बिष्णुपद छंद-कुलदीप सिन्हा
हवे गरीबी करना दुरिहा, महिनत तैं कर ले।
पाना हावे ज्ञान कहूं ते, पुस्तक ला धर ले।।
शरण गुरू के हावे जाना, भाव भक्ति भर के।
उही दिखाही बाट सरग के, दुख पीरा हर के।।
नरवा गरुवा घुरवा बारी, राखव सब मिलके।
फूल लगाओ गमला मा जे, बने रहे खिल के।।
दूध दही हे पीना तुमला, पालो गा गरुवा।
हवे सुरक्षित रखना उनला, छा छानी परवा।।
सुंदर सुंदर फूल लगाओ, बारी मा घर के।
उनकर मन के आप करव गा, सेवा जी भर के।।
नरवा के पानी ला संगी, बांध हवे रखना।
करो सिंचाई बारी मा जी, बोवव गा मखना।।
नशा पान झन करहू भइया, हरै बहुत खतरा।
मानो जी कहना ला सबके, करो नहीं नखरा।।
जिनगी मा सुख पाना हे ते, रद्दा सत धरले।
खुद के दुख तेहा अब तो, खुद ही गा हरले।।
राम नाम के जप तैं माला, हावय यदि तरना।
कर नइ पाबे अतना ला तैं, का जीना मरना।।
स्वच्छ रखव जी घर कुरिया ला, बात तनिक सुनले।
जीना हावय तुमला जिनगी, मन ही मन गुन ले।।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( धमतरी )
हवे गरीबी करना दुरिहा, महिनत तैं कर ले।
पाना हावे ज्ञान कहूं ते, पुस्तक ला धर ले।।
शरण गुरू के हावे जाना, भाव भक्ति भर के।
उही दिखाही बाट सरग के, दुख पीरा हर के।।
नरवा गरुवा घुरवा बारी, राखव सब मिलके।
फूल लगाओ गमला मा जे, बने रहे खिल के।।
दूध दही हे पीना तुमला, पालो गा गरुवा।
हवे सुरक्षित रखना उनला, छा छानी परवा।।
सुंदर सुंदर फूल लगाओ, बारी मा घर के।
उनकर मन के आप करव गा, सेवा जी भर के।।
नरवा के पानी ला संगी, बांध हवे रखना।
करो सिंचाई बारी मा जी, बोवव गा मखना।।
नशा पान झन करहू भइया, हरै बहुत खतरा।
मानो जी कहना ला सबके, करो नहीं नखरा।।
जिनगी मा सुख पाना हे ते, रद्दा सत धरले।
खुद के दुख तेहा अब तो, खुद ही गा हरले।।
राम नाम के जप तैं माला, हावय यदि तरना।
कर नइ पाबे अतना ला तैं, का जीना मरना।।
स्वच्छ रखव जी घर कुरिया ला, बात तनिक सुनले।
जीना हावय तुमला जिनगी, मन ही मन गुन ले।।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( धमतरी )
बहुत सुंदर, बहुत बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद चंद्राकर जी।
Deleteगजब सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteबड़ सुग्घर रचना।बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबधाई सिन्हा जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteबड़ सुग्घर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद साहू जी।
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय साहू जी।
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