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Sunday, August 23, 2020

छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

 


छप्पय छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

प्रणम्य गुरुवर

अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
नस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।

जल संरक्षण

बोरिंग हो गय बन्द, बूँद भर जल नइ आवय।
अब मनखे नलकूप, खना के प्यास बुतावय।
चार पाँच सौ फीट, धड़ाधड़ पम्प उतरगे।
संकट हर दू चार कदम दुरिहागे टरगे।
जल संरक्षण के पवित, कारज कोन सिधोय जी।
हिजगा-पारी देख के, कलम धरे कवि रोय जी।

ममता

माँ के मया दुलार, खाद माटी अउ पानी।
असतित पावय जीव, फरै फूलै जिनगानी।
ठुमुक उचावय पाँव, धरे अँगरी माई के।
बचपन फोरे कण्ठ, पाय ममता दाई के।
मातु असीस प्रभाव हे, बैतरणी के पार जी।
महतारी ममता बिना, सुन्ना जग संसार जी।

झन जा दाई

घाम छाँव बरसात, अभी मै जाने नइ हँव।
जिनगानी के रंग, कतिक पहिचाने नइ हँव।
अतका जल्दी हाँथ, छोड़ के झन जा दाई।
घर बन जिनगी मोर, मात जाही करलाई।
कहि देबे भगवान ला, तोर बने पहिचान हे।
नइ आवँव बैकुंठ मँय, पूत अभी नादान हे।

नव पीढ़ी के हाथ मा

मोला नइ तो भाय,काखरो गोठ उखेनी।
जेखर कारण देश राज मा झगरा ठेनी।
बुता काम ला छोड़,भटकथे माथा जाँगर।
शहर सनकथे रोज, गॉंव मा होथे पाँघर।
घर परिवार समाज ला, रद्दा नेक दिखाव जी।
नव पीढ़ी के हाथ मा, संविधान पकड़ाव जी।

लोक बड़ाई

परम्परा के नाँव, मार डारिस अनदेखी।
खेत खार ला बेंच, बघारय मनखे सेखी।
छट्ठी शादी ब्याह, तेरही खात खवाई।
बड़ खर्चीला आज, चलागन लोक बड़ाई।
लोक लाज के नाँव मा, खरचा लाख हजार जी।
पाँव निकलगे आज कल, चद्दर के ओ पार जी।

योग

दुरिहा रहिथे रोग, योग के संग जिये मा।
संझा बिहना रोज, स्वच्छ पुरवई पिये मा।
घंटा आधा एक, योग बर समय निकालन।
सेहत के हर बात, अपन आदत मा ढालन।
स्वास्थ लाभ ला पाय बर, अपनावन जी योग ला।
कर के प्राणायाम नित, दुरिहा राखन रोग ला।

धौंरी धौंरी बरी अदौरी

नोनी छत मा आज, बिराजे हे खटिया मा।
पीठी उरिद पिसान, धरे गंजी मलिया मा।
नान्हे नान्हे खोंट, बनावय बरी अदौरी।
माढ़य ओरी ओर, दिखत हे धौंरी धौंरी।
नोनी बड़ हुँशियार हे, लक्ष्मी के अँवतार जी।
आड़े अँतरे खाय बर, बरी करय तइयार जी।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

38 comments:

  1. नवा नवा विसय म छंद पढ़े बर मिलत हे, ए छंद के छ अउ साधक मन के साझा परिश्रम के फल हे। छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करइया 'छंद के छ" तोर सदा जय हो!

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  2. बहुत बढ़िया बढिया विषय मे कलम चले है भाई
    बधाई हो

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  3. बहुत अकन चिंतन के विषय मा अद्भुत कलम....चलत गुरु के आशीष मया दुलार संग सरलग अईसने आपके लेखनी समाज ला जगावत दिखथे गुरु देव जी 🙏🙏🙏 सादर बधाई स्वीकारें 🌹🌹🌹🌹🌹

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  4. बहुत सुंदर छन्द भैया जी बधाई

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद सर

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  6. बहुत ही सुंदर रचना सर 👌👌👌💐💐💐💐💐

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  7. वाहहहहहह भाव, शिल्प सम्पन्न लाजवाब छप्पय छंद।हार्दिक बधाई अहिलेश्वर जी।

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  8. अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रणम्य गुरुवर के।
    नस नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।
    पेंड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।
    पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।
    छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।
    गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।


    वाह वाह वाह गुरुदेव ऊपर शानदार छप्पय छंद

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  9. विविध विषय में सुग्घर छप्पय छंद सुखदेव सर।👌

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद गुरुदेव

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  10. बहुत सुग्घर, गुरूवर
    बधाई

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  11. खूब सुग्घर 👌👌👌
    बधाई हो ।

    फेर हिंदी शबद बहुत आथे,थोकन ओहू ल धियान दे के पोठ करतेव...🙏🙏

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  12. बड़ सुग्घर सिरजाय हवं आदरणीय

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  13. बहुत सुग्घर गुरुजी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद टैगोर जी

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  14. बहुत सुग्घर गुरुजी👌👌👌

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  15. बहुत सुग्घर गुरुजी

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  16. बहुत सुग्घर गुरुजी

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  17. बहुत सुग्घर गुरुजी

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  18. बहुत सुग्घर गुरुजी

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  19. बहुत सुग्घर गुरुजी

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  20. बड़ सुग्घर छंदबद्ध सृजन गुरुदेव 🙏🌹🙏

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  21. बहुत सुंदर सृजन गुरुजी।

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  22. बहुत सुंदर सृजन गुरुजी।

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  23. बहुत सुग्घर रचना गुरुदेव।
    जय हो

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  24. बहुत सुन्दर गुरुदेव

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