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Saturday, August 29, 2020

अमृतध्वनि छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

 अमृतध्वनि छंद - विरेन्द्र कुमार साहू 

नाँगर बइला जोर के, चलव नँगरिहा खेत।
आगे दिन बरसात के, थोरिक करलव चेत।
थोरिक करलव, चेत लगाके, खेती-बारी।
येहर हावय, हमर राज के, असल चिन्हारी।
बिन मिहनत के, मिलय नहीं कुछु, पेरव जाँगर।
करव किसानी, अपन बुती मा, फाँदव नाँगर।१।

खोय सुतइया खास ला, होवय दुच्छा हाथ।
पाये दुख संताप ला , अपन घरतिया साथ।
अपन घरतिया ,साथ नि समझे, जिम्मेदारी।
जन-जन के मुँह, अइसन मनखे, खाथे गारी।
गोठ ल सिरतों, लिखे हवय गा, रीत बनइया।
जम्मों सुख ला, पाय जगइया, खोय सुतइया।२।

होगे हावय मुँदरहा, जागव सँगी मितान।
बेर उवत ले अब नहीं, सोवव चादर तान।
सोवव चादर, तान नहीं अब, घर सम्भालव।
मिहनत करके, बड़े बने के ,सपना पालव।
मनखे बर तो, आलस सबले, बड़का रोगे।
छोड़ नदानी, उठ जा अब तो, बिहना होगे।३।

छंदकार -विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका) जि.- गरियाबंद(छत्तीसगढ़)

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