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Saturday, August 22, 2020

छंद के 'छ' परिवार के मयारुक भाई महेंद्र कुमार 'माटी' जी ल काव्यांजलि


 छंद के 'छ' परिवार के मयारुक भाई महेंद्र कुमार 'माटी' जी ल 
काव्यांजलि



लीला  तो  भगवान  के,  कउन सके हें जान।
काया  'माटी'  के  बना,  डारय  ओमा  प्रान।।
डारय  ओमा  प्रान,  साँस  भरथे  गनती के।
कोजनि कब आ जाय, कथौं बेरा खनती के।।
आँसू   श्रद्धा  फूल, चढ़ावत  'माटी' जी  ला।
पूछत  हौं  भगवान,  तोर  ए   कइसे  लीला।


सूर्यकान्त गुप्ता  'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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: *महेंद्र देवांगन "माटी" भइया जी मन ला सादर काव्यांजलि समर्पित (रोला छंद)* 

मन हर हवयँ उदास , कहँव का येखर पीरा ।
संगी हमर मितान , रहिस माटी जी हीरा ।।
सब के मनला भाय , हँसी के संग ठिठोली ।
सुरता आथे आज , सबो ओ गुरतुर बोली ।।

सुन्ना पड़गे देख , आज हमरो घर अँगना ।
माटी  भइया छोड़ , हमर सब गीसे बँधना ।।
सब ला मया दुलार , सबो दिन देइन भारी ।
बोलिन सुग्घर बोल , कभू  नइ जाने चारी ।। 

करत  रहिन  हे  भेट , बोल  के  सुग्घर  बानी ।
सरल सहज स्वभाव , रहिस उनकर जिनगानी ।।  
सब सो रखय मिलाप , लोग सब उनला जाने ।
लिखत रहिन हे पोठ , कलम ला उनकर माने ।।

माटी जिंकर नाँव , अमर जी जग मा हावय ।
महतारी  के लाल , सबो  ला  सुग्घर भावय ।।
नमन करत हन आज , सबो हम गुनला गाके ।
माटी  भइया  तोर ,  चरण  मा  माथ  नवाके ।। 

          मयारू मोहन कुमार निषाद
             गाँव - लमती , भाटापारा ,
         जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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 छंद- माटी

माटी कस हे तन इही, माटी कस हे प्रान।
मिल जाना माटी हवे, छोड़व गरब गुमान।।
छोड़व गरब गुमान, चार दिन के जिनगानी।
जब तक तन मा सांस, निभा लौ मीत मितानी।।
गजानन्द चल साथ, बाँध लिन प्रेम मुहाटी।
माटी हवय महान, मोल समझौ जी माटी।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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 ज्ञानू कवि: माटी जी ला काव्यजंलि 

धन दौलत परिवार सगा ला, छोड़ एक दिन जाना।
कंचन काया माटी होही, काबर जी इतराना।।

बड़े बड़े ये महल अटारी, छूट एक दिन जाना।
हवस भूल मा काबर हरदम, छोड़ अपन मनमाना।।

संग रहव सब मिलजुल संगी, रिश्ता नता निभाना।
ये दुनियाँ ला जानौ संगी, दू दिन अपन ठिकाना।।

गुरतुर बोली बोल मया के, हिरदै अपन बसाना।
बैर कपट ला समझौ दुश्मन, गीत मया के गाना।।

मुट्ठी बाँधे आय जगत में, हाथ पसारे जाना।
सुग्घर मनखे तन ला पाके, जिनगी सफल बनाना।।

दया मया अउ करम धरम हा, सबले बड़े खजाना।
सत्य प्रेम के पाठ पढ़व अउ, सब ला हवय पढ़ाना।।

ज्ञानु

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 आदरणीय माटी गुरु जी ला काव्यजंली

जइसन करबो अपन करम ला, उही भाग मा पाबो जी।
माटी काया माटी माया, माटी मा मिल जाबो जी।।

माटी के हे धन अउ दौलत, छूट इहें सब जाही जी।
रही संग मा करम कमाई, बनके दिही गवाही जी।।

काम तोर नइ आवय कोन्हो, रीबि रीबि जे जोरे तै।
जाबे खाली हाथ जान ले, करनी जग मा छोरे तै।।

जिनगी कागज स्याही सुग्घर, रॅंग भर हमी सजाबो जी।
माटी काया माटी माया, माटी मा मिल जाबो जी।।
जइसन करबो अपन करम ला, उही भाग मा पाबो जी......

