राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर
बेटी आल्हा छंद(विजेन्द्र वर्मा)
भागजनी घर बेटी होथे,नहीं लबारी सच्चा गोठ।
सुन तो वो नोनी के दाई,बात कहत हौं अब मँय पोठ।।
अड़हा कइथे लोगन मोला,बेटा के जी राह अगोर।
कुल के करही नाँव तोर ये,जग ला करही सुघर अँजोर।।
कहिथँव मँय अँधरागे मनखे,बेटी बेटा ला झन छाँट।
एक पेड़ के दुनों डारा,दुआ भेद मा झन तँय बाँट।।
सोचव बेटी नइ होही ते,ढोय कोन कुल के मरजाद।
अँचरा माँ के सुन्ना होही,बोझा अपने सिर मा लाद।।
आवव अब इतिहास रचव जी,गढ़व सुघर जिनगी के राह।
दुनिया दारी के बेड़ी ला,तोड़व अब तो अइसन चाह।।
पढ़ा लिखा के बेटी ला अब,तुमन सुघर देवव सम्मान।
जानव अब बेटी ला बेटा,दव सपना ला उँकर उड़ान।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
एक पेड़ के दुनों डारा(15 मात्रा होवत हे सर)
ReplyDeleteजी गुरूजी सुधार लेथव
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