*अरजी हवय हनुमान जी*
अरजी हवय हनुमान जी, पूरा करव मनकामना।
ले आस ठाड़े हे भगत, झन होय दुख ले सामना।।
अब टोर माया मोह ला, प्रभु जी सुनव आराधना।
मन मा रहय प्रभु नाम हा, सब छोड़ करिहौं साधना।।1।।
*मोर गाँव*
सुनता लगा के सब रहव, मिलके करव सब काम गा।
बनही सरग तब गाँव हा, होही सबो जग नाम गा।।
बीते जिहाँ ननपन हमर, खेलेन कतको खेल गा।
झन छोड़ जाबे भूल के, लगही शहर हर जेल गा।।2।।
*मजदूर अब मजबूर हे*
मजदूर अब मजबूर हे, मजधार मा जिनगी लगय।
बड़ दुःख मा परिवार हे, घर छोड़ दूसर मन ठगय।।
अब मान नइहे काम के, कोनो बतावव राह जी।
दे दाम बड़ अहसान कर, लेथे अमीरी आह जी।।3।।
कतको बनाये घर तभो, खुद झोपड़ी मा रहि जथे।
वो घाम पानी जाड़ सब, बाहिर सबो ला सहि जथे।।
जानव अपन कस आज ले, हे आस अब सम्मान दव।।
झन छोड़ पिछवाये डगर, अब संग अपने जान दव।।4।।
*बेटी ला बेटा बरोबर जानव*
झन मारिहौ बेटी अपन, देवी सहीँ हे जान लव।
अब सोंच ला बदलव सबो, बेटा बरोबर मान लव।।
जे काम बेटा नइ करय, बेटी करय वो काम जी।
हर काम मा आगू हवय, बगराय कुल के नाम जी।।5।।
भेजव सबो इसकूल अब, बेटी घलो हा पढ़ लिही।
होही खड़ा खुद पाँव मा, जिनगी अपन वो गढ़ लिही।।
संसार मा सम्मान हे, वो शक्ति के अवतार ये।
आगू बढ़ावय सृष्टि ला, नर के हवय आधार ये।।6।।
जगदीश "हीरा" साहू
कडार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
अरजी हवय हनुमान जी, पूरा करव मनकामना।
ले आस ठाड़े हे भगत, झन होय दुख ले सामना।।
अब टोर माया मोह ला, प्रभु जी सुनव आराधना।
मन मा रहय प्रभु नाम हा, सब छोड़ करिहौं साधना।।1।।
*मोर गाँव*
सुनता लगा के सब रहव, मिलके करव सब काम गा।
बनही सरग तब गाँव हा, होही सबो जग नाम गा।।
बीते जिहाँ ननपन हमर, खेलेन कतको खेल गा।
झन छोड़ जाबे भूल के, लगही शहर हर जेल गा।।2।।
*मजदूर अब मजबूर हे*
मजदूर अब मजबूर हे, मजधार मा जिनगी लगय।
बड़ दुःख मा परिवार हे, घर छोड़ दूसर मन ठगय।।
अब मान नइहे काम के, कोनो बतावव राह जी।
दे दाम बड़ अहसान कर, लेथे अमीरी आह जी।।3।।
कतको बनाये घर तभो, खुद झोपड़ी मा रहि जथे।
वो घाम पानी जाड़ सब, बाहिर सबो ला सहि जथे।।
जानव अपन कस आज ले, हे आस अब सम्मान दव।।
झन छोड़ पिछवाये डगर, अब संग अपने जान दव।।4।।
*बेटी ला बेटा बरोबर जानव*
झन मारिहौ बेटी अपन, देवी सहीँ हे जान लव।
अब सोंच ला बदलव सबो, बेटा बरोबर मान लव।।
जे काम बेटा नइ करय, बेटी करय वो काम जी।
हर काम मा आगू हवय, बगराय कुल के नाम जी।।5।।
भेजव सबो इसकूल अब, बेटी घलो हा पढ़ लिही।
होही खड़ा खुद पाँव मा, जिनगी अपन वो गढ़ लिही।।
संसार मा सम्मान हे, वो शक्ति के अवतार ये।
आगू बढ़ावय सृष्टि ला, नर के हवय आधार ये।।6।।
जगदीश "हीरा" साहू
कडार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
बहुत सुंदर रचना भैयाजी
ReplyDeleteधन्यवाद भइया जी
Deleteवाह्ह वाह वाह्ह हीरा भइया अब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण रचना सिरजाय हव भइया बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद मोहन भाई
Deleteधन्यवाद मोहन भाई
Deleteबड़ सुघ्घर हरिगीतिका छंद सिरजाये हव भइया जी,बधाई!!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबड़ सुघ्घर हरिगीतिका छंद सिरजाये हव भइया जी,बधाई!!
ReplyDeleteबहुँत सुग्घर हरिगीतिका छंद रचे हव सरजी।बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteधन्यवाद सर जी
Deleteवाह वाह सुघ्घर
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteअनंत बधाई आपमन ला💐💐👌
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाहहह वाहहह जगदीश सर शानदार!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है भाई
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteधन्यवाद दीदी
Deleteबहुत सुंदर हरिगीतिका छंद भइया बहुत बहुत बधाई आप ला
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश भाई
Deleteवाह वाह
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