हरियर खेती खार हे,दुलहन कस सिंगार हे।
छाए फुलवा डार हे ,झूमत आय बहार हे।।1।।
देखव संगी देख लव,सुघ्घर लगय पहाड़ हा।
झर झर झरना हा बहय,फूल लदे हे झाड़ हा।।2।।
रिगबिग ले फूले हवे, पियर गोंदा फूल हा।
सुघ्घर अँगना हा लगे,जइसे फुँदरा झूल हा।।3।।
हे जग जननी शारदे,पाँव परत हँव तोर ओ।
दे मोला बरदान तँय,बिनती सुनले मोर ओ।।4।।
दाई तोरे आसरा,नइ हे कउनों मोर ओ।
जग हा अब बैरी लगे,बिनती हे करजोर ओ।।5।।
बहुते जाड़ जनात हे,अब तो सहे न जाय जी।
आगी अँगरा के बिना,तन कइसे सुख पाय जी।।6।।
नदिया हा सुघ्घर दिखै,निरमल जल बोहात हे।
सोन सहीं मछरी दिखै,कइसन तउरत जात हे।।7।।
माटी मोर परान हे, जिनगी के आधार हे।
अन पानी सिरजाय हे,बहुते मया दुलार हे।।8।।
अजर अमर कोनों नहीं,झन टूटय जी मान हा।
मन से गरब उतार लव्, हो जाही कल्यान हा।।9।।
जादा झन गरजव इहाँ,समय होत बलवान जी।
एक समय जब आ जही,मिट जाही अभिमान जी।।10।।
नस्वर ए संसार हे, नस्वर ए तन जान जी।
मत कर माया मोह ला,झन कर गरब गुमान जी।।11।।
काम करव फल छोड़ के ,रखलव जी बिस्वास ला।
धीरज के फल मीठ हे,झन छोड़व जी आस ला।।12।।
दुनिया दुख के खान हे,पग पग मा दुख होय जी।
हँस के तँय पग राखबे, सपना ला संजोय जी।।13।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उल्लाला छंद (1) माटी
हरि के रूप कुम्हार हे,गढ़ गढ़ ठाठ बनाय जी।
माटी के चोला रचय,माटी मा मिल जाय जी।।1।।
महतारी माटी हवै,अन धन सब उपजात हे।
एखर रक्छा मिल करव,बेटा ल सोरियात हे।।2।।
चल उठ जाग जवान रे,माटी माथ नवाइ ले।
बेरा होगे चल बढ़े,धरती ला सिरजाइ ले।।3।।
माटी के कर बंदना,धुर्रा माथ लगाव जी।
खून पसीना छींच लव,धरती सरग बनाव जी।।4।।
ए माटी मा मन बसे,तन करबो न्योछार जी।
एखर करजा छूँटबो,तब होही उद्धार जी।।5।।
माटी ए तन जान ले,छोड़ कपट सब चाल रे।
माटी माटी हो जही,करले अपन खियाल रे।।6।।
दुनिया माटी के बने, माटी ले सब पात हे।
सकल पदारथ हे इहाँ,इहें दार अउ भात हे।।7।।
माटी के कुरिया हवे, दुनिया इहें बसाय जी।
पाप पून होवय इहाँ,माटी सबो समाय जी।।8।।
सब ग्रह अउ नक्षत्र मा, धरती मोर महान हे।
जीवन हा मिलथे इहाँ,करम धरम के खान हे।।9।।
उल्लाला छंद (2)
जिनगी ला तँय तार दे,नइया पार उतार दे।
हे जगजननी शारदे,हमला मया दुलार दे।।1।।
पाँव परत हँव तोर ओ,माता सुनले मोर ओ।
रखले अँचरा छोर ओ,दया मया तँय जोर ओ।।2।।
भाई मोर मितान तँय,रखले मोर परान तँय।
दया मया झन सान तँय,इही बात ला जान तँय।।3।।
झन बनहू नादान रे,मिट जाही सब मान रे।
रखव अपन पहिचान रे,जग में बनव महान रे।।4।।
सुन मुरली के तान ला,राधा भुलगे मान ला।
नाचय सूध भुलाइ के,कृष्णा कृष्णा गाइ के।।5।।
श्याम जपव कर जोर के,मन के गठरी छोर के।
हो जाही उद्धार हा,करही पालन हार हा।।6।।
तन मन ला तँय धोइ ले,बीज मया के बोइ ले।
गुरतुर बानी बोल ले,तहूँ मया रस घोल ले।।7।।
बेटी कस हितवा नहीं,बेटी कस मितवा नहीं।
बेटी मोर दुलार हे,दुनिया के सिंगार हे।।8।।
कोयल कुँहके डार मा,परसा फुलगे खार मा।
फुलवा झूमय नार मा,देख बसंत बहार मा।।9।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उल्लाल छंद (3)
ए बेटी तँय वरदान हस,लछमी तहीं कहाय ओ।
तँय बेटी मोर गरीब के,जग मा नाम कमाय ओ।।1।।
अब देख उरिद के दार ला,मन ओखर ललचात हे।
