ग्यानु-सरसी छंद
छलत रही दुनिया मा कब तक, संगी मोर किसान।
नाम बड़े अउ दर्शन छोटे, भुइँया के भगवान।।
करके लागा बोड़ी बपुरा, करथे खेती काम।
तरस एक दाना बर जाथे, अनदाता बस नाम।।
बीज भात अउ खातू महँगा, धरे मूड़ ला रोय।
बेमौसम बरसा के सेती, नास फसल मन होय।।
होवय बरसा चाहे गरमी, लागय चाहे जाड़।
रोज कमाना काम इँखर हे, टूटत ले जी हाड़।।
भूखे प्यासे कई दिनन ले, बपुरामन सह जाय।
साथ देय जब ठगिया मौसम, तब दाना कुछ पाय।।
बिचौलियामन नजर गड़ाये, रहिथे रस्ता रोक।
औने पौने भाव म लेके, उनमन बेचय थोक।।
हे किसान मन के सेती जी, फलत फुलत व्यापार।
अँधरा बहरा देख बने हे, तब्भो ले सरकार।।
लदे पाँव सिर ऊपर कर्जा, बनके गड़थे शूल।
अइसन मा का करही बपुरा, जाथे फाँसी झूल।।
सुख सुविधा हा सदा इँखर ले, रहिथे कोसों दूर।
भूख गरीबी लाचारी मा, जीये बर मजबूर।।
करव भरोसा झन कखरो तुम, बनव अपन खुद ढ़ाल।
अपन हाथ मा जगन्नाथ हे, तभे सुधरही हाल।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
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