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Friday, February 21, 2020

महाशिवरात्रि विशेषांक-छंद के छ

महाशिवरात्रि विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति

सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया
माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।
नीला  रचे  कंठ  नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।
काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।
लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा
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घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया

अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।
बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।
बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,
भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।
ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,
भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।

भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,
भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।
मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,
कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।
कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,
जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।
देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,
अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।

काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,
पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।
कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,
नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।
घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,
रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।
हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,
देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।

गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,
लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।
बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,
बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।
देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,
भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।
आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,
रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।

फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,
रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।
करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,
कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।
पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,
सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।
बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,
माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।

बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,
तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।
भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,
हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।
राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,
अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।
भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,
पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको, कोरबा
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कुकुभ छंद -खैरझिटिया

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।

मन मा भरे जहर ले जादा,कोन भला अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला,का कर  पाबे तैं लीला।
सात समुंदर घलो म अतका, जहर भरे नइ तो होही।
देख झाँक के गत मनखे के,फफक फफक अन्तस रोही।
बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, सारी  ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा

धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।
डरे  राक्षसी  मनखे  मनहा,कर  तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।
रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला ,सम्मारी  तीजा  बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।
दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे,आके  तैं सी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

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सार छंद - खैरझिटिया

डोल  डोल  के   डारा  पाना ,भोला  के  गुण   गाथे।
गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे।

सोमवार के दिन सावन मा,फूल पान सब खोजे।
मंदिर  मा भगतन  जुरियाथे,संझा  बिहना रोजे।

लाली दसमत स्वेत फूड़हर,केसरिया ता कोनो।
दूबी  चाँउर  छीत छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो।

बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर।
नाचत  गावत  मंदिर  जाके,घुमथे आँवर भाँवर।

बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों।
माथ  नवाबों  फूल  चढ़ाबों ,मन चाही  फल पाबों।

लोटा  लोटा  दूध  चढ़ाबों ,लोटा  लोटा  पानी।
भोले बाबा हा सँवारही,सबझन के जिनगानी।

साँप  गला  मा  नाँचे  भोला, गाँजा   धतुरा  भाये।
भक्तन बनके हवौं शरण मा,कभ्भू दुख झन आये।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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दुर्मिल सवैया :- जगदीश "हीरा" साहू

*शिव महिमा*

खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।
घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।
बड़ भाग हवै कहिथे गुनके,  कुछ औगुन देख जनावत हे।
मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।

करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।
झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।
सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।
खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।

तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।
सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।
शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।
शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।

मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।
बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।
बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।
सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।

अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।
जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।
जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।
तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।

लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।
जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।
तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।
शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।

सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल  गीत सुनावत हे।
सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।
शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।
सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।

जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।
जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।
मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।
कर जोर खड़े जगदीश इँहा,  शिव पारवती जस गावत हे।।8।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़

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 *सरसी छंद~ शिवजी के बरतिया वर्णन*
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फागुन चउदस शुभ तिथि बेरा, सब झन हें सकलाय।
शिव बरात मा जुरमिल जाबो, संगी सबो सधाय।1।

बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे छतरंग।2।

कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।3।

रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।
नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।4।

खड़भुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाय।
चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी हा छरियाय।5।

जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाय।
जोग जोगनी जोगी जोंही,  बने बराती जाय।6।

भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाय।
भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराय।7।

भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत प्रेत भरमार।
भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।8।

मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाय।
चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाय।9।

आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा 'अमित' हियाव।10।

*कन्हैया साहू "अमित"*
शिक्षक~भाटापारा छ.ग.
9200252055
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(मनहरण घनाक्षरी)-रामकुमार चन्द्रवंसी
    चलो शिव के दुवारी

सुनो सब नर-नारी,साजलौ सुग्घर थारी,
जाबो शिव के दुवारी,लगे दरबार हे।
नरियर दीया बाती,धर फूल बेल पाती,
करत हे जगमग,सजे शिव द्वार हे।
दूध धतूरा चढ़ाबो,चलो शिव ल मनाबो,
लगावत शिव जी के भक्त जयकार हे।
हावे अवघड़ दानी,भोलेनाथ वरदानी,
द्वार आये भगत के करत उद्धार हे।।

भोले के दरस पाबो,चलो शिव द्वार जाबो,
जाके माथ ल नवाबो,आगे शिवरात गा।
भक्त मन गावत हे, ढोलक बजावत हे,
निकलत हावे संगी शिव के बरात गा।
भोले हे दयालु बड़,कहलाथे अवघड़,
भगत के झोली म हे खुशी बरसात गा।
शोभा बड़ हे नियारी,लोग सब आरी-पारी,
करके दरस हावे भाग सँहरात गा।।

राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी(छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
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चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज

जय  हो  भोला  मरघट   वासी।
शिव शम्भू तँय हस अविनासी।।
भूत    नाथ    कैलाश   बिराजे।
मृग  छाला  मा  चोला   साजे।।

नन्दी    बइला    तोर    सवारी।
भुतहा  मन  के तँय  सँगवारी।।
पारबती     के    प्रान    पियारे।
धरमी   छोड़   अधरमी   मारे।।

जय   हो    बाबा   औघड़दानी।
जटा    बिराजे    गंगा    रानी।।
राख   भभूती   तन  मा   धारे।।
गर मा  बिखहर   सांप  पधारे।।

पापी    भस्मासुर    ला     मारे।
अपन  लोक  मा  ओला   तारे।।
पारबती    के    लाज    बचाए।
ऋषि मुनि  योगी  गुन ला गाए।।

भांग    धतूरा    मन   ला   भाये।
सिया  राम   के  ध्यान   लगाये।।
बइठे     परबत  मा      कैलाशी।
अंतर्यामी        हे     अविनासी।।

महाकाल    हे    डमरू     वाला।
जय  शिव  शंकर  भोला भाला।।
मंदिर     तोर      दुवारी    आवौं।
मनवांछित  फल  ला मँय पावौं।।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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चौपाई छंद - श्रीमती आशा आजाद

जय हो हे भोला भंडारी।तँय ता सबके पालन हारी।
बाढ़े अत्याचार मिटादे।नारी के तँय मान बचादे।।

सरग लोक मा बइठे भोला।पाप म जलगे नारी चोला।
अंधकार ले नोनी रोवै।मान अपन ओ निसदिन खोवै।।

रिश्ता नाता सबो भुलागे।मानुष तन ये आज रुलागे।
अपन कोख मा राखै नारी।समझय नइ गा अतियाचारी।।

जगा जगा हे छुपे लुटेरा।नारी राखै कहाँ बसेरा।
अवतारी बनके तँय आजा।नारी के अब लाज बचाजा।।

कोन डहर अब मान बचावै।कोन जगा गोहार लगावै।
न्याय कहाँ अब मिलही बोलौ।तीसर आँखी अब ता खोलौ।।

तँय ता चुप्पे देखत ठाढ़े।ये भुइयाँ मा पापी बाढ़े।
कबतक तँय पूजा करवाबे।पापी ला कब मार गिराबे।।

भोले तँय अब डमरु बजादे।आज मान के दीप जलादे।
सुख ले राहय जम्मो नारी।सुख के तही हवस अधिकारी।।

आशा बेटी सुमिरय तोला।कलजुग मा तँय आजा भोला।
प्रेम सम्मान सुमता लादे।ये भुइयाँ मा प्रेम बढ़ादे।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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दोहा छंद-बृजलाल दावना

भोले शंकर शिव धरे ,तिरछुल डमरू हाथ ।।
गल मा माला साँप के,चंदा चमके माथ।।

बेलपात दूबी दही ,चलो चढा़बो आज।
अवघड़ भोले नाथ हा ,रखही तभ्भे लाज ।।

धोवा चांउर ला सखी ,मनखे जेन चढा़य ।
हो जावै भव पार वो,भोला ले वर पाय।।

महाकाल ये जगत मा ,महादेव कहलाय।।
भजन करव शिव नाम के,भोला पार लगाय ।

राख ल चुपरे अंग मा ,भेष अजीब  बनाय ।
बइहा कस भोला दिखे,जटा जूट छरियाय ।।

नीलकंठ शंकर हरे ,सांप गला लपटाय ।
भूत प्रेत नाचै जिहां, शंकर धुनी रमाय ।।

बृजलाल दावना
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विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय- महाशिवराती

परब महाशिवराती के दिन, बिगड़े काम बने।
चारो कोती महा परब ये, सुग्घर घात मने।।

भोलेबाबा के महिमा ले, ये संसार चले।
मंत्र महामृत्युंजय जप लव, संकट काल टले।।

महाकाल के भक्ततन मन बर, दिन ये खास हरे।
नाम जपे ले सच्चा मन ले, शिव डर दूर करे।।

बने महाशिवराती के दिन, पुन असनान करो।
बेल पान अउ दूध चढ़ा के, शिव के ध्यान धरो।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
 महासमुन्द (छत्तीसग

7 comments:

  1. बड़ सुग्घर संकलन
    ॐ नमः शिवाय

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    1. घात सुग्घ२ २चना लेखन के बधाई

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  2. शानदार������������रचना ज्म्मो झन रचनाकार मन ल बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

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  3. बहुत सुग्घर संग्रह

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  4. आप जम्मो छंदकार मन ला बधाई💐💐👏👏

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  5. बहुत सुंदर संकलन, सबो ला महाशिवरात्रि के हार्दिक बधाई

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