जब बरा मुँगेड़ी हा चुरय,खात खात गोठियात हे ।।2।।
चल श्याम जपव कर जोर के,मन मा ध्यान लगाइ के।
हो जाही जी उद्धार हा,चरन शरन मा जाइ के।।3।।
हे अम्बे तँय वरदायनी,दे मोला वरदान ओ।
मँय दीन हीन बालक हवौं,दे दे मोला ज्ञान ओ।।4।।
चल आजा जाबो डोंगरी,खाबो तेंदू चार ओ।
अउ महुआ बिन बिन नाचबो,दूनों जोड़ीदार ओ।।5।।
सिरजाथे जी परिवार ला,सबके वो आधार हे।
ए बेटी के गुन देखले,सब बर मया दुलार हे।।6।।
बड़ गुरतुर जी बोली हवै,छत्तीसगढ़ी राज के।
हे सिधवा मनखे मन इँहा,बलकरहा हे काज के।।7।।
बन उपवन मा ए फूल हा,देखव कइसे छाय हे।
ए दे मन भँवरा हा घलो,देख देख बइहाय हे।।8।।
कर स्वागत माँघ बसंत के,अब पुरवाई देत हे।
सुघ्घर अब अमराई दिखै,जस दुलहिन कस खेत हे।।9।।
चल महानदी के तीर मा,राजिम लोचन धाम के।
करबो दरसन भगवान के,दाई राजिम नाम के।।10।।
आ राजिम मेला कुम्भ के,संगम डुबकी मार लव।
चल महादेव दरसन करव,जिनगी अपन सँवार लव।।11।।
ए राम नाम हा सार हे,बाँकी झूठ लबार हे।
तँय जपले एखर नाम ला,जिनगी के उद्धार हे।।12।।
रचनाकार:- श्री बोधन राम निषाद राज
व्याख्याता(वाणिज्य विभाग)
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
छाए फुलवा डार हे ,झूमत आय बहार हे।।1।।
देखव संगी देख लव,सुघ्घर लगय पहाड़ हा।
झर झर झरना हा बहय,फूल लदे हे झाड़ हा।।2।।
रिगबिग ले फूले हवे, पियर गोंदा फूल हा।
सुघ्घर अँगना हा लगे,जइसे फुँदरा झूल हा।।3।।
हे जग जननी शारदे,पाँव परत हँव तोर ओ।
दे मोला बरदान तँय,बिनती सुनले मोर ओ।।4।।
दाई तोरे आसरा,नइ हे कउनों मोर ओ।
जग हा अब बैरी लगे,बिनती हे करजोर ओ।।5।।
बहुते जाड़ जनात हे,अब तो सहे न जाय जी।
आगी अँगरा के बिना,तन कइसे सुख पाय जी।।6।।
नदिया हा सुघ्घर दिखै,निरमल जल बोहात हे।
सोन सहीं मछरी दिखै,कइसन तउरत जात हे।।7।।
माटी मोर परान हे, जिनगी के आधार हे।
अन पानी सिरजाय हे,बहुते मया दुलार हे।।8।।
अजर अमर कोनों नहीं,झन टूटय जी मान हा।
मन से गरब उतार लव्, हो जाही कल्यान हा।।9।।
जादा झन गरजव इहाँ,समय होत बलवान जी।
एक समय जब आ जही,मिट जाही अभिमान जी।।10।।
नस्वर ए संसार हे, नस्वर ए तन जान जी।
मत कर माया मोह ला,झन कर गरब गुमान जी।।11।।
काम करव फल छोड़ के ,रखलव जी बिस्वास ला।
धीरज के फल मीठ हे,झन छोड़व जी आस ला।।12।।
दुनिया दुख के खान हे,पग पग मा दुख होय जी।
हँस के तँय पग राखबे, सपना ला संजोय जी।।13।।
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उल्लाला छंद (1) माटी
हरि के रूप कुम्हार हे,गढ़ गढ़ ठाठ बनाय जी।
माटी के चोला रचय,माटी मा मिल जाय जी।।1।।
महतारी माटी हवै,अन धन सब उपजात हे।
एखर रक्छा मिल करव,बेटा ल सोरियात हे।।2।।
चल उठ जाग जवान रे,माटी माथ नवाइ ले।
बेरा होगे चल बढ़े,धरती ला सिरजाइ ले।।3।।
माटी के कर बंदना,धुर्रा माथ लगाव जी।
खून पसीना छींच लव,धरती सरग बनाव जी।।4।।
ए माटी मा मन बसे,तन करबो न्योछार जी।
एखर करजा छूँटबो,तब होही उद्धार जी।।5।।
माटी ए तन जान ले,छोड़ कपट सब चाल रे।
माटी माटी हो जही,करले अपन खियाल रे।।6।।
दुनिया माटी के बने, माटी ले सब पात हे।
सकल पदारथ हे इहाँ,इहें दार अउ भात हे।।7।।
माटी के कुरिया हवे, दुनिया इहें बसाय जी।
पाप पून होवय इहाँ,माटी सबो समाय जी।।8।।
सब ग्रह अउ नक्षत्र मा, धरती मोर महान हे।
