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Friday, August 7, 2020

छप्पय छंद- महेंद्र कुमार बघेल

 छप्पय छंद- महेंद्र कुमार बघेल
               गोधन
होगॅंय अब घटकार, लोग लइका मन पढ़के।
इहाॅं नवा संस्कार, टाॅंठ बोली बढ़ चढ़के।
कोन करे अब काम, सुबे के गोबर कचरा।
मूॅंदय ऑंखी नाक, बहू लहरावत ॲंचरा।
दूध सबो ला चाहिए ,जतन करे ना कोय जी।
अइसन मा गरु गाय के, सेवा कइसे होय जी ।।

बीच सड़क पगुराय , गाय बेवारस जइसे।
मालिक करे प्रलाप, बता अब बनही कइसे।
गरवा छेल्ला छोड़ , कहय इनला गउ माता।
थूॅंक थूॅंक मा राॅंध,बरा के बनगे दाता।
गोसइया काबर नियम,अपन हाथ मा टोड़थे।
करय नहीं सेवा बने , बन मा गरवा छोड़थे।।

करलव नवा विचार, सबो के आदत सुधरे।
विनती हवय किसान,बंद ऑंखी हा उघरे।
पैरा सबो सकेल, खेत ले घर मा लानव।
आग लगाना छोड़,उही ला चारा जानव।
रसायनिक खातू करे,खेत-खार बरबाद जी।
छींचव जैविक खाद ला, पाव अन्न मा स्वाद जी।।

सोचत हे सरकार, योजना गोबर धन के।
आगे तुम्हर दुवार,किलो मा बेचव तनके।
करलव बने हियाव,गाय गरुवा के संगी ।
छेंक बाॅंध के राख,दूर होही अब तंगी।
गोरस गोबर मूत्र बर,सीखव गोधन ज्ञान ला।
लइका सहित जवान मन, राखव गउ के मान ला।।

बेंचत भरले बेच, बचत घुरवा मा डारव।
बनही जैविक खाद, उही मा अन उबजारव।
पोला होही खेत ,फसल नॅंगते उम्हियाही। 
बचही दवई खर्च,तभे लागत कम आही।
माटी के सेहत बने, सबझन करव उपाय ला।
दूध दही अउ खाद बर, रखव तहूॅं मन गाय ला।

छंदकार :- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव, राजनांदगांव

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