भारतीय लइका के चाह
ददा एक बंदूक बिसा दे, महूँ चलाहूँ गोली सोज।
बैरी मनला मार भगाहूँ, चिपा कोनहा ले सब खोज।1।
आठ बछर के लइका मेहा, देंह नानकुन पातर हाथ।
फेर जबर हे आगी मन मा, देहूँ मँय सेना के साथ।2।
रंग केरवच चुपर गाल मा, खाँखी चैनस मा तन ढाँक।
करिया लंबा बूट पहिर के, कइहूँ बैरी तँय झन झाँक।3।
भारत माँ के महूँ लाल अँव, बनहूँ मँय बैरी बर काल।
राजनीति के दाँव पेंच अउ, उँखर बिफल करहूँ सब चाल।4।
मोर जतन ला दाई करथे, पीरा अड़बड़ सइके रोज।
कलपत वोला देखत रहिथँव, बता मोर कइसे हो भोज।5।
आँखी बड़का करके मेहा, कइहूँ ले अब येती कूद।
लइका-लइका ये भारत के, खुदे हरे गोला बारूद।6।
बैरी के छाती ला चिर के, महूँ निभाहूँ सेना रीत।
जइसे चाँटी बड़ हाथी ले, हिम्मत करके जाथे जीत।7।
लड़त-लड़त मर जहूँ भले मँय, तबले नइ देखावँव पीठ।
कोनों काहीं कहिले करले, देश जतन बर मँय हौं ढीठ।8।
ददा एक अउ अरजी सुनले, दाई के तँय रखबे ध्यान।
मुरछा खाके वो गिरही जब, मोर देखही तन बेजान।9।
बहिनी राखी धरे खोजही, कहिबे अब रद्दा झन देख।
गोठ बात पतिया ले बेटी, अब जादा झन तहूँ सरेख।10।
झन धरबे तँय तमगा एको, अउ पइसा ला देबे फेंक।
हाथ जोड़ बस बिनती करबे, मतलब के रोटी झन सेंक।11।
तीन रंग के कपड़ा लपटे, भले मोर तन हा झन आय।
फेर देश के जम्मों जनता, भारत माँ के जय बोलाय।12।
रचनाकार- ललित साहू "जख्मी"
पता- छुरा, जिला- गरियाबंद, छत्तीसगढ़
ददा एक बंदूक बिसा दे, महूँ चलाहूँ गोली सोज।
बैरी मनला मार भगाहूँ, चिपा कोनहा ले सब खोज।1।
आठ बछर के लइका मेहा, देंह नानकुन पातर हाथ।
फेर जबर हे आगी मन मा, देहूँ मँय सेना के साथ।2।
रंग केरवच चुपर गाल मा, खाँखी चैनस मा तन ढाँक।
करिया लंबा बूट पहिर के, कइहूँ बैरी तँय झन झाँक।3।
भारत माँ के महूँ लाल अँव, बनहूँ मँय बैरी बर काल।
राजनीति के दाँव पेंच अउ, उँखर बिफल करहूँ सब चाल।4।
मोर जतन ला दाई करथे, पीरा अड़बड़ सइके रोज।
कलपत वोला देखत रहिथँव, बता मोर कइसे हो भोज।5।
आँखी बड़का करके मेहा, कइहूँ ले अब येती कूद।
लइका-लइका ये भारत के, खुदे हरे गोला बारूद।6।
बैरी के छाती ला चिर के, महूँ निभाहूँ सेना रीत।
जइसे चाँटी बड़ हाथी ले, हिम्मत करके जाथे जीत।7।
लड़त-लड़त मर जहूँ भले मँय, तबले नइ देखावँव पीठ।
कोनों काहीं कहिले करले, देश जतन बर मँय हौं ढीठ।8।
ददा एक अउ अरजी सुनले, दाई के तँय रखबे ध्यान।
मुरछा खाके वो गिरही जब, मोर देखही तन बेजान।9।
बहिनी राखी धरे खोजही, कहिबे अब रद्दा झन देख।
गोठ बात पतिया ले बेटी, अब जादा झन तहूँ सरेख।10।
झन धरबे तँय तमगा एको, अउ पइसा ला देबे फेंक।
हाथ जोड़ बस बिनती करबे, मतलब के रोटी झन सेंक।11।
तीन रंग के कपड़ा लपटे, भले मोर तन हा झन आय।
फेर देश के जम्मों जनता, भारत माँ के जय बोलाय।12।
रचनाकार- ललित साहू "जख्मी"
पता- छुरा, जिला- गरियाबंद, छत्तीसगढ़
बहुत बढ़िया आल्हा छंद ललित भाई,बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया आल्हा छंद ललित भाई,बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर आल्हा छंद के सिरजन करे हव बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर आल्हा छंद के सिरजन करे हव बधाई
ReplyDeleteबढिया भाव,म आल्हा
ReplyDeleteवाहह वाहह ललित जी भावविभोर कर देव।मार्मिक रचना।
ReplyDeleteछंद बढ़िया लिखे हस ललित, फेर मैं हर "मेहा" के अर्थ ला नहीं समझत हवँ। मेहा = ?
ReplyDeleteसबो झन से मोर निवेदन हे कि एक - दूसर के गलती ल बतावयँ। शब्द ब्रह्म ए ।
सुग्घर रचे हव ललित जी।बधाई।
ReplyDeleteललित ! चिपा , सोज, खाँखी, चैनस,ए सबो शब्द समझ मा नहीं आवत हे। सुधार चाहे बदल ले।
ReplyDeleteबहुत ही ओजपूर्ण रचना,हमर देश के बच्चा-बच्चा देश ऊपर मर-मिटे बर तइयार हें,एमा संसो नइ हे।बहुत सुघ्घर रचना।
ReplyDeleteजम्मों झन ला बधाई अउ पंदोली दे बर बहुत बहुत आभार..।
ReplyDeleteआदरणीया शंकुतला दीदी प्रणाम..
ReplyDeleteआपके मार्गदर्शन शिरोधार्य हे.. आप जेन शब्द मनके बारे मा कहे हव.. वोमा मात्रा त्रुटि हे.. या कोनो आने ढंग ले लिखे जाथे.. या एमन ला छत्तीसगढ़ी मा मा काहीं अउ केहे जाथे.. थोकन फोरिया के समझातेव त कृपा होतिस..।
शानदार आल्हा सृजन।
ReplyDeleteअब्बड़ सुग्घर आल्हा छंद भइया बधाई हो
ReplyDeleteबढ़िया छंद सिरजाय हव भाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बधाई हो भाई जी
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteछंद परिवार के आभार.. प्रणाम..।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आल्हा छंद ललित भइया बधाई हो
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