    मनोज कुमार वर्मा
    कक्षा 11

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 हमर छंद परिवार के माटी भैया ला काव्यांजलि

छंद छ के परिवार,रोत हे माटी भैया।
सुग्घर सिरजन भाव,छंद के सुघर रचैया।
घेरी बेरी रोय,याद सब करथे तोला।
चल दे बिना बताय,मिटागे अब तो चोला।।

घरवाली हा रोय,कहय माटी तँय आजा।
जोहत रद्दा तोर,खोलहूँ मँय दरवाजा।
चीख चीख के रोय,मांग के सेंदुर नइ हे।
मातम घर मा छाय,अबड़ माते करलइ हे।।

बेटी कलपत आज,रोत हे बाबू कहिके।
कइसे राखय धीर,आय सुरता रहि रहिके।
बेटी कोन बलाय,कोन शिक्षा ला देही।
होय अकेला आज,कोन आरो ला लेही।।

दाई कहिथे रोज,काल मोला ले जाते।
तोला लिहिस बुलाय,कास मँय हा मर जाते।
सुन्ना परगे कोख,कहव अब बेटा काला।
सुरता अब्बड़ आय,नही उतरय ग निवाला।

आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़

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विषय: माटी जी के सुरता(छप्पय छंद)

माटी के ओ लाल ,आज ले माटी होगे।
विधि के अजब विधान  , ओढ़ के माटी सो गे ।।
बसे हृदय मा मोर , समाये सुरता माटी।
रचना देहस छोड़ ,सबो बर तॅयहा खाटी।।
भइगे सुरता बाॅचगे  , आॅखी मा तॅय छाय हस ।
अमर हवे जी नाम हा , सबके माटी पाय हस ।।

सुरता बादर छाय  ,आॅख ले आॅसू बरसे।
माटी छवि ला तोर ,देखलॅव मन हा तरसे ।।
माटी के तॅय गीत , लिखे गंगा अस पावन।
झलके सहज सुभाव ,रूप लागय मनभावन।।
छंद विधा के रूप मा , रचना रचे सजोर जी।
माटी बन ''माटी" मिले , सुंदर काया तोर जी ।।

मनभावन मुस्कान , तोर माटी मन भावय।
मीठा बोले बोल , मया के भाव जगावय।।
सुन्ना गलियन खोर,तोर बिन रोवय भारी।
सुरता करथे तोर ,सबो संगी सॅगवारी।।
तोर कलम के धार मा ,जिनगी के सब सार हे ।
माटी कहे निमार के , माटी के संसार हे ।।

               साधक कक्षा 10
  परमानंद बृजलाल दावना
                 भैंसबोड़ 
            6260473556
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*माटी जीवन परिचय*


