सुवा
नाचत हे सबझन सुआ, एक जगा जुरियाय।
लुगरा पहिरे लाल के, देखत मन भर जाय।।
देखत मन भर जाय, सबो झन मिलके गावँय।
सुग्घर सबके राग, ताल मा ताल मिलावँय।।
देखत हे जगदीश, लगन ला इकरे जाचत।
देवत हवय अशीष, मगन हे जम्मो नाचत।।
देवारी
सुनता के लेके दिया, घर-घर रखबो आज।
मिलजुल के सब संग मा, घर कुरिया ला साज।।
घर कुरिया ला साज, आज लीपव सब कोती।
लेलव कुरता पैंट, बबा बर सादा धोती।।
सब ला रख तँय जोड़, इही रस्ता ला चुन ता।
देवारी उपहार , लगा के राहव सुनता।।
पूजव मनखे जिन्दा
जिन्दा मा पूछय नहीँ, मरे नवावय शीश।
मंदिर मा हो आरती, बाहर हे जगदीश।।
बाहर हे जगदीश, खड़े कोनो नइ जानय।
खोजय सब भगवान,बात काबर नइ मानय।।
मनखे सेवा सार, मान ना हो शर्मिंदा।
जिनगी अपन सँवार, पूजले मनखे जिन्दा।।
शौचालय
घर मा शौचालय बना, बढ़ही घर के मान।
खुश रइही बेटी बहू, जे हे घर के शान।।
जे हे घर के शान, राख ले खुश तँय ओला।
सँवर जही घर-बार, पड़य ना रोना तोला।।
कहय आज जगदीश, बना ले तँय पल भर मा।
साथ दिही सरकार, बात रखना तँय घर मा।।
रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
नाचत हे सबझन सुआ, एक जगा जुरियाय।
लुगरा पहिरे लाल के, देखत मन भर जाय।।
देखत मन भर जाय, सबो झन मिलके गावँय।
सुग्घर सबके राग, ताल मा ताल मिलावँय।।
देखत हे जगदीश, लगन ला इकरे जाचत।
देवत हवय अशीष, मगन हे जम्मो नाचत।।
देवारी
सुनता के लेके दिया, घर-घर रखबो आज।
मिलजुल के सब संग मा, घर कुरिया ला साज।।
घर कुरिया ला साज, आज लीपव सब कोती।
लेलव कुरता पैंट, बबा बर सादा धोती।।
सब ला रख तँय जोड़, इही रस्ता ला चुन ता।
देवारी उपहार , लगा के राहव सुनता।।
पूजव मनखे जिन्दा
जिन्दा मा पूछय नहीँ, मरे नवावय शीश।
मंदिर मा हो आरती, बाहर हे जगदीश।।
बाहर हे जगदीश, खड़े कोनो नइ जानय।
खोजय सब भगवान,बात काबर नइ मानय।।
मनखे सेवा सार, मान ना हो शर्मिंदा।
जिनगी अपन सँवार, पूजले मनखे जिन्दा।।
शौचालय
घर मा शौचालय बना, बढ़ही घर के मान।
खुश रइही बेटी बहू, जे हे घर के शान।।
जे हे घर के शान, राख ले खुश तँय ओला।
सँवर जही घर-बार, पड़य ना रोना तोला।।
कहय आज जगदीश, बना ले तँय पल भर मा।
साथ दिही सरकार, बात रखना तँय घर मा।।
रचनाकार - श्री जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
धन्यवाद दीदी
Deleteबहुत बहुत बधाई हीरा जी बढ़िया रचना
ReplyDeleteधन्यवाद जोगी जी
Deleteबहुत बहुत बधाई हीरा जी बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया छंद हीरा जी,बधाई!!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteधन्यवाद
Deleteबहुत बढ़िया कुण्डलिया छंद हीरा जी,बधाई!!
ReplyDeleteबढ़िया कुंडलियाँ रचे, हीरा छंद सुजान।
ReplyDeleteकतका सुंदर का कहौं,नइ कर सकौं बखान।।
नइ कर सकौं बखान, समरपन के मैं भाई।
चालू रखौ मितान, बढ़य एकर ऊँचाई।।
नइये गरब गुमान, आन हम छत्तिसगढ़िया।
जग मा छेड़त तान, रचन कुंडलियाँ बढ़िया।।
भाई जगदीश साहू "हीरा" ल अंतस ले बड़ अकन बधाई.... सादर
वाहह्ह् गजब के कुण्डलियाँ गुरूजी,
Deleteआप सब ला देखके बहुत कुछ सीखे बर मिलत हे
वाहह्ह् गजब के कुण्डलियाँ गुरूजी,
Deleteआप सब ला देखके बहुत कुछ सीखे बर मिलत हे
वाह्ह हीरा भइया अब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण कुंडलिया छंद भइया बहुत बहुत बधाई आपला
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
Deleteबहुत बहुत बधाई हो भाई जी
ReplyDeleteधन्यवाद निषाद भइया
Deleteधन्यवाद निषाद भइया
Deleteवाहहह वाहहह जगदीश जी सुग्घर सुग्घर कुण्डलिया सुग्घर विषय चयन हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रचना सर जी।बधाई।
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteवाह्ह्ह वाह्ह्ह गजब सुग्घर सर। बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह्ह्ह वाह्ह्ह गजब सुग्घर सर। बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद ज्ञानु भइया
Deleteधन्यवाद ज्ञानु भइया
Deleteबढ़िया सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद जितेंद्रस भइया
Deleteलाजवाब कुण्डलिया छन्द सृजन।
ReplyDeleteआभार गुरूजी
Deleteबहुते बढ़िया सिरजन हे जगदीश जी...
ReplyDeleteधन्यवाद अमित भैया
Deleteधन्यवाद अमित भैया
Deleteधन्यवाद अमित भाई
Deleteधन्यवाद अमित भाई
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