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Thursday, August 13, 2020

छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा

 छप्पय छंद- मोहन लाल वर्मा 

      (1) आगे हे नवरात 
आगे हे नवरात, बरत हे दियना बाती ।
जगमग-जगमग जोत, करय उजियारी राती ।
माता के दरबार, भगत मन आथें जाथें।
करके पूजा-पाठ, शक्ति ला माथ नवाथें ।।
माता के नवरूप के, करलव दर्शन आज गा।
श्रद्धा ले सब पूज लव, बनही बिगड़े काज गा।।

     (2) पानी के मोल
सुक्खा परगे फेर, देख तो तरिया-नदिया ।
कइसन हाहाकार, मचे हे सारी दुनिया ।
बिन पानी संसार, फेर गा चलही कइसे ।
तड़पत रइहीं जीव,  सबो गा मछरी जइसे ।।
होही पानी के बिना, सुन्ना ये संसार गा।
जानव एकर मोल ला, पानी जग आधार गा।।

    (3) जाड़ 
कापत हावय जीव, जाड़ मा अबड़े भइया ।
सर- सर-सर- सर रोज, चलत हे जुड़ पुरवइया ।
कतको स्वेटर-शाॅल, ओढ़ना कमती लागय ।
कहिथे मोहन लाल, जाड़ हा कब गा भागय ।।
कोन बुताही जाड़ ला, जुड़हा होगे  घाम जी ।
शीतलहर के मार मा , काँपय हाड़ा चाम जी ।।

छंदकार - मोहन लाल वर्मा 
पता- ग्राम-अल्दा, तिल्दा, रायपुर 
(छत्तीसगढ़)

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