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Saturday, August 29, 2020

छप्पय - - छंद*-शशि साहू

 


*छप्पय - - छंद*-शशि साहू

1/पानी बिन जग सून, पियासे धरती दानी।
नदिया हर दुबराय,कुआँ के अउँटय पानी।।
मचही हाहाकार,अइसने दिन जब आही।
होही झगरा वार,कोन ला कोन बचाही।।
भर दव धरती पेड़ ले,पर्यावरण बचाय बर।
उदिम करव मिलके सबो,पानी ला बरसाय बर ।।

2/छेल्ला किंजरे गाय,मिले नइ दाना पानी।
चारा कोन खवाय,मिलाके कुटकी सानी।।
बाँचे रोटी भात,फेकथें झिल्ली भर के।
खा के मरथे गाय, पेट मा झिल्ली धरके।।
सबले विनती मयँ करवँ,बंद करव उपयोग ला।
बड़का खतरा ये हरे,लाने कतका रोग ला।। 

3/झिल्ली मा हे बैन,तभो बेचय व्यापारी।
माटी होय खराब,साग नइ होवय बारी।।
येला कभू जलाव,धुआँ हर जहर उछरथे। 
जले कभू नइ फेर, हवा ला  दूषित करथे ।
झिल्ली तो हे काम के,फेर करे नुकसान ला।
बउरव झिल्ली झन कभू,लेवय जीव परान ला।

श्रीमती शशि साहू
बाल्कोनगर - कोरबा

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