सार छंद - शशि साहू(राखी)
झन बिसराबे भैया मोला, भेजत हावव राखी।
कच्चा डोरी मा अरझे हे,हमर मया के साखी।
तोर सोर हर जग मा होवय,बाढ़े मान बढ़ाई।
पाँव गड़े झन काँटा खूँटी,मोर दुलरवा भाई।।
मिलय मान लोटा भर पानी, मुँह भर गुरतुर बोली।
अउ स्वार्थ मा झन बटाँय गा, मन के कोठी डोली।।
बाँटत रहिबो सुख दुख मन के, जइसे बाँटन खाई।
अरझे तागा ला जिनगी के,सुलझा लेबो भाई।।
सार छंद - शशि साहू
बाल्को नगर - कोरबा
झन बिसराबे भैया मोला, भेजत हावव राखी।
कच्चा डोरी मा अरझे हे,हमर मया के साखी।
तोर सोर हर जग मा होवय,बाढ़े मान बढ़ाई।
पाँव गड़े झन काँटा खूँटी,मोर दुलरवा भाई।।
मिलय मान लोटा भर पानी, मुँह भर गुरतुर बोली।
अउ स्वार्थ मा झन बटाँय गा, मन के कोठी डोली।।
बाँटत रहिबो सुख दुख मन के, जइसे बाँटन खाई।
अरझे तागा ला जिनगी के,सुलझा लेबो भाई।।
सार छंद - शशि साहू
बाल्को नगर - कोरबा
वाह वाह बहुत सुग्घर , भाई-बहन के मया के ऊपर सुंदर छंद रचे हव आपमन दीदी जी, बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर रचना हे
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर भाव अउ सोच ले राखी के बारे मा रचना लिखे हव शशि साहू बहिनी बधाई हो
ReplyDeleteफेर सातवाँ लाइन के दूसरा चरण ग्यारह मात्रा हावय
मोर हिसाब से (जइसे बाँटने खाई)ये तरा के होना चाही
(जइसे बाँटन खाई) येहर सही हे
ReplyDeleteटाइपिंग मा बाँटने लिखा गेहे रहिस
बहुत सुग्घर दीदी जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना दीदी जी
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
गजब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteगजब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteसुग्घर रचना दी
ReplyDeleteसुग्घर दी
ReplyDeleteसुग्घर रचना। हावँव ,बड़ाई
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