विष्णु पद छंद-मीता अग्रवाल
जाँगर तोड़ कमाथस बाबू,जोडत हस धन ला।
पइसा कौड़ी काम आय ना, धीर राख मन ला ।।
जग मा खाली हाथ आए, जाय हाथ जुच्छा।
धरे रहीं जर जमीन जाए,बेवहार सुच्छा।।
बने बने कारज कर संगी,उही नाम करथे।
बिन बादर बरसात सुने हस,कभू नही झरथे।।
दया मया तँय बाँटे सुमता, हँसी खुशी बढ़थे।
बाढ़त रहिथे जिनगी भर जी, डहर नवा गढ़थे।।
(2)अषाढ़ के बादर
झिमिर झिमिर बरसे गरजे घिर,छाए हे बदरा।
आए अषाढ़ आँधी उठाय,बने घुप्प कजरा।।
कभू गरजथे कभू बरसथे,टिपिर टिपिर गिरथे।
धरती माता के कोरा ला,हरियर वो करथे।
अलसाए कुम्हलाए जीव ह, धीर सुख के धरे।
हरियर हरियर चारो खूँटा,पेड़ फूले फरे।।
जम्मो खेत किसानी लहके,हँसी खुशी चहके।
धरती माटी हवा परानी,बादर मा बहके।।
तपत धरा के पियास बुझाय,बरसा झर झर के।
चलव किसनहा खेत डहर जी, नाँगर ला धर के।।
छंदकार -डाॅ मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
Deleteबहुत सुन्दर दीदी जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया!!!
ReplyDeleteसुंदर व सार्थक सृजन
बहुत बढ़िया जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुंदर रचना कर सखी, मन मा भर मुस्कान
ReplyDeleteमोहन माधव हर कहै, "देवत हवँ वरदान ।"
बड़ गजब के सृजन दीदी जी
ReplyDeleteगजब सुघ्घर रचना दीदी
ReplyDeleteआप सब ला सादर प्रणाम व धन्यवाद
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