नही वो झगड़ा।।

दूर करे संतोष सबो के,लोभ मोह मानव के।
कभू बनन नइ दे आदत ला,जे आदत दानव के।।

अगर सदा संतोष हवय तब,लूट खसोट ह भागे।
कखरो भी दिल ला दुखाय के,इच्छा हा नइ जागे।।

दिल मा नित संतोष रथे तब,दया धरम हा आथे।
अहंकार अउ कपट भाव ला,हरदम दूर भगाथे।।

सुग्घर हे संतोषी गुण हा,खाय बाँट के खाना।
सबके हित बर सदा सोचना,आदत नेक बनाना।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
रसेला, जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़

2 comments:

  1. सुग्घर रचना।
    जेन रखे संतोष हृदय मा,शांति पाय ओ भारी।
    ये उपाय हे सुख के भइया, समझव सब नर नारी।

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