गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर मा देशभक्ति पूर्ण छंदबद्ध रचना
घनाक्षरी-दिलीप वर्मा ( सोन चिरइया )
सोन के चिरइया मोर, पिंजरा म बंद रहे,
तड़फत रहे सदा, होये ल अजाद रे।
उड़ियाना चाह के भी, उड़ वो सके न कभू,
काखर करा ले करे, भला फरियाद रे।
सुत तो सपूत रहे, काम ले कपूत रहे,
आपस म लड़ मरे, लालची औलाद रे।
परदेशी कौवा आये, छीन-छीन सब खाये,
डरा धमका के सबो, होवत अबाद रे।
कौवा करे काँव-काँव, दिन रात हाँव- हाँव,
सबो परेसान रहे, कइसे के भगाय रे।
धात-धात माने नही, प्रेम भाषा जाने नही,
चाबे बर दौड़ पड़े, तिर तार आय रे।
सोन के चिरइया बर, फूल भेजे घर-घर,
सबो एक साथ मिल, आवाज उठाय रे।
धर के मशाल चले, आपस मा मिले गले,
कौवा ला भगाये बर, उदिम बताय रे।
धीरे-धीरे एकता के, सूत म बँधाये सबो,
कौवा ला भगाये बर, करे तइयार हे।
कोनो शांति राह चल, करत आंदोलