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राखी तिहार (कुण्डलिया)
सावन महिना शुभ घड़ी , दिन पुन्नी जब आय ।
बहिनी राखी बांधके ,मंगल तिलक लगाय ।।
मंगल तिलक लगाय ,मगन बड़ होगे भाई।
साजे जइसे फूल , दिखय जी सुघर कलाई ।।
भाई बहिनी नाम ,परब हे बढ़िया पावन ।
परमानंद अपार ,छाय जी महिना सावन ।।
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रहिथे बहिनी भाग मा ,ओ भाई खुश होय।
इक भाई बहिनी बिना ,सुसक सुसक के रोय ।।
सुसक सुसक के रोय , बहत हे आंसू धारा ।
दिन राखी के आय , हाॅत हे सुन्ना सारा ।।
राखी काय मनाॅव ,बिलख के भाई कहिथे ।
खुश हो परब मनाय ,बहिन गा जेखर रहिथे ।।
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राखी बंधन रीत के , पावन हवै तिहार ।
भाई बहिनी के मया , दिखथे अलग चिन्हार ।।
दिखथे अलग चिन्हार , बॅधाये रेशम डोरी।
भाई दे उपहार ,बहिन ला रुपिया कोरी ।।
सॅग मा दे बिसवाॅस , हवै जी दियना साखी ।
लागा लागय तोर ,बहिन तॅय बाॅधे राखी ।।
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साधक कक्षा 10
परमानंद बृजलाल दावना
भैंसबोड़
6260473556
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कमलेश्वर वर्मा- (छन्न पकैया छन्द)
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छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे रक्षाबंधन।
सावन पुन्नी के तिहार के, करव सबो अभिनंदन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बहिनी कर तैयारी।
दीया बंदन मिठई धरके, बने सजा ले थारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हँसी- खुशी हे भारी।
बाँध हाथ मा भाई के अब, राखी बहन दुलारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, भाई तोरे बारी।
चिनहा दे तँय बहिनी ला फिर, बनके बड़ संस्कारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बेरा हे मनभावन।
संकट मा सँग देबे भाई, नाता रखबे पावन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, रिश्ता हे जस चंदन।
भाई बहिनी के उम्मर भर, हे अटूट ये बंधन।।
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कमलेश वर्मा,साधक
छन्द के छ
भिम्भौरी, बेमेतरा
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छन्नपकैया छंद ----आशा देशमुख
छन्नपकैया छन्नपकैया ,किसम किसम के राखी।
भाई बहिनी मन चहकत हे ,जइसे चहके पाखी।1।
छन्नपकैया छन्नपकैया,भैया देखे रस्ता।
अबड़ मोल राखी के डोरी,झन जानँव गा सस्ता।2।
छन्नपकैया छन्नपकैया,मन पहुना लुलवाथे।
ननपन के सब मान मनौवा, अब्बड़ सुरता आथे।3।
छन्नपकैया छन्नपकैया,भठरी मन सब आवैं।
पहली के सब रीत चलागन,अब तो सबो नँदावैं।4।
छन्नपकैया छन्नपकैया ,मँय बहिनी मति भोरी।
भाई बहिनी के तिहार मा, बगरे मया अँजोरी।5।
छन्नपकैया छन्नपकैया,घर घर बने मिठाई।
माथ सजे हे मंगल टीका, राखी सजे कलाई।6।
छन्नपकैया छन्नपकैया,कहुँ हो जाये देरी।
निकल निकल के बहिनी देखे,रस्ता घेरी बेरी।7।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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: राखी (छप्पय छंद)- अजय अमृतांशु
राखी हवय तिहार, साल भर सुरता आथे।
बहिनी खुशी मनाय, मिले बर भाई जाथे।
करहूँ रक्षा तोर, आस भाई देवाथे।
तिलक लगा के माथ, बहन हा मया लुटाथे।
पबरित धागा आय जी, ये राखी के डोर हा।
खोजे ले नइ मिल सकय, दया मया के छोर हा।।
सीमा डटे जवान, देश के रक्षा खातिर।
दुश्मन हा बिलमाय, हवय जी अड़बड़ शातिर।
आ गे हवय तिहार, बहन हा सुरता आवय।
राखी पहिरे हाथ, मया ला अपन लुटावय।
जान लुटा के राखही, हमर देश के मान ला।
