Followers

Saturday, February 8, 2020

विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर

विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - बसंत ऋतु

ऋतु बसंत ला जग वाला मन, ऋतु राजा कहिथें।
भुला जथें जाड़ा के दुख ला, खुश येमा रहिथें।।

पाना झरथे रुखराई के, आथे पात नवा।
सुरुज किरण हा अबड़ सुहाथे, बहथे वात नवा।।

बने फूल परसा के खिलथे, लगथे सुग्घर गा।
फसल जवां सरसों के करथे, भुँइया उज्जर गा।।

घात फूल मन मा मंँड़राथे, तितली अउ भँवरा।
हरा-भरा घर-घर मा दिखथे, तुलसी के चँवरा।।

कूक कोयली के सुनथन सब, बखरी जंगल मा।
ऋतु बसंत मा हमर गुजरथे, जिनगी मंगल मा।।

ऋतु बसंत मा बने नजारा, देखे बर मिलथे।
फूल नीक बड़ रंग-बिरंगा, ये घानी खिलथे।।

पेड़ मउरथे आमा के जी, ममहाथे भुँइया।
बड़ हावा पबरित बोहाथे, जे भाथे गुँइया।।

पिंवरा चुनरी ओढ़े भुँइया, सुग्घर घात लगे।
देख नजारा अच्छा दिन के, सब मा आस जगे।।

नवा नवरिया पंच तत्व हा, मन मा जोश भरे।
सुख मनखे ला बड़ देवइया, ऋतु मधुमास हरे।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
 महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

24 comments:

  1. बड़ सुघ्घर रचना हे आदरणीय 👌👌

    ReplyDelete
  2. बहुत सुग्घर सर जी बधाई हो

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय

      Delete
  3. बहुत सुन्दर रचना सर जी बहुत बधाई

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया सृजन हे भाई

    ReplyDelete
  5. सुग्घर रचना जी

    ReplyDelete
  6. बहुत सुग्घर रचना सर

    ReplyDelete
  7. बड़ सुग्घर ऋतु बसन्त के वर्णन,बधाई

    ReplyDelete
  8. वाह्ह वाह चन्द्राकर भइया अब्बड़ सुग्घर बंसत ऋतू के शानदार चित्रण भइया बधाई 🙏🙏

    ReplyDelete
  9. हार्दिक आभार सर

    ReplyDelete
  10. बहुत सुग्घर सृजन गुरुजी

    ReplyDelete
  11. वाह वाह चन्द्राकर जी।बेहतरीन सृजन।हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार गुरुदेव

      Delete
  12. हार्दिक बधाई बहुत बढ़िया

    ReplyDelete