Followers

Saturday, July 21, 2018

ताटंक छंद - श्री पुरूषोत्तम ठेठवार

बिना ढंग के बाल कटाये, करिया चश्मा मारे हे
पढ़े लिखे मा भारी गदहा, बड़खा बात बघारे हे ।।1 ।।

बड़े बिहनिया घर ले निकरे, जोर कुदावत हे गाड़ी
अस लागत हे गिरे परे मा, टूट जही दूनो माड़ी ।।2 ।।

गुटखा खाये आनी बानी, गिरधारी के ठेला मा
टोरा फोरा मार पीट के, टूरा परे झमेला मा ।।3 ।।

बड़खा दादा बने गाँव के, बात करे आनी बानी
फोकट खाना ठग के खाये, पीयत हे  मउँहा पानी ।।4 ।।

काम धाम ले दुरिहा भागे, पढ़ना लिखना छोड़े हे
कतको झन ले झगरा करके, रिश्ता नाता टोरे हे ।।5 ।।

घर मा रोज तकादा करथें, टूरा लदे उधारी मा
दसो जघा मा हावै लागा, गिनती करें भिखारी मा ।।6 ।।

गाँव गली मा नाक कटाये,  नइ भावै महतारी ला
गहना धरके लागा लेथे, घर के लोटा थारी ला ।।7 ।।

सट्टा के लत लागे ठौका,  बइठे जोड़ घटाना मा
घर के धन ला नाश करत हे, बेचे धान किराना मा ।।8 ।।

बारा बजिहा रात होय मा, छुछवारत घर ला आथे
चोर बरोबर धीरे धीरे, कथरी ओढ़े सो जाथे ।।9 ।।

बाप कमाये बेटा खाये, आये गजब जमाना हे
सुख दुख ले का लेना देना, बस  अटिया के खाना हे ।।10 ।।

जाँगर चोट्टा काम करे बर,  अब झन कर  आना कानी
बने हकन के रोज कमा तँय, जस मिलही  आनी बानी ।।11 ।।

रचनाकार
पुरूषोत्तम ठेठवार
ग्राम -भेलवाँटिकरा
पोस्ट - उरदना
जिला - रायगढ
छत्तीसगढ

25 comments:

  1. बढ़िया ठेठवार सर जी

    ReplyDelete
  2. बहुत शानदार रचना सर

    ReplyDelete
  3. बहुत शानदार रचना सर

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया सृजन हे भाई

    ReplyDelete
  5. बहुत बढ़िया रचना बधाई हो ठेठवार जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद माटी सर जी

      Delete
  6. वाहहह ठेठवार जी.. सिरतोन गोठ ला बेधड़क लिखे हव..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुतेच धन्यवाद सर जी

      Delete
  7. बहुत बढ़िया ताटंक बधाई हो

    ReplyDelete
  8. सच्चाई के आइना देखावत सुघ्घर ताटंक छन्द ठेठवार भइया

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर धन्यवाद बहन जी

      Delete
    2. सादर धन्यवाद बहन जी

      Delete
  9. बनेच सुग्घर रचना आ0 ठेठवार जी

    ReplyDelete
  10. बहुत सुघ्घर भैया जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुतेच धन्यवाद भाई आप ल

      Delete
  11. अद्वितीय रचना है सर , आज के नालायक युवकों का यथार्थ चित्रण किया है आपने । जो बच्चे कर्तव्यहीन है , उस पर करारा व्यंग है । तत्कालीन समाज में जिसके ऐसे बच्चे हैं , उनके पिता का दुःख भी गौण रूप में सामने आया है । बहुत सुंदर.....आगे भी आप रचना करते रहें , इस रचना के लिए साधुवाद । ,🤡

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपको अंतर मन से धन्यवाद मेडम जी

      Delete
    2. आप हमारे मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को समझ कर मेरे जैसा अदना सा कलमकार का बड़ाई किये है आपको बारंबार धन्यवाद

      Delete
  12. कलजुग के लइका एँ भाई, गुलछर्रा उड़वावत हें।
    अपन कमाई के बेरा मा, ददा दाइ ल तिरियावत हे।।
    बहुत बढ़िया चित्रण करिन भाई हर ...बधाई भाई

    ReplyDelete
  13. आप ल मोर सादर प्रणाम अउ धन्यवाद आदरणीय जी

    ReplyDelete