राखी के किरिया हवय, दाग लगय नइ शान ला।।
दया मया के छाँव, बहन के सुरता आथे।
खेलन कूदन गाँव, कहाँ अंतस ले जाथे।
ननपन के वो बात, बहन के गुरतुर बोली
रहि रहि के खिसियाय, करन जी अबड़ ठिठोली।
राखी हमर तिहार हा, एक बछर मा आय हे।
भाई के घर आज सब, बहिनी मन सकलाय हे।।
अजय अमॄतांशु,भाटापारा
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कज्जल छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
राखी ममता के तिहार-
राखी ममता के तिहार
भाई बहिनी के दुलार
गजानंद के सुन पुकार
करजा राखी लौ उतार
बड़ बड़का हे उँखर भाग
बँधय कलाई प्रेम ताग
महकै जिनगी खुशी बाग
गूँजय अंतस प्रेम राग
कुछ के किस्मत हे अजीब
बंधन राखी नइ नसीब
आय खुशी ना मन करीब
भाई बहिनी वो गरीब
पावव बाँटव खुशी आज
बहिनी सबके मान लाज
सोंचौ समझौ ये समाज
बहिनी के मुड़ बाँध ताज।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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राजेश निषाद: छन्न पकैया छंद - राजेश कुमार निषाद
छन्न पकैया छन्न पकैया,राखी के दिन आये।
बाँधय बहिनी मन हा राखी,माथा तिलक लगाये।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,अड़बड़ दिन मा आथे।
रंग रंग के राखी संगी,सबके मन ला भाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी घर मा आथे।
बाँध कलाई राखी हमरों,अबड़े मया जगाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,बहिनी हमरों आही।
मया पिरित के लाही राखी,बाँध कलाई जाही।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,खाव मिठाई जादा।
रक्षा करहू बहिनी मनके,देवव भाई वादा।।
रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद छंद साधक
कक्षा - 4 ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़।
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रामकली कारे: दोहा छंद - राखी
सावन पुन्नी के परब, छाये खुशी अपार।
अमर प्रेम के भावना, जोड़य सब संस्कार।।
किसम किसम राखी बॅधे, आज कलाई हाथ।
भाई बहिनी के मया, रहे सदा दिन साथ।।
नाजुक रेशम डोर हे, हिरदय मा विश्वास।
बाॅधय रक्षा सूत्र ला, राखय मन मा आस।।
सजे कलाई खूब हे, चंदन रोली माथ।
रिश्ता अबड़ अटूट हे, जिनगी भर दे साथ।।
अजर अमर अउ खुश रहे, भाई के परिवार।
बहिनी करथे कामना, राखी होय तिहार।।
आज मया के पाग ला, रखव सबो सम्हाल।
सदा सदा महकत रहे, अरिसा अस हर साल।।
रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़
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अरुण कुमारनिगम गुरुदेव: *भाई-बहिनी के गोठ*
*(घनाक्षरी छन्द)*
(1)
सावन के बड़ निक राखी के तिहार आगे
राखी बँधवा ले गा मयारू मोर भइया
तहीं मोर मइके अउ हितवा तहींच एक
तहीं मोर निर्बल के किसन कन्हइया।
नी माँगौं मैं पैसा कौड़ी, नी माँगौं जेवर जाँता
नी माँगौं मैं हाथी घोड़ा, नी माँगौं मैं गइया
एके चीज माँगत हौं आज सहकारिता से
तहूँ पार करे लाग, भारत के नइया।
(2)
सुन बहिनी के गोठ, हँस के भाई कहिस
अब नोनी तोर कहे, काम ला मैं करिहौं
शिव जी के साखी चल बाँध मोला राखी मैं ह
देस बर जी हौं अउ देस बर मरिहौं
पंचाइती राज अउ सहकारी काज सबो
सफल कराके दुःख लोगन के हरिहौं
फेर राखी बाँधिस अउ बहिनी हा बोलिस
आज मैं ह तोर पाँव पाँच बेर परिहौं।
रचनाकार -
*जनकवि कोदूराम "दलित"*
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सरसी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
राखी गीत-
खुशी धरे भाई बहिनी बर, राखी आय तिहार।
मोर अभागा किस्मत भाई, मिलिस बहिन नइ प्यार।।
सुन्ना मोर कलाई रहिथे, मन हा रहय उदास।
