आर! भारत माता के सुघर, मान बढ़ा तैं काम ले।
जग भर मा अब फहरै ध्वजा, हाथ-हाथ मा थाम ले।।
चल संग मया के गीत ला, गा ले संगी मोर रे।
निक दया धरम के गोठ ला, बगरावत चहुँओर रे ।।
तँय ज्ञानवान बुधियार बन, साध सुघर विज्ञान ला।
झन जात-पात के भेद मा , जोड़ कभू भगवान ला।।
घर-घर मा हर परिवार मा, सत नियाव के गोठ हो।
सुख चैन बसे मन मा सदा, धन-वैभव ले पोठ हो।।
हर बूँद लहू के देश बर, बलिदानी बन जाय जी।
जग बैरी हिम्मत देख के, गजब सुकुड़दुम खाय जी।।
ये मंदिर मस्जिद चर्च के, झन गैरी झगरा मता।
गुरु ग्रंथ वेद के सीख ला, बने-बने सब ला बता।।
वो भाव विचार तियाग दे, खण्ड करै जे देश ला।
तज बनावटी जिनगी सखा, शुद्ध राख परिवेश ला।।
हे संविधान सब ले उपर, जन-जन के कल्यान बर।
ये अमर जोत जलते रहै, आन बान अउ शान बर।।
रचना:
छंद साधक-
बलराम चंद्राकर भिलाई
बहुतेच सुघ्घर हे आदरणीय, बहुत बहुत बधाई आप ला।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर जी
ReplyDelete