(1) बसंत बहार:-
देखौ छाय बहार, आय हे गावत गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
फूले परसा लाल, कोयली बोलय बानी।
गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।
(2) पानी:-
पानी पीयव छान,छान लव बढ़िया दाई।
सुघ्घर घइला धोय,होय झन ओ करलाई।।
इही बात ला सोच,करौ झन नादानी ला।
जिनगी के आधार,देख लौ जिनगानी ला।।
(3) आगी:
आगी ला तँय बार, जोर दे लकड़ी छेना।
साग भात अउ दार,चाय ला बढ़िया देना।।
आगी सबो चुरोय,जेन ला तँय ह चुरोबे।
चुर पक के तइयार,खाइ के बढ़िया सोबे।।
(4) बेटी:
बेटी फूल गुलाब, बाग के सुघ्घर लाली।
देखौ खुशियाँ छाय,बनौ जी ओखर माली।।
घर के वो सिंगार, ददा के मन मा बसथे।
दाई देय दुलार, मया मा बेटी हँसथे।।
(5) लछमी दाई:-
लछमी दाई तोर,पाँव ला परथौ मँय हा।
दे मोला आशीष,तार दे मोला तँय हा।।
दीन हीन मँय तोर,देखले बेटा आवव।
रहिबे कुरिया मोर,आरती तोरे गावव।।
(6) माटी :-
धरती दाई मोर,जनम ला मँय हा पावँव।
तोला माथ नवाय, बंदना रोजे गावँव।।
अन पानी सिरजाय,चलौ जी महिमा गाबो।
गंगा जमना धार,मया के फूल चढ़ाबो।।
(7) हाट बजार :-
मोर गाँव के हाट, लगे हे भारी रेला।
देखव मनखे आय,भीड़ जस लागै मेला।।
रंग - रंग के साग,आय हे भाजी पाला।
मुर्रा लाडू सेव, देख ले गुप-चुप वाला।।
(8) विरहा:-
करिया बादर आय,मोर मन मा छावत हे।
रही रही के सोर,पिया जी के लावत हे।।
नाचय बने मँजूर,देख लव ताना मारय।
सुरता मोला आय,कोन अब जिनगी तारय।।
(9)ए तन माटी
ए तन माटी जान,मोह ला झन कर जादा।
रहिले तँय हा साथ,राख ले जिनगी सादा।।
कोन जनी ए जीव, उड़ा जाही कब भाई।
करले बने उपाय,राम जी रही सहाई।।
(10)सुरता आथे
सुरता आथे तोर,भुलावँव नइ मँय तोला ।
घड़ी घड़ी मन रोय,सोच हा आथे मोला।।
चैन घलो नइ आय,करौ का कान्हा मँयहा।
अब्बड़ धरथौ धीर,तीर आ जल्दी तँयहा।।
रचनाकार - श्री बोधन राम निषाद राज
व्याख्याता (वाणिज्य)
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
देखौ छाय बहार, आय हे गावत गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
फूले परसा लाल, कोयली बोलय बानी।
गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।
(2) पानी:-
पानी पीयव छान,छान लव बढ़िया दाई।
सुघ्घर घइला धोय,होय झन ओ करलाई।।
इही बात ला सोच,करौ झन नादानी ला।
जिनगी के आधार,देख लौ जिनगानी ला।।
(3) आगी:
आगी ला तँय बार, जोर दे लकड़ी छेना।
साग भात अउ दार,चाय ला बढ़िया देना।।
आगी सबो चुरोय,जेन ला तँय ह चुरोबे।
चुर पक के तइयार,खाइ के बढ़िया सोबे।।
(4) बेटी:
बेटी फूल गुलाब, बाग के सुघ्घर लाली।
देखौ खुशियाँ छाय,बनौ जी ओखर माली।।
घर के वो सिंगार, ददा के मन मा बसथे।
दाई देय दुलार, मया मा बेटी हँसथे।।
(5) लछमी दाई:-
लछमी दाई तोर,पाँव ला परथौ मँय हा।
दे मोला आशीष,तार दे मोला तँय हा।।
दीन हीन मँय तोर,देखले बेटा आवव।
रहिबे कुरिया मोर,आरती तोरे गावव।।
(6) माटी :-
धरती दाई मोर,जनम ला मँय हा पावँव।
तोला माथ नवाय, बंदना रोजे गावँव।।
अन पानी सिरजाय,चलौ जी महिमा गाबो।
गंगा जमना धार,मया के फूल चढ़ाबो।।
(7) हाट बजार :-
मोर गाँव के हाट, लगे हे भारी रेला।
देखव मनखे आय,भीड़ जस लागै मेला।।
रंग - रंग के साग,आय हे भाजी पाला।
मुर्रा लाडू सेव, देख ले गुप-चुप वाला।।
(8) विरहा:-
करिया बादर आय,मोर मन मा छावत हे।
रही रही के सोर,पिया जी के लावत हे।।
नाचय बने मँजूर,देख लव ताना मारय।
सुरता मोला आय,कोन अब जिनगी तारय।।
(9)ए तन माटी
ए तन माटी जान,मोह ला झन कर जादा।
रहिले तँय हा साथ,राख ले जिनगी सादा।।
कोन जनी ए जीव, उड़ा जाही कब भाई।
करले बने उपाय,राम जी रही सहाई।।
(10)सुरता आथे
सुरता आथे तोर,भुलावँव नइ मँय तोला ।
घड़ी घड़ी मन रोय,सोच हा आथे मोला।।
चैन घलो नइ आय,करौ का कान्हा मँयहा।
अब्बड़ धरथौ धीर,तीर आ जल्दी तँयहा।।
रचनाकार - श्री बोधन राम निषाद राज
व्याख्याता (वाणिज्य)
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
वाह वाह खूब सर जी
ReplyDeleteसुघ्घर रोला छंद बोधन जी,बधाई।।
ReplyDeleteसुघ्घर रोला छंद बोधन जी,बधाई।।
ReplyDeleteवाहह वाहहह निषाद जी।लाजवाब!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रोला छन्द
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
वाहःहः बहुत बढ़िया सृजन हे निषाद भैया
ReplyDeleteबधाई हो निषाद भाई,सुघ्घर रोला छंद💐💐
ReplyDeleteअनुपम कृति सर
ReplyDeleteअनुपम कृति सर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना भइया आप मन के बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर रोला छंद भाई जी
ReplyDeleteवाह वाह शानदार रोला छन्द।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रोल छंद निषाद जी
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