छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
प्रणम्य गुरुवर
अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।
जल संरक्षण
बोरिंग हो गय बन्द, बूँद भर जल नइ आवय।
अब मनखे नलकूप, खना के प्यास बुतावय।
चार पाँच सौ फीट, धड़ाधड़ पम्प उतरगे।
संकट हर दू चार कदम दुरिहागे टरगे।
जल संरक्षण के पवित, कारज कोन सिधोय जी।
हिजगा-पारी देख के, कलम धरे कवि रोय जी।
ममता
माँ के मया दुलार, खाद माटी अउ पानी।
असतित पावय जीव, फरै फूलै जिनगानी।
ठुमुक उचावय पाँव, धरे अँगरी माई के।
बचपन फोरे कण्ठ, पाय ममता दाई के।
मातु असीस प्रभाव हे, बैतरणी के पार जी।
महतारी ममता बिना, सुन्ना जग संसार जी।
झन जा दाई
घाम छाँव बरसात, अभी मै जाने नइ हँव।
जिनगानी के रंग, कतिक पहिचाने नइ हँव।
अतका जल्दी हाँथ, छोड़ के झन जा दाई।
घर बन जिनगी मोर, मात जाही करलाई।
कहि देबे भगवान ला, तोर बने पहिचान हे।
नइ आवँव बैकुंठ मँय, पूत अभी नादान हे।
नव पीढ़ी के हाथ मा
मोला नइ तो भाय,काखरो गोठ उखेनी।
जेखर कारण देश राज मा झगरा ठेनी।
बुता काम ला छोड़,भटकथे माथा जाँगर।
शहर सनकथे रोज, गॉंव मा होथे पाँघर।
घर परिवार समाज ला, रद्दा नेक दिखाव जी।
नव पीढ़ी के हाथ मा, संविधान पकड़ाव जी।
लोक बड़ाई
परम्परा के नाँव, मार डारिस अनदेखी।
खेत खार ला बेंच, बघारय मनखे सेखी।
छट्ठी शादी ब्याह, तेरही खात खवाई।
बड़ खर्चीला आज, चलागन लोक बड़ाई।
लोक लाज के नाँव मा, खरचा लाख हजार जी।
पाँव निकलगे आज कल, चद्दर के ओ पार जी।
योग
दुरिहा रहिथे रोग, योग के संग जिये मा।
संझा बिहना रोज, स्वच्छ पुरवई पिये मा।
घंटा आधा एक, योग बर समय निकालन।
सेहत के हर बात, अपन आदत मा ढालन।
स्वास्थ लाभ ला पाय बर, अपनावन जी योग ला।
कर के प्राणायाम नित, दुरिहा राखन रोग ला।
धौंरी धौंरी बरी अदौरी
नोनी छत मा आज, बिराजे हे खटिया मा।
पीठी उरिद पिसान, धरे गंजी मलिया मा।
नान्हे नान्हे खोंट, बनावय बरी अदौरी।
माढ़य ओरी ओर, दिखत हे धौंरी धौंरी।
नोनी बड़ हुँशियार हे, लक्ष्मी के अँवतार जी।
आड़े अँतरे खाय बर, बरी करय तइयार जी।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
नवा नवा विसय म छंद पढ़े बर मिलत हे, ए छंद के छ अउ साधक मन के साझा परिश्रम के फल हे। छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करइया 'छंद के छ" तोर सदा जय हो!
ReplyDeleteजय जोहार।
Deleteगज़ब सुघ्घर सर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteबहुत बढ़िया बढिया विषय मे कलम चले है भाई
ReplyDeleteबधाई हो
धन्यवाद दीदी प्रणाम
Deleteबहुत अकन चिंतन के विषय मा अद्भुत कलम....चलत गुरु के आशीष मया दुलार संग सरलग अईसने आपके लेखनी समाज ला जगावत दिखथे गुरु देव जी 🙏🙏🙏 सादर बधाई स्वीकारें 🌹🌹🌹🌹🌹
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर जी
Deleteबहुत सुंदर छन्द भैया जी बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना सर 👌👌👌💐💐💐💐💐
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
Deleteवाहहहहहह भाव, शिल्प सम्पन्न लाजवाब छप्पय छंद।हार्दिक बधाई अहिलेश्वर जी।
ReplyDeleteसादर आभार गुरुदेव
Deleteअरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
ReplyDeleteनस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।
वाह वाह वाह गुरुदेव ऊपर शानदार छप्पय छंद
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteविविध विषय में सुग्घर छप्पय छंद सुखदेव सर।👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव
Deleteबहुत सुग्घर, गुरूवर
ReplyDeleteबधाई
सादर धन्यवाद
Deleteखूब सुग्घर 👌👌👌
ReplyDeleteबधाई हो ।
फेर हिंदी शबद बहुत आथे,थोकन ओहू ल धियान दे के पोठ करतेव...🙏🙏
जी बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबड़ सुग्घर सिरजाय हवं आदरणीय
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद टैगोर जी
Deleteबहुत सुग्घर गुरुजी👌👌👌
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर छंदबद्ध सृजन गुरुदेव 🙏🌹🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteबहुत सुंदर सृजन गुरुजी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन गुरुजी।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना गुरुदेव।
ReplyDeleteजय हो
बहुत सुन्दर गुरुदेव
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