जिनगी के आशा
आसा जादा झन करव , जिनगी के दिन चार ।
भाग दउड़ जी हे लगे , थकना हे बेकार ।
थकना हे बेकार , रोज आघू हे बढ़ना ।
नइ होवन कमजोर , नवा रद्धा हे गढ़ना ।
मनले झन जी हार , जान ले हे परिभासा ।
रही बने खुशहाल , इही जिनगी के आसा ।।
मानव झन हार
होवय झन अब हार जी , करत रहव परयास ।
मिलबे करही जीत हर , राख अटल विश्वास ।
राख अटल विश्वास , धीर जी मनमा धरले ।
होबे झन कमजोर , परन जी अइसन करले ।
बैरी तोला देख , रोज जी दुख मा रोवय ।
मान कभू झन हार , नाम जी जग मा होवय ।।
सेवा जिनगी सार
करले सेवा जी बने , जिनगी अपन सँवार ।
बात कहत हँव मानले , सेवा हावय सार ।
सेवा हावय सार , भेद जी झन तँय करबे ।
एक सबे ला मान , सबो के दुख ला हरबे ।
मिलही जी भगवान , सत्य के रद्धा धरले ।
होबे भवले पार , करम जी अइसन करले ।।
खेती
खेती ला जी कर बने , सुग्घर होही धान ।
गोबर खातू डार ले , कहना मोरो मान ।
कहना मोरो मान , धान ला सुग्घर पाबे ।
नइ होवय नुकसान , बाद मा नइ पछताबे ।
बात हवय जी सार , कहत हँव येखर सेती ।
आगे हे विज्ञान , करव जी सुग्घर खेती ।।
नारी शक्ति
नारी शक्ति रूप ये , झन समझव कमजोर ।
महिमा जेखर हे कहे , देवन मन चहु ओर ।
देवन मन चहु ओर , सार जी येला मानव ।
कर लेवव पहिचान , रूप ला येखर जानव ।
सुख दुख मा हे संग , आय जी ये अवतारी ।
बोहे जग के भार , सबल हावय जी नारी ।।
रचनाकार - श्री मोहन कुमार निषाद
पता - लमती भाटापारा, छत्तीसगढ़
आसा जादा झन करव , जिनगी के दिन चार ।
भाग दउड़ जी हे लगे , थकना हे बेकार ।
थकना हे बेकार , रोज आघू हे बढ़ना ।
नइ होवन कमजोर , नवा रद्धा हे गढ़ना ।
मनले झन जी हार , जान ले हे परिभासा ।
रही बने खुशहाल , इही जिनगी के आसा ।।
मानव झन हार
होवय झन अब हार जी , करत रहव परयास ।
मिलबे करही जीत हर , राख अटल विश्वास ।
राख अटल विश्वास , धीर जी मनमा धरले ।
होबे झन कमजोर , परन जी अइसन करले ।
बैरी तोला देख , रोज जी दुख मा रोवय ।
मान कभू झन हार , नाम जी जग मा होवय ।।
सेवा जिनगी सार
करले सेवा जी बने , जिनगी अपन सँवार ।
बात कहत हँव मानले , सेवा हावय सार ।
सेवा हावय सार , भेद जी झन तँय करबे ।
एक सबे ला मान , सबो के दुख ला हरबे ।
मिलही जी भगवान , सत्य के रद्धा धरले ।
होबे भवले पार , करम जी अइसन करले ।।
खेती
खेती ला जी कर बने , सुग्घर होही धान ।
गोबर खातू डार ले , कहना मोरो मान ।
कहना मोरो मान , धान ला सुग्घर पाबे ।
नइ होवय नुकसान , बाद मा नइ पछताबे ।
बात हवय जी सार , कहत हँव येखर सेती ।
आगे हे विज्ञान , करव जी सुग्घर खेती ।।
नारी शक्ति
नारी शक्ति रूप ये , झन समझव कमजोर ।
महिमा जेखर हे कहे , देवन मन चहु ओर ।
देवन मन चहु ओर , सार जी येला मानव ।
कर लेवव पहिचान , रूप ला येखर जानव ।
सुख दुख मा हे संग , आय जी ये अवतारी ।
बोहे जग के भार , सबल हावय जी नारी ।।
रचनाकार - श्री मोहन कुमार निषाद
पता - लमती भाटापारा, छत्तीसगढ़
बहुते सुघ्घर कुण्डलियाँ छंद के सृजन हे भाई
ReplyDeleteछंद खजाना मा आय के बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद दीदी
Deleteअनंत बधाई बोधन जी,सुंदर कुण्डलिया छंद
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteधन्यवाद दीदी जी
Deleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
धन्यवाद माटी भइया
Deleteवाह्ह् मोहन भाई, अलग अलग विषय मा सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद भइया
Deleteखेती नारी शक्ति अउ,सेवा जिनगी सार।
ReplyDeleteआशा जादा झन करौ, भाई रखिन विचार।।
भाई रखिन विचार, बात बढ़िया समझाइन।
कहाँ नफा नकसान, इहू ला बने बताइन।।
सत के रद्दा छोड़, सोच झन जाँवव केती।
सेवा जिनगी सार, शक्ति नारी अउ खेती।।
भाई मोहन ल अंतस ले अब्बड़ अकन बधाई जी...
सादर धन्यवाद सूर्या भइया
Deleteबहुत बढ़िया रचना मोहन भाई के
ReplyDeleteधन्यवाद कुमार भइया
Deleteवाह्ह्ह्ह् मोहन भाई बहुत बढ़िया कुण्डलियाँ
ReplyDeleteसादर धन्यवाद हीरा भइया
Deleteवाह्ह्ह्ह् मोहन भाई बहुत बढ़िया कुण्डलियाँ
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर बैहतरीन मोहन भाई बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteसादर धन्यवाद अतनु भइया
Deleteबहुत बहुत बधाई मोहन निषाद जी एक ले एक शानदार कुण्डलिया छंद
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भइया
Deleteबड़ सुग्घर रचना मोहन जी।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद गुरूजी
Deleteलाजवाब मोहन भाईजी
ReplyDeleteलाजवाब मोहन भाई
ReplyDeleteसुग्घर कुण्डलिया छन्द।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुघ्घर कुण्डलिया भैया बधाई
ReplyDeleteबड़ सुग्घर कुण्डलियाँ मयारु भाई...
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