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Monday, February 3, 2020

सार छंद - शशि साहू(राखी)

सार छंद - शशि साहू(राखी)

झन बिसराबे भैया मोला, भेजत हावव राखी।
कच्चा डोरी मा अरझे हे,हमर मया के साखी।

तोर सोर हर जग मा होवय,बाढ़े मान बढ़ाई।
पाँव गड़े झन काँटा खूँटी,मोर दुलरवा भाई।।

मिलय मान लोटा भर पानी, मुँह भर गुरतुर बोली।
अउ स्वार्थ मा झन बटाँय गा, मन के कोठी डोली।।

बाँटत रहिबो सुख दुख मन के, जइसे बाँटन खाई।
अरझे तागा ला जिनगी के,सुलझा लेबो भाई।।

सार छंद - शशि साहू
बाल्को नगर - कोरबा

12 comments:

  1. वाह वाह बहुत सुग्घर , भाई-बहन के मया के ऊपर सुंदर छंद रचे हव आपमन दीदी जी, बधाई

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  2. बहुत सुघ्घर भाव अउ सोच ले राखी के बारे मा रचना लिखे हव शशि साहू बहिनी बधाई हो
    फेर सातवाँ लाइन के दूसरा चरण ग्यारह मात्रा हावय
    मोर हिसाब से (जइसे बाँटने खाई)ये तरा के होना चाही

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  3. (जइसे बाँटन खाई) येहर सही हे
    टाइपिंग मा बाँटने लिखा गेहे रहिस

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  4. बहुत सुग्घर दीदी जी बधाई हो

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  5. बहुत बढ़िया रचना दीदी जी
    बधाई हो

    महेन्द्र देवांगन माटी

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  6. गजब सुग्घर दीदी

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  7. गजब सुग्घर दीदी

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  8. सुग्घर रचना दी

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  9. सुग्घर रचना। हावँव ,बड़ाई

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