*माटी* ओम प्रकाश कहावय, धरती माँ के पूत सुजान।

गाँव बोरसी पावन धरती, महकाइस जे स्वर्ग समान।।


जन्मभूमि मा बचपन बीतिस, मानय माटी ला वो शान।

धूर्रा माटी खेल कूद के, कदम बढ़ाइस सीना तान।।


करिस पढ़ाई ध्यान लगा के, रहिस छात्र सुग्घर हुसियार।

दिल जीतिस हे गुरुजी मन के, पाइस सब के प्यार दुलार।।


कक्षा पंचम पहुँचत-पहुँचत, होगे साहित्य ले अनुराग।

गीत कहानी रचे लगिस अउ, पढ़ै लिखै दिन रतिहा जाग।।


रइपुर मा इस्नातक होइस, लेख प्रकाशित होवैं साथ।

लइका मन ला शिक्षा देवँय, नित सहयोग बढ़ावँय हाथ।।


करिस बिहाव सजाइस सपना, बाढ़त गिस हें तब परिवार ।

नोनी बाबू जनम लीन हें, पाइस सुंदर खुशी अपार।।


शासकीय तब मिलिस नौकरी, गुरुजी बनिस पढ़ाइन पाठ।

पंडरिया मा रहे लगिन हें, सब के सुग्घर राहय ठाठ।।


पुस्तक 'पुरखा के इज्जत' अउ, 'माटी काया''तीज तिहार'।

खूब मिलिस सम्मान छपे मा, साहित्य जगत दिहिन बड़ प्यार।।


दो हजार सत्रह मा पाइस, अरुण निगम गुरुवर के हाथ।

छंद लेखनी शुरू करिन हे, अपन निभाइस पूरा साथ।।


साहित्य लेखन साथ करा के, बाँटिस वो बेटी ला ज्ञान।

बेटी ला सज्ञान बनाइस, रिहिस दिलावत वो सम्मान।।


छंद पचासों ज्ञानी बन के, दिहिस अचानक दुनिया छोड़।

कंचन काया माटी होगे, चल दिन जग ले नाता तोड़।।


सुन्ना हे संसार पिता बिन, सुरता मा हे मया दुलार।

हर सपना ला पूरा करहूँ, मैं 'माटी' के बेटी सार।।


सुरता मा हस सदा समाये, नइ भूलन हम घर परिवार। 

मैं बिरवा अँव तोर लगाये, रचथौं पापा छंद हजार।। 


प्रिया देवांगन *प्रियू*

राजिम

छत्तीसगढ़

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*सुरता : स्व.महेंद्र देवांगन"माटी"*


"माटी" के महिमा का गावँव,

                    रहिन नेक इंसान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,

              छोड़ चलिन पहिचान जी।।


गाँव बोरसी जनम धरिन जी,

                        देवांगन परिवार मा।

दाई - ददा   दुलरवा  बेटा,

                   नाम करिन संसार मा।।

सुग्घर महेंद्र लइका निकलिस,

                        होनहार संतान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,............


राजिम शहर रायपुर शिक्षा,

                    पंडरिया मा काम जी।

बेटा -बेटी शुभम -प्रिया अउ,  

                      पत्नी मंजू नाम जी।।   

"पुरखा के इज्जत" रच डारिन,

                     नेक रहिन इंसान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,.............


"माटी के काया" रचना अउ,

                    तीज तिहारी गोठ जी।

गीत - कहानी   छत्तीसगढ़ी,

                   हिंदी ओखर पोठ जी।।

छंद ज्ञान भरपूर रहिस फिर,

               नइ चिटको अभिमान जी।

ये दुनिया मा आ के भइया,............


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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सुरता माटी जी

गद्य-पद्य सिरजाइस सुग्घर, कलमकार गुन्निक भारी।

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


मानवता के रहिस पुजारी, बड़ निर्मल हिरदेवाला।

मातु शारदे बर वो माली, गूँथै शब्द-सुमन माला।

जेकर मन के गोदी नव रस,खेलैं देके किलकारी।

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


अत्याचारी के विरोध मा, वो जमके कलम चलावै।

बन जुबान मरहा-खुरहा के,भुइँया के गीत सुनावै।

तीज-तिहार अउ परंपरा के, महिमा बरनै सँगवारी।

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


'छंद के छ परिवार' डहर ले, श्रद्धांजलि अर्पित हावै।

'माटी जी' के दिव्यात्मा हा, परमानंद सदा पावै।

हरि किरपा के होवय बरसा, परिजन बर हो दुखहारी। 

माटी मा 'माटी जी' मिलगें, छोंड़ जगत मा चिनहारी।।


श्रद्धावनत

🙏

चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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6 comments:

  1. माटी जी ला सुग्घर काव्यांजलि, शत शत नमन

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  2. शत् शत् नमन माटी भैया ला🙏🙏💐
    छंद परिवार माटी भैया के कमी सदा रही😔

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  3. शत् शत् नमन स्व. माटी जी ला

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  4. सुग्घर भावांजलि।

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