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Monday, July 2, 2018

कुंडलिया छंद - श्री मोहन कुमार निषाद

जिनगी के आशा

आसा जादा झन करव , जिनगी के दिन चार ।
भाग दउड़ जी हे लगे , थकना हे बेकार ।
थकना हे बेकार , रोज आघू हे बढ़ना ।
नइ होवन कमजोर , नवा रद्धा हे गढ़ना ।
मनले झन जी हार , जान ले हे परिभासा ।
रही बने खुशहाल , इही जिनगी के आसा ।।

मानव झन हार

होवय झन अब हार जी , करत रहव परयास ।
मिलबे करही जीत हर , राख अटल विश्वास ।
राख अटल विश्वास , धीर जी मनमा धरले ।
होबे झन कमजोर , परन जी अइसन करले ।
बैरी तोला देख , रोज जी दुख मा रोवय ।
मान कभू झन हार , नाम जी जग मा होवय ।।

सेवा जिनगी सार

करले सेवा जी बने , जिनगी अपन सँवार ।
बात कहत हँव मानले , सेवा हावय सार ।
सेवा हावय सार , भेद जी झन तँय करबे ।
एक सबे ला मान , सबो के दुख ला हरबे ।
मिलही जी भगवान , सत्य के रद्धा धरले ।
होबे भवले पार , करम जी अइसन करले ।।

खेती

खेती ला जी कर बने , सुग्घर होही धान ।
गोबर खातू डार ले , कहना मोरो मान ।
कहना मोरो मान , धान ला सुग्घर पाबे ।
नइ होवय नुकसान , बाद मा नइ पछताबे ।
बात हवय जी सार , कहत हँव येखर सेती ।
आगे हे विज्ञान , करव जी सुग्घर खेती ।।

नारी शक्ति

नारी शक्ति रूप ये , झन समझव कमजोर ।
महिमा जेखर हे कहे , देवन मन चहु ओर ।
देवन मन चहु ओर , सार जी येला मानव ।
कर लेवव पहिचान , रूप ला येखर जानव ।
सुख दुख मा हे संग , आय जी ये अवतारी ।
बोहे जग के भार , सबल हावय जी नारी ।।

रचनाकार - श्री मोहन कुमार निषाद
  पता - लमती भाटापारा, छत्तीसगढ़

27 comments:

  1. बहुते सुघ्घर कुण्डलियाँ छंद के सृजन हे भाई
    छंद खजाना मा आय के बहुत बहुत बधाई

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  2. अनंत बधाई बोधन जी,सुंदर कुण्डलिया छंद

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  3. बहुत बढ़िया रचना
    बहुत बहुत बधाई

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  4. वाह्ह् मोहन भाई, अलग अलग विषय मा सुंदर रचना

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  5. खेती नारी शक्ति अउ,सेवा जिनगी सार।
    आशा जादा झन करौ, भाई रखिन विचार।।
    भाई रखिन विचार, बात बढ़िया समझाइन।
    कहाँ नफा नकसान, इहू ला बने बताइन।।
    सत के रद्दा छोड़, सोच झन जाँवव केती।
    सेवा जिनगी सार, शक्ति नारी अउ खेती।।
    भाई मोहन ल अंतस ले अब्बड़ अकन बधाई जी...

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  6. बहुत बढ़िया रचना मोहन भाई के

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  7. वाह्ह्ह्ह् मोहन भाई बहुत बढ़िया कुण्डलियाँ

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  8. वाह्ह्ह्ह् मोहन भाई बहुत बढ़िया कुण्डलियाँ

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  9. वाह बहुत सुंदर बैहतरीन मोहन भाई बहुत बहुत बधाई

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  10. बहुत बहुत बधाई मोहन निषाद जी एक ले एक शानदार कुण्डलिया छंद

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  11. बड़ सुग्घर रचना मोहन जी।

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  12. लाजवाब मोहन भाईजी

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  13. सुग्घर कुण्डलिया छन्द।हार्दिक बधाई।

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  14. सुघ्घर कुण्डलिया भैया बधाई

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  15. बड़ सुग्घर कुण्डलियाँ मयारु भाई...

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