जीवन हा मिलथे इहाँ,करम धरम के खान हे।।9।।
उल्लाला छंद (2)
जिनगी ला तँय तार दे,नइया पार उतार दे।
हे जगजननी शारदे,हमला मया दुलार दे।।1।।
पाँव परत हँव तोर ओ,माता सुनले मोर ओ।
रखले अँचरा छोर ओ,दया मया तँय जोर ओ।।2।।
भाई मोर मितान तँय,रखले मोर परान तँय।
दया मया झन सान तँय,इही बात ला जान तँय।।3।।
झन बनहू नादान रे,मिट जाही सब मान रे।
रखव अपन पहिचान रे,जग में बनव महान रे।।4।।
सुन मुरली के तान ला,राधा भुलगे मान ला।
नाचय सूध भुलाइ के,कृष्णा कृष्णा गाइ के।।5।।
श्याम जपव कर जोर के,मन के गठरी छोर के।
हो जाही उद्धार हा,करही पालन हार हा।।6।।
तन मन ला तँय धोइ ले,बीज मया के बोइ ले।
गुरतुर बानी बोल ले,तहूँ मया रस घोल ले।।7।।
बेटी कस हितवा नहीं,बेटी कस मितवा नहीं।
बेटी मोर दुलार हे,दुनिया के सिंगार हे।।8।।
कोयल कुँहके डार मा,परसा फुलगे खार मा।
फुलवा झूमय नार मा,देख बसंत बहार मा।।9।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उल्लाल छंद (3)
ए बेटी तँय वरदान हस,लछमी तहीं कहाय ओ।
तँय बेटी मोर गरीब के,जग मा नाम कमाय ओ।।1।।
अब देख उरिद के दार ला,मन ओखर ललचात हे।
जब बरा मुँगेड़ी हा चुरय,खात खात गोठियात हे ।।2।।
चल श्याम जपव कर जोर के,मन मा ध्यान लगाइ के।
हो जाही जी उद्धार हा,चरन शरन मा जाइ के।।3।।
हे अम्बे तँय वरदायनी,दे मोला वरदान ओ।
मँय दीन हीन बालक हवौं,दे दे मोला ज्ञान ओ।।4।।
चल आजा जाबो डोंगरी,खाबो तेंदू चार ओ।
अउ महुआ बिन बिन नाचबो,दूनों जोड़ीदार ओ।।5।।
सिरजाथे जी परिवार ला,सबके वो आधार हे।
ए बेटी के गुन देखले,सब बर मया दुलार हे।।6।।
बड़ गुरतुर जी बोली हवै,छत्तीसगढ़ी राज के।
हे सिधवा मनखे मन इँहा,बलकरहा हे काज के।।7।।
बन उपवन मा ए फूल हा,देखव कइसे छाय हे।
ए दे मन भँवरा हा घलो,देख देख बइहाय हे।।8।।
कर स्वागत माँघ बसंत के,अब पुरवाई देत हे।
सुघ्घर अब अमराई दिखै,जस दुलहिन कस खेत हे।।9।।
चल महानदी के तीर मा,राजिम लोचन धाम के।
करबो दरसन भगवान के,दाई राजिम नाम के।।10।।
आ राजिम मेला कुम्भ के,संगम डुबकी मार लव।
चल महादेव दरसन करव,जिनगी अपन सँवार लव।।11।।
ए राम नाम हा सार हे,बाँकी झूठ लबार हे।
तँय जपले एखर नाम ला,जिनगी के उद्धार हे।।12।।
रचनाकार:- श्री बोधन राम निषाद राज
व्याख्याता(वाणिज्य विभाग)
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
उल्लाला के तीनों प्रकार मा अति उत्तम रचना।बधाई हो बोधन भैया
ReplyDeleteवाह्ह्ह भइया, सुग्घर छंद सिरझाय हव
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर उल्लाला छंद भैया बधाई
ReplyDeleteशानदार उल्लाला छन्द सृजन।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवाह्ह वाह निषाद भइया बहुते सुग्घर उल्लाला छंद मा शानदार वर्णन भइया बधाई हो
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा,सादर बधाई, छंद खजाना के बढ़िया मोल परखे हव,,
ReplyDeleteवाहःहः निषाद भैया जी
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर छंद सिरजाय हव।
बहुत बहुत बधाई ।
आपके लगन समर्पण ला नमन हे।
बहुत बढ़िया उल्लाला बधाई हो
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर बधाई हो भइया जी
ReplyDeleteनिषाद भाई बधाई 💐💐
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