विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - बसंत ऋतु
ऋतु बसंत ला जग वाला मन, ऋतु राजा कहिथें।
भुला जथें जाड़ा के दुख ला, खुश येमा रहिथें।।
पाना झरथे रुखराई के, आथे पात नवा।
सुरुज किरण हा अबड़ सुहाथे, बहथे वात नवा।।
बने फूल परसा के खिलथे, लगथे सुग्घर गा।
फसल जवां सरसों के करथे, भुँइया उज्जर गा।।
घात फूल मन मा मंँड़राथे, तितली अउ भँवरा।
हरा-भरा घर-घर मा दिखथे, तुलसी के चँवरा।।
कूक कोयली के सुनथन सब, बखरी जंगल मा।
ऋतु बसंत मा हमर गुजरथे, जिनगी मंगल मा।।
ऋतु बसंत मा बने नजारा, देखे बर मिलथे।
फूल नीक बड़ रंग-बिरंगा, ये घानी खिलथे।।
पेड़ मउरथे आमा के जी, ममहाथे भुँइया।
बड़ हावा पबरित बोहाथे, जे भाथे गुँइया।।
पिंवरा चुनरी ओढ़े भुँइया, सुग्घर घात लगे।
देख नजारा अच्छा दिन के, सब मा आस जगे।।
नवा नवरिया पंच तत्व हा, मन मा जोश भरे।
सुख मनखे ला बड़ देवइया, ऋतु मधुमास हरे।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
विषय - बसंत ऋतु
ऋतु बसंत ला जग वाला मन, ऋतु राजा कहिथें।
भुला जथें जाड़ा के दुख ला, खुश येमा रहिथें।।
पाना झरथे रुखराई के, आथे पात नवा।
सुरुज किरण हा अबड़ सुहाथे, बहथे वात नवा।।
बने फूल परसा के खिलथे, लगथे सुग्घर गा।
फसल जवां सरसों के करथे, भुँइया उज्जर गा।।
घात फूल मन मा मंँड़राथे, तितली अउ भँवरा।
हरा-भरा घर-घर मा दिखथे, तुलसी के चँवरा।।
कूक कोयली के सुनथन सब, बखरी जंगल मा।
ऋतु बसंत मा हमर गुजरथे, जिनगी मंगल मा।।
ऋतु बसंत मा बने नजारा, देखे बर मिलथे।
फूल नीक बड़ रंग-बिरंगा, ये घानी खिलथे।।
पेड़ मउरथे आमा के जी, ममहाथे भुँइया।
बड़ हावा पबरित बोहाथे, जे भाथे गुँइया।।
पिंवरा चुनरी ओढ़े भुँइया, सुग्घर घात लगे।
देख नजारा अच्छा दिन के, सब मा आस जगे।।
नवा नवरिया पंच तत्व हा, मन मा जोश भरे।
सुख मनखे ला बड़ देवइया, ऋतु मधुमास हरे।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
बड़ सुघ्घर रचना हे आदरणीय 👌👌
ReplyDeleteबढ़िया श्लेष जी
ReplyDeleteजी, हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुग्घर सर जी बधाई हो
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचना सर जी बहुत बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteबहुत बढ़िया सृजन हे भाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार दीदी
Deleteसुग्घर रचना जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबड़ सुग्घर ऋतु बसन्त के वर्णन,बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह्ह वाह चन्द्राकर भइया अब्बड़ सुग्घर बंसत ऋतू के शानदार चित्रण भइया बधाई 🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteहार्दिक आभार सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन गुरुजी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteवाह वाह चन्द्राकर जी।बेहतरीन सृजन।हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक आभार गुरुदेव
Deleteहार्दिक बधाई बहुत बढ़िया
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