ले के आयेंव करम दुखिया, बहिनी नइहें पास।।
नैना ले आँसू बोहावय, बनके दुख के धार।
मोर अभागा किस्मत भाई, मिलिस बहिन नइ प्यार।।
बँधे मया मा भाई बहिनी, सुग्घर ये संसार।
जनम जनम ले बाढ़े राहय, ममता प्रेम दुलार।।
राखी के ये अटूट बँधना, रक्षा के आधार।
मोर अभागा किस्मत भाई, मिलिस बहिन नइ प्यार।।
ददा मोर छुप छुप के रोवय, दाई डंड पुकार।
आवय सबके घर बेटी जब, पोरा तीज तिहार।
बहिनी के सुख नइ तो जानिस, भाई ये दुखियार।
मोर अभागा किस्मत भाई, मिलिस बहिन नइ प्यार।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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राखी :- जगदीश "हीरा" साहू
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन पुन्नी आगे।
राखी धरके बहिनी तुरते, भाई के घर भागे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, माथ लगाये टीका।
भाई बहिनी मया अबड़ हे, लागे ये जग फीका।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बाँध मया के डोरी।
नोहय बस रेशम के धागा, आय मया के लोरी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, लेके हाथ मिठाई।
होके मगन खवावत हावय, खुश हो खावय भाई।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, झन तँय कभू भुलाबे।
रक्षा करबे मोरे भाई, तैंहा लाज बचाबे।।
छंदकार:-
जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार
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आशा आजाद: मनहरण घनाक्षरी
ऐसो नइ आवौ भैया
ऐसो के राखी मा भैया,परत हौ तोर पैया।
कोरोना के रोग ले,अबड़ डराव गा।
राखी ला मैं धरे हावौ,संक्रमण ला डरावौ।
सुरक्षा रखबो भैया,इही मैं बताव गा।
मइके मैं नइ आवौ,दूर ले नाता निभावौ।
मया बड़ करथौ गा,धरे मया भाव गा।
रोग ये बाढ़त हावै,मनखे मरत जावै।
जान हे जहान भैया,इही समझाव गा।
भाई बहिनी के मया
भाई बहिनी के नाता,रचे हवे गा विधाता,
प्रेम भाव सुख दुख,मिलके निभात हे।
संग खेलै नाचे गावै,सुघर नाता निभावै।
बाधौं सब मया डोर,तिहार सिखात हे।
मया भाव बड़ धरे,बहिनी हा सेवा करे,
भाई सत मारग के,रद्दा ला दिखात हे।
निभाये ओ जिम्मेदारी,शादी मा ओ रोवै भारी,
हाँसत रोवत ओला,डोली मा बिठात हे।
आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़
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हीरा गुरुजी समय: सार छंद- राखी तिहार के पीरा
जेखर सग बहिनी नइ राहय, होथय कतका पीरा।
रक्षाबंधन के तिहार मा,एला बताय हीरा।
बिन बहिनी के आवव भाई, तिहार मानव कइसे।
चारा बिना बँधाये गरुवा,घर मा तरसे जइसे।
राखी पहिरे देखय सबला, मोहाटी ले ताकय ।
नत्ता के बहिनी कब आही, घेरी बेरी झाँकय।
रद्दा मा आवत जावत हे, हाँसत बहिनी भाई।
मय हा सपना देखत हावय, राखी भरे कलाई।
नहा खोर के पहिरे हावँव, सुग्घर कपड़ा खाखी।
मोर एक झन बहिनी हावय, बाँधे मोला राखी।
मोर आरती उतार के वो, टीका माथ लगाहे।
लड्डू पेड़ा खवा मुँहू मा,अपन मया देखाहे।
राखी बाँध हाथ मा मोरे, अपन मया ला देवय।
जिद करके मनमाफिक ओहा, अपन नेंग ला लेवय।
सपना हा तो सपना होथय, सँउहत कइसे होहय।
सोंचे मा बस हिरदे आँखी, कलप कलप के रोहय।
हर बच्छर आके तिहार हा, सुरता ला देवाथे।
बहिनी के गा मया पाय बर, हिरदे ला कलपाथे।
हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद
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*सरसी छन्द - राखी*
दया मया के बँधना हावै, राखी के त्योहार।
कच्चा डोर बँधाये देखौ,बहिनी-भाई प्यार।।
दया मया के बँधना.....................
ननपन के गा खेले-कूदे,अँगना परछी खोर।
सावन मा जी आथे सुरता,दीदी मन के लोर।।
