जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कालजयी रचना "माटी" के संगीतमय प्रस्तुति, छत्तीसगढ़िया मन बर इहाँ प्रस्तुत करे जाs थे। ये रचना ला ओमन अपन बीस बछर के उमर मा लिखे रहिन। एला सुनके स्वाभिमान जागथे। अपन अधिकार बर जागरूकता आथे। छत्तीसगढ़ के संपन्नता अउ वैभव के दर्शन होथे। ये रचना मा छत्तीसगढ़ के माटी के मानवीकरण होइस हे। माटी अपन संतान के पीरा ला कइसे महसूस करत होही। अपन संतान से का अपेक्षा रखत होही, छत्तीसगढ़ी गीत के माध्यम ले जाने बर मिलही।
"लय", गीत के आत्मा होथे। जब आत्मा ले गीत निकलथे तब लयबद्ध होके निकलथे। आत्मा ले निकले गीत, बिना छन्द के बंधन मा बँधे, छन्द के काफी नजदीक होथे। ये गीत वाचिक परम्परा मा 16 - 16 मात्रा के "मत्त-सवैया" आय। मात्रा गणना मा भले एक दू मात्रा के अंतर दिखही फेर उच्चारण अनुसार 16-16 मात्राभार के पालन करत हे।
सम्पूर्ण "माटी" लगभग एक घंटा के हे। डाटा के सीमा ला ध्यान मा रखके एकर छै भाग बनाए गेहे। ये रचना ला ध्यान से सुने मा नवा कवि मन ला लिखे बर एक नवा दिशा मिलही, नवा सोच पैदा होही संगेसंग छत्तीसगढ़ी भाषा के चमत्कार,संपन्नता अउ सामर्थ्य के पता चलही। ये गीत ला अपन ददा-दाई, भाई-बहिनी अउ बेटा-बेटी के साथ बइठ के सुन सकथव। ये कालजयी कृति ला हर छ्न्द साधक ला सुनना अउ गुनना चाही।
अरुण कुमार निगम
अनमोल धरोहर गुरुदेव
ReplyDeleteअनमोल रचना गुरुदेव
ReplyDeleteजी गुरुदेव
ReplyDeleteये अमर कृति ला सुनके आत्मा मा आनन्द के साथ चिंतन भी पैदा होथे।
बहुत सुघ्घर गुरूदेव 👏
ReplyDeleteप्रेणादायक गीत
ReplyDeleteसुघ्घर गीत ।जइसे अपने जीवन कथा ला कहत हे।
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