*हे गजानन*
हे गजानन विघ्नहर्ता, कर कृपा गणराज जी।
काम बिगड़े तँय बनाबे, अउ बचाबे लाज जी।।
छोड़ सबला आय हावँव, आज तोरे धाम जी।
मोर बिनती हे इही प्रभु, तोर सुमिरँव नाम जी।।1।।
तोर मुसवा के सवारी, लाभ शुभ हे साथ मा।
मोर जिनगी डोर हावय, आज तोरे हाथ मा।।
हे भरोसा काज करबे, लाज रखबे मोर तँय।
दुःख-पीरा दूर करबे, राख सबला जोर तँय।।2।।
*सुनता*
तँय बने निरवार खेती, पाग आही नेत मा।
धान उपजाबो जगत बर, काम करबो खेत मा।।
खाँध मा हे भार जग के, आज तैहा जान ले।
तोर पाछू नाँव होही, बात तैहा मान ले।।3।।
*विश्व गुरु भारत*
विश्व गुरु भारत बनय गा, मोर ये अरमान हे।
देवता कस मान पूजय, जे जगत बर शान हे।।
एक दूसर बैर टूटय, मिल बढ़ाहौ नाम ला।
जे विरोधी हे हमर गा, कर सबो के काम ला।।4।।
आस रख झन कोन आही, तोर जग मा काम गा।
बढ़ अपन रस्ता निवारत, तँय बिहनिया शाम गा।।
एक दिन सब साथ होही, नीक कहना मान गा।
तप सुफल होगे समझ ले, अउ बने पहचान गा।।5।।
*पानी हे अनमोल*
रख जतन के आज पानी, काम आही काल ये।
कीमती हावय घटे ये, जान सालों-साल ये।
एक दिन पानी बिना जब, होय हाहाकार गा।
तब समझ आही कहत हँव, जग म पानी सार गा।।6।।
पेंड़ काटे घर बनाये, संग नदिया पाट गा।
कर प्रदूषण टोर बँधना, तँय बिगाड़े घाट गा।।
हित अपन भर देख तैहा, कर सबो सो बैर गा।
फल करम के तोर मिलही, तब न तोरे खैर गा।।7।।
रचना :- जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़
हे गजानन विघ्नहर्ता, कर कृपा गणराज जी।
काम बिगड़े तँय बनाबे, अउ बचाबे लाज जी।।
छोड़ सबला आय हावँव, आज तोरे धाम जी।
मोर बिनती हे इही प्रभु, तोर सुमिरँव नाम जी।।1।।
तोर मुसवा के सवारी, लाभ शुभ हे साथ मा।
मोर जिनगी डोर हावय, आज तोरे हाथ मा।।
हे भरोसा काज करबे, लाज रखबे मोर तँय।
दुःख-पीरा दूर करबे, राख सबला जोर तँय।।2।।
*सुनता*
तँय बने निरवार खेती, पाग आही नेत मा।
धान उपजाबो जगत बर, काम करबो खेत मा।।
खाँध मा हे भार जग के, आज तैहा जान ले।
तोर पाछू नाँव होही, बात तैहा मान ले।।3।।
*विश्व गुरु भारत*
विश्व गुरु भारत बनय गा, मोर ये अरमान हे।
देवता कस मान पूजय, जे जगत बर शान हे।।
एक दूसर बैर टूटय, मिल बढ़ाहौ नाम ला।
जे विरोधी हे हमर गा, कर सबो के काम ला।।4।।
आस रख झन कोन आही, तोर जग मा काम गा।
बढ़ अपन रस्ता निवारत, तँय बिहनिया शाम गा।।
एक दिन सब साथ होही, नीक कहना मान गा।
तप सुफल होगे समझ ले, अउ बने पहचान गा।।5।।
*पानी हे अनमोल*
रख जतन के आज पानी, काम आही काल ये।
कीमती हावय घटे ये, जान सालों-साल ये।
एक दिन पानी बिना जब, होय हाहाकार गा।
तब समझ आही कहत हँव, जग म पानी सार गा।।6।।
पेंड़ काटे घर बनाये, संग नदिया पाट गा।
कर प्रदूषण टोर बँधना, तँय बिगाड़े घाट गा।।
हित अपन भर देख तैहा, कर सबो सो बैर गा।
फल करम के तोर मिलही, तब न तोरे खैर गा।।7।।
रचना :- जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़
वाहःहः भाई अति सुघ्घर गीतिका छंद सिरजाय हव।
ReplyDeleteसुनता के जगह सुमता आना चाही का भाई
जी दीदी धन्यवाद
Deleteजी दीदी धन्यवाद
Deleteबधाई हो साहू भैया
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
Deleteधन्यवाद भाई जी
Deleteसुघ्घर,सुघ्घर विषय के गीतिका आदरणीय।,
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुघ्घर,सुघ्घर विषय के गीतिका आदरणीय।,
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteधन्यवाद
Deleteवाहहह वाहहह शानदार जगदीश सर।
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteसुग्घर रचे हव साहू जी बधाई।
ReplyDeleteआभार सर जी
Deleteबहुत खूब गुरुदेव जी
ReplyDeleteधन्यवाद निषाद जी
Deleteवाह्ह वाह हीरा भइया बहुते सुग्घर गीतिका छंद भइया शानदार
ReplyDeleteधन्यवाद मोहन भाई
Deleteधन्यवाद मोहन भाई
Deleteवाह्ह्ह वाह्ह्ह सर जी
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