राखी लेत बहाना जाथे ,बहिनी के घर द्वार।
दया मया के बँधना...................
जनम जनम के रक्छा के तो,भाई बचन निभाय।
भाई बने सहारा होथे,बहिनी जब दुख पाय।।
करके भाई जी के सुरता,बहिनी रोय गुहार।
दया मया के बँधना....................
रंग-रंग के राखी धरके ,थारी खूब सजाय।
आवत होही भाई कहिके,बहिनी ह सोरियाय।।
देख बनाये हे मेवा अउ, करे खड़े सिंगार।
दया मय के बँधना.....................
सावन के हे पबरित महिना,भाई आस लगाय।
छम-छम-छम-छम नाचय बरखा,बहिनी के मन भाय।।
सराबोर भींजे झूमे सब, राखी देख बहार ।
दया मया के बँधना............
छंद साधक - सत्र 5
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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सरसी छंद- विजेन्द्र वर्मा
राखी के बँधना
किसिम किसिम के राखी पहिरे,लगथे बड़ अनमोल।
राखी के बँधना ला भइया,पइसा ले झन तोल।।
मान रखिस हे बँधना के जी,तारिस दुख अउ ताप।
पांँचाली हा करत रिहिस जब,हरे कृष्ण के जाप।।
प्रेम भाव के बँधना बाँधय,होय ओर ना छोर।
झर झर झरथे मया पिरित हा,भींजे नस नस पोर।।
बाँध हाथ मा बँधना बहिनी,गोठ मया के बोल।
गदगद लागे मोला अब तो,ये पल ला झन तोल।।
बहिनी मन हा करथे पूजा,तिलक लगा के माथ।
तब जा मुँह मीठा करवाथे,बँधना बाँधे हाथ।।
सावन मा जी आथे राखी,लेके खुशी अपार।
रंग बिरंगे राखी ले अब,पटे हवय बाजार।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव जिला-रायपुर
छंद साधक
सत्र-11
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"बहिनीमन के माँग" लावणी छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
बाँधत हावन राखी तोला, मान हमर राखे खातिर।
रक्षा बर हम बहिनीमन के, रहिबे हरदम तँय हाजिर।
नइ चाही पइसा कउड़ी अउ, नइ चाही चाँदी सोना।
माँगन अतकी तोर करम ले, परय कभू झन गा रोना।
करले वादा तँय हा भइया, रक्षा बंधन मा अबके।
इज्ज़त करबे हमर सहीं गा, दुनिया के बहिनीमन के।
छंद-साधक - विरेन्द्र कुमार साहू,
बोड़राबाँधा(राजिम)
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सरसी छंद
सुरता अब्बड़ आथे भइया, राखी में गा तोर।
छोटे बहिनी आवँव भाई,लेवत रहिबे सोर।
सावन महिना राखी आगे, भादो तीज तिहार।
राखी आके बंधा लेबे,बइठे रहूँ तियार।
तीजा में गा आबे तँयहा,बाँध मया के ड़ोर।
छोटे बहिनी आवँव भाई, लेवत रहिबे सोर।।
दाई बाबू दूनो चल दिस,हवे सहारा तोर।
टप टप मोर आँसू टपके,ये आँखों के कोर।
मोर मयारू भइया दिंन दिन,बाढे मंया तोर।
छोटे बहिनी आवँव भाई, लेवत रहिबे सोर।।
जीयत भरले टूटे झन गा,ये पिरीत के ड़ोर।
राखी भाई दूज मनाबो,आके अँगना मोर।
खीर सोहारी मिल ग खाबो, बाढ़े पिरीत मोर।
छोटे बहिनी आवँव भाई, लेवत रहिबे सोर।
छंदकार
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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*राखी साखी प्रेम के (हेम के उल्लाला छंद)*
ये राखी साखी प्रेम के, देख देख मन हा भरै।
नित दया मया दीदी रखै, भैया दुलार ला करैै।।
मन रोवत दीदी के हवे, भैया ला सुरता करै।
दुख पीरा ला काला कहै, बइठे राखी ला धरै।।
गे भाई रक्षा बर हवय, बार्डर हमार देश के।
मैना के आँखी भींजथे, रोवत दीदी देख के।।
ओ मैना बोलिस बात सुन, जाहू भैया पास ओ
दे आहू राखी तोर मँय, अउ संदेशा खास ओ।।
सुन दीदी अतका बात ला, राखी लावय साथ मा।
खुश होके राखी अपन, देवत ओकर हाथ मा।।
कर पूजा सुघ्घर भेजथे, देवत शुभ संदेश ला।।
पहिना राखी ला मोर तँय, हरहू जम्मो क्लेश ला।
-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-01
