1-वीणापाणी
वीणापाणी दे मया, कर मोरो उद्धार।
मोला तँय हा ज्ञान दे, अतका कर उपकार।।
अतका कर उपकार, मोर तँय अवगुण हर ले।
दे विद्या के दान, अपन तँय सेवक कर ले।।
ओखर जग मा नाम, बसे तँय जेखर वाणी।
दाई आशा मोर, तहीं हस वीणापाणी।।
2-गुरु
गुरु के चरण पखार लव, मन ले देवव मान।
गुरु के किरपा ले बनय, मूरख हा गुणवान।।
मूरख हा गुणवान, चतुर अउ निर्मल बनथे।
जेखर पर गुरु हाथ, उही आकाश म तनथे।।
जइसे गरमी घाम, छाँव निक लागे तरु के।
वइसे शीतल होय, वचन हा हरदम गुरु के।।
3-मेहमान
जाए जब कोनो कहूँ, घर होथे सुनसान।
कुरिया सब्बो हे भरे, आये हें मेहमान।।
आये हें मेहमान, भीड़ घर मा हय भारी।
हल्ला-गुल्ला गोठ, चलत हे दुनियादारी।।
अंतस हा सुख पाय, सबो झन के सकलाए।
मन भारी हो जाय, लहुट सब झन जब जाए।।
4-गरहन
गरहन लागिस चाँद ला, होगे ओहा लाल।
थोरिक बेरा ले रहिस, ओखर ऊपर काल।।
ओखर ऊपर काल, धरम मा अइसन कइथे।
सूतक जब ले होय, सबो झन लाँघन रइथे।।
कइथे जी विज्ञान, नहीं मानव गा अलहन।
सब्बे करलव काम, रहय जब लागे गरहन।।
5-सँगवारी
सँगवारी के साथ मा, होगे कोरी साल।
सात जनम के साथ हे, रहिथन हम खुशहाल।।
रहिथन हम खुशहाल, जगत ले का करना हे।
दुख-सुख लेबो बाँट, सँग म जीना-मरना हे।।
चार-मुड़ा ममहाय, फुले जीवन फुलवारी।
जेखर नाम उपेन्द्र, उही मोरे सँगवारी ।।
6-मानसून
गरमी हा जावत हवय, आ गे हे बरसात।
जिउ मा ठंडक हे पड़े, मानसून के आत।।
मानसून के आत , सबो के मन हरसागे।
उमड़-घुमड़ के देख, अबड़-अक बादर आ गे।।
हरियर हो गे खेत, देख माटी के नरमी।
पड़ गे हे बौछार, लहुट जावत हे गरमी।।
रचनाकार- श्रीमती नीलम जायसवाल।
खुर्सीपार, भिलाई, जि. - दुर्ग, (छत्तीसगढ़)
वीणापाणी दे मया, कर मोरो उद्धार।
मोला तँय हा ज्ञान दे, अतका कर उपकार।।
अतका कर उपकार, मोर तँय अवगुण हर ले।
दे विद्या के दान, अपन तँय सेवक कर ले।।
ओखर जग मा नाम, बसे तँय जेखर वाणी।
दाई आशा मोर, तहीं हस वीणापाणी।।
2-गुरु
गुरु के चरण पखार लव, मन ले देवव मान।
गुरु के किरपा ले बनय, मूरख हा गुणवान।।
मूरख हा गुणवान, चतुर अउ निर्मल बनथे।
जेखर पर गुरु हाथ, उही आकाश म तनथे।।
जइसे गरमी घाम, छाँव निक लागे तरु के।
वइसे शीतल होय, वचन हा हरदम गुरु के।।
3-मेहमान
जाए जब कोनो कहूँ, घर होथे सुनसान।
कुरिया सब्बो हे भरे, आये हें मेहमान।।
आये हें मेहमान, भीड़ घर मा हय भारी।
हल्ला-गुल्ला गोठ, चलत हे दुनियादारी।।
अंतस हा सुख पाय, सबो झन के सकलाए।
मन भारी हो जाय, लहुट सब झन जब जाए।।
4-गरहन
गरहन लागिस चाँद ला, होगे ओहा लाल।
थोरिक बेरा ले रहिस, ओखर ऊपर काल।।
ओखर ऊपर काल, धरम मा अइसन कइथे।
सूतक जब ले होय, सबो झन लाँघन रइथे।।
कइथे जी विज्ञान, नहीं मानव गा अलहन।
सब्बे करलव काम, रहय जब लागे गरहन।।
5-सँगवारी
सँगवारी के साथ मा, होगे कोरी साल।
सात जनम के साथ हे, रहिथन हम खुशहाल।।
रहिथन हम खुशहाल, जगत ले का करना हे।
दुख-सुख लेबो बाँट, सँग म जीना-मरना हे।।
चार-मुड़ा ममहाय, फुले जीवन फुलवारी।
जेखर नाम उपेन्द्र, उही मोरे सँगवारी ।।
6-मानसून
गरमी हा जावत हवय, आ गे हे बरसात।
जिउ मा ठंडक हे पड़े, मानसून के आत।।
मानसून के आत , सबो के मन हरसागे।
उमड़-घुमड़ के देख, अबड़-अक बादर आ गे।।
हरियर हो गे खेत, देख माटी के नरमी।
पड़ गे हे बौछार, लहुट जावत हे गरमी।।
रचनाकार- श्रीमती नीलम जायसवाल।
खुर्सीपार, भिलाई, जि. - दुर्ग, (छत्तीसगढ़)
वाह! नीलम बहिनी सुग्घर कुंडलिया छंद
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ReplyDeleteवाह! दीदी बहुत बढ़िया रचना हे बधाई 💐
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सृजन नीलम जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो
बहुत सुघ्घर रचना हे
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया नीलम जी..।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया छंद,,बधाई!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया छंद,,बधाई!!
ReplyDeleteबधाई हो नीलम बहिनी,सुग्घर कुण्डलिया छंद��
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलियाँ
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बढ़िया रचना बर बधाई हो
ReplyDeleteबढ़िया रचना बर बधाई हो
ReplyDeleteसब्बो कुंडलियाँ लाज़वाब हे बहिनीईईई...
ReplyDeleteहिरदे ले सादर बधाई.... मजा आगे पढ़के...
वाह वाह नीलम जी।शानदार कुण्डलिया छन्द।
ReplyDeleteवाह्ह दीदी अब्बड़ सुग्घर कुंडलिया छंद बधाई हो दीदी
ReplyDeleteअनुपम कृति दीदी
ReplyDeleteअनुपम कृति दीदी
ReplyDeleteवाहहह वाहह एक ले एक कुण्डलिया छंद।
ReplyDeleteसुग्घर रचना बर बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई - - - - !
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार
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