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Tuesday, August 11, 2020

कौसल्या के राम-छंद परिवार की प्रस्तुति

कौसल्या के राम-छंद परिवार की प्रस्तुति


दिलीप वर्मा सर: रोला- दिलीप कुमार वर्मा 

राजा बेटा मोर, तोर सुरता आवत हे। 
चल दे तँय बनवास, मोर जिवरा जावत हे। 
कइसे दुख बीसराँव, समझ कुछ नइ आवत हे। 
तोर बिना घर द्वार, तनिक अब नइ भावत हे।  

लइकापन के तोर, खेल बड़ सुरता आवय। 
अँगना परछी खोर, तोर चलना बड़ भावय। 
चिखला रहच सनाय, ददा के कोरा जावच। 
नहलाये ल बलाँव, मोर तिर तँय नइ आवच। 

चल दे गुरुकुल छोंड़, पढ़े बर जोरे जोरा।
सुन्ना होगे फेर, ददा दाई के कोरा। 
आये बरसों बाद, लगिस घर खुशियाँ आगे। 
चल दे मुनि के संग, फेर अँधियारी छागे। 

बइठे करम ठठाँव, करँव का तहीं बता दे। 
कर ले सुग्घर बिहाव, बहू घर तँय हर ला दे। 
सच होइस हे ख्वाब, मगर अलहन हर आगे। 
चल दे तँय बनवास, मरे जस मोला लागे।  

अरे दुलरुवा मोर, राम तँय जल्दी आजा।  
सुन्ना हे घर बार, बनाबो तोला राजा।
आँखी हर पथराय, तोर रसता ला जोहत। 
भरत तको पछताय, राज ला बोहत बोहत।

कौशिल्या के हाल, राम ला कोन बतावय। 
रोवत हे दिन रात, सँदेसा कइसे जावय। 
मया बँधे हे तार, सदा लेगत लानत हे।
कइसन काखर हाल, दुनो झन सब जानत हे। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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दिलीप वर्मा सर: ताटक छंद 

सुने हवँव कौशिल्या माता, छत्तीसगढ़ के रहवासी। 
इहाँ पले बाढ़े हावय ता, खाये होही वो बासी। 

दाई के सँग राम तको हर, छत्तीसगढ़ आये होही। 
चटनी बासी चौसेला अउ, चीला तक खाये होही। 

बरा बोबरा अँगरा रोटी,अउ मुठिया खाये होही। 
भौरा बाँटी गिल्ली डंडा, खेल मजा पाये होही। 

कौशिल्या के हरे दुलरुवा, जे माँगय ते पा जाही। 
छत्तीसगढ़ के खाही रोटी, ओ दउड़े इंहचे आही। 

मया पिरित के इहाँ खजाना, कोनो कहाँ भुलाए हे। 
तेकर सेती राम तको हर, बार बार जी आये हे।  

कौशलपुर वासी के भाँचा, राम हमर कहलाये हे। 
तेखर सेती मान राम कस, भाँचा मन सब पाये हे। 

मया लुटाये खातिर माई, नानी घर धर के आथे। 
नाना नानी अउ मामा के, संग मया अबड़े पाथे। 

भाँचा खातिर खुले खजाना, ले सकथे वो जे चाही।  
कौशिल्या के जेन दुलरुवा, जे चाही वो ते पाही।  

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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 "कौशल्या के राम" 
 मनखे रोज परिश्रम करथे, सुत जाथे थक के।
फेर समय हर चलते रहिथे, जुगजुग ले छक के।

रामलला हर रेंगत हावय, पाँव पाँव चल के।
हाँस हाँस के गोड़ मढ़ाथे, मन भर भर छलके।

कौशल्या हर नहवाथे तव, दया मया महकै।
देह पोछाथे शरण माँगथे, फुलवारी चहकै।

ओन्हा पहिरे बखत भागथे, झट के हाथ धरौ।
गदबिद गदबिद भागत हावय, एकर जतन करौ।

कौशल्या जब दूध पियाथे, बने पेट भरथे।
बने मजा ले ले के पीथे, अउ चोन्हा करथे।

दाल भात ला बने सान के, आज खवाइस हे।
सोच सोच के खाइस हावय, बने मिठाइस हे।

खावत खावत जूठा मुँह मा, भागत हे घर ले।
आजा बाबू बने अँचो ले, कुल्ला तो कर ले।

लल्ला के लीला गुरतुर हे, देखय अवध पुरी।
रामलला के दर्शन दुर्लभ, आ चल हमूँ जुरी।

शकुन्तला शर्मा 

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श्री राम भजन-सार छंद


मन मन्दिर मा राम नाम के, मूरत तैं बइठाले।
भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।