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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********रक्षाबंधन*********
(छन्न पकैया छन्द)
छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे रक्षाबंधन।
सावन पुन्नी के तिहार के, करव सबो अभिनंदन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बहिनी कर तैयारी।
दीया बंदन मिठई धरके, बने सजा ले थारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हँसी- खुशी हे भारी।
बाँध हाथ मा भाई के अब, तँय राखी ल दुलारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, भाई तोरे बारी।
चिनहा दे तँय बहिनी ल फेर, बनके बड़ संस्कारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बेरा हे मनभावन।
संकट मा सँग देबे भाई, नाता रखबे पावन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, रिश्ता हे जस चंदन।
भाई बहिनी के उम्मर भर, हे अटूट ये बंधन।।
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कमलेश वर्मा,व्याख्याता
भिम्भौरी, बेमेतरा
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भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)
माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे
ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।
जस सेवा चलत हे, रहिरहि हलत हे,
खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।
सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,
चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।
खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर
भोजली मनाये मिल,आशीष माँ देत हे।
भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,
जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।
रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,
बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।
फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,
बाँहि डार नाचत हे,मया के गियास मा।
दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,
सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।
अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,
भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।
दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,
धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।
मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,
गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।
राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,
बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।
राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,
नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान गा।
भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,
सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान गा।
राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,
हमर गुमान हरे,बेटी माई मान गा।
मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,
कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान गा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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बहुत सुग्घर राखी छंद संग्रह
ReplyDeleteसुघर संकलन; सबो साधक मन ल बधाई 💐💐
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संकलन
ReplyDeleteबधाई हो
रक्षाबंधन के गाड़ा गाड़ा बधाई
ReplyDeleteसुघ्घर संकलन
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