राम नाम के माला जपके, शबरी दाई तरगे।
राम सिया के चरण पखारे, केंवट के दुख झरगे।
बन बजरंगबली कस सेवक, जघा चरण मा पाले।
भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।।

राम नाम के जाप करे के, सुख समृद्धि सत आथे।
लोहा हा सोना हो जाथे, जहर अमृत बन जाथे।
जिहाँ राम हे तिहाँ कभू भी, दुख नइ डेरा डाले।
भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।

एती ओती चारो कोती, प्रभु श्री राम समाये।
सुर नर मुनि खग गुनी गियानी, जड़ गुण गुण गाये।
ये मवका नइ मील दुबारा, जीवन सफल बनाले।
भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छत्तीसगढ़)

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 गीत-रामलला के संदेश

अवधपुरी मा रामलला के,मंदिर के निर्माण।
अंतर मन ले श्रेष्ठ बनौ जी,होही जग कल्याण।।

प्रेम भाव ला हिरदे राखौ,कहिथे जी श्रीराम।
मानवता के राह चलौ सब,करलौ जग मा नाम।
द्वेष कपट के भाव त्याग दव,कहिथे वेद पुराण।
अंतर मन ले श्रेष्ठ बनौ जी,होही जग कल्याण।।

दीन दुखी के सेवा करबो,इही बनालौ ध्येय।
धर्म निभाके ए भुइयाँ मा,मनुज बनय उपमेय।
राम नाम के अनुपम वाणी,मन मा फूँकय प्राण।
अंतर मन ले श्रेष्ठ बनौ जी,होही जग कल्याण।।।।

लोभ मोह छिन भर के मानुष,रखौ बात के ध्यान।
मिहनत करना हे जिनगी मा,श्रेष्ठ इही हे ज्ञान।
कर्म सुघर होही तब मिलही,मनखे ला निर्वाण।
अंतर मन ले श्रेष्ठ बनौ जी,होही जग कल्याण।।

रचनाकार-आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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: *दाई कौशिल्या के बेटा राम* *(घनाक्षरी छंद)* 

अवधपुरी  के  राजा ,  महाराज  दशरथ ।
महारानी कैशिल्या के , बेटा गा श्री राम हे ।।

सुर नर मुनि जन , जेखर जी ध्यान करे ।
जपले  बिहनियाँ ले ,  सुग्घर  ये नाम हे ।।

सब के दुलरवाँ ये , तीनो झन दाई के गा ।
करथे जी सेवा राम , सूबा अउ शाम हे ।।  

गुरु माता अउ पिता , के सेवा ला जी करके ।
जग मा  बनाथे संगी , राम  सबो  काम हे ।।  

                   मोहन कुमार निषाद 
                    लमती , भाटापारा ,
                छंद के छ सत्र कक्षा 4

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 लावणी छंद :- राम जन्म 

जतन करौ मिलके सब झन हा, मिलके सुनता लावव जी।
रामराज आही तब भाई, मिलके खुशी मनावव जी।।

जब होइस हे राम जनम तब,  आये सब राजा द्वारे।
पुरवासी सब खुशी मनावै, घर घर सब दीया बारे।।

ओती राम जनम सुन राजा, भारी दान लुटावत हे।
जे पावय राखय नइ कोनो, देख देख सब जावत हे।।

राजा दशरथ गुरू बलाक़े, नाम धराये चारों के।
राम लखन शत्रुहन भरत जी, राखे चार कुमारों के।।

राम लखन रेंगय रद्दा मा, छम छम घुँघरू बाजत हे।
माँ कौशिल्या कैकेयी अउ, देख सुमित्रा हाँसत हे।।

हवय लखन जी राम संग मा, अवध गली मा सोहत हे।
भरत शत्रुहन के जोड़ी हा, सारी दुनिया मोहत हे।।

हाथ धरे हे धनुष बाण जी, देखय देखत रहि जावय।
राम भरत हे एक बरोबर, देखइया धोखा खावय।।

बइठे देखय राजा दशरथ , सुघ्घर हे चारों ललना।
नजर उतारय तीनों माई, सबो झुलावत हे पलना।।

अबड़ बलावय भात खाय बर, राजा घलो पुकारत हे।
 धुर्रा माटी सने राम ला, गोदी मा बइठारत हे।।

लहुट फेर भव मा नइ आवय, राम कृपा ले तर पाथे।
राम जनम जस कहिथे सुनथे, मनखे पार उतर जाथे।।

यज्ञ हवन झन करव इँहा जी, तप झन कर तन जर जाही।
रखके श्रद्धा राम नाम जप, बिगड़े कारज बन जाही।।

जगदीश "हीरा" साहू

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 छन्न पकैया छंद

छन्न पकैया छन्न पकैया,रख लव सुग्घर गढ़ के।
राम चरित ला अपन चरित मा,नित रामायण पढ़ के।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,आज्ञा पालन सुग्घर।
मातु पिता के बात मान के,वन मा भटकिस दर दर।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,बात धरव ये तगड़ा।
राम कभू होवन नइ देइस,भाई भाई झगड़ा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,धन दौलत के त्यागी।
जनहित के सब काम करे बर,राम बनिस बैरागी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,राम दयालू भारी।
बनिस अहिल्या के उध्दारक,पथरा बनगे नारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,भेद भाव नइ जानिस।
सबरी जूठा बोइर खाके,अपन सहिन ही मानिस।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,होय मित्रता अइसे।
संग करे सुग्रीव राम अउ,कष्ट हटा दे जइसे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,सबो जीव के हितवा।
वानर भालू पक्षी एखर,रिहिस सबो झन मितवा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,मर्यादा पुरुषोत्तम।
राह राम के चले जउन वो,मनुष हरे सर्वोत्तम।।

संतोष कुमार साहू
रसेला,छुरा,गरियाबंद

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शोभमोहन श्रीवास्तव: राम स्तुति (उल्लाला छंद)


राम रचे संसार ला,
राम करत किरवार हे।
ओला जेने जानथे, 
तेकर बेड़ा पार हे।।

पाँच जिनीस के खेत में,
बों झन गरबगुमान ला।
राम नाम छिंच बिजहा,
पाये भव निर्वान ला।।

पंँचतंत्री के टुनटुना,
साँस-साँस भज राम रे।
तै बटचल्ला जात अस,
येहर आही काम रे।।

बुध के सेती दुख अबड़,
तेकर ले बुध टार दौ।
बुध के बदला चेत मा,
राजा राम  पधार दौं।।

अंतस मा सुख दुख नहीं,
राम बसे हर साँस रे।
देखत करनी ला सबो,
मनखे के चुप हाँस रे।।

लराजरा ये जग सबो,
राम हमर सग लाग ए।
मनखे चोला दे हवय,
यहू हमर बड़भाग ए।।

शोभामोहन श्रीवास्तव

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 चित्रा श्रीवास: सरसी छंद

कौशिल्या के कोरा खेलय, नटखट नान्हे राम।
देख देख के हाँसय हावय,दशरथ हा निज धाम।।

अँचरा ढाँके दूध पियाये,ममता छलकत जाय।
आँखी काजर आँजत हावय,झूला मा झूलाय।।

सुग्घर झबला सीले हावय, रुनझुन पैरी पाँव।
पलकन मा राखे महतारी, नित अँचरा के छाँव।।

ठुमक ठुमक के खेलत हावय,दउड़त गिर गिर जाय।
रानी वोला देख देख के,मन मा हे हरषाय।।

साँवर सुग्घर रूप लाल के,चाँदी चूरा हाथ।
करधन कनिहा बाँधे हावय,करिया टीका माथ।।

गुरतुर बोली मिसरी घोरय,सुनके सब सुख पाय।
अवधपुरी के नर नारी मन,अपन भाग सहराय।।

चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़

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 बलराम चन्द्राकर जी: 

*माता कौशल्या अउ ओकर मयारुक बेटा राम*


दसरथ नंदन राज दुलारा, सब के प्यारा राम।
अँवतरे अयोध्या नगरी मा, लागै चारों धाम।। 

धन्य-धन्य दाई कौशल्या, नित नित करौं प्रणाम।
तोर कोख ले जनम धरे हे, रघुवंशी श्री राम।। 

माचे हावै सोर अवध मा, जगमग हे घर द्वार। 
प्रजा खुशी मा नाचत गावत, हरसत हे संसार।। 

राजमहल मा चारों कोती, किलकारी के गुंज। 
आज अकास म बगरे हावै, निक प्रकास के पुंज।। 

देव लोक मा बजत नगाड़ा, जै जै जै श्री राम ।
झूम झूम के गावत हावै, सुमर सुमर के नाम।। 

भानुमंत बेटी कौशल्या, छत्तीसगढ़ के मान।
राज दुलौरिन नोनी हमरे, बेटा जनिस महान।। 

कौशल्या महतारी बन गे, लिन हे प्रभु अवतार। 
तीन लोक के स्वामी जे हा, महिमा जिंकर अपार।।

रोम रोम मा हमर समागे, प्रभु के पबरित नाम। 
चरन छुवन भांचा के तब ले, हर भांचा मा राम।।

जै हो छत्तीसगढ़ के भुइयाँ, पावन निरमल छाँव।
माँ कौशल्या के मइके अउ, रघुपति मामा गाँव।। 

बलराम चंद्राकर भिलाई

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2 comments:

  1. सबो रचनाकार ला सुग्घर सृजन बर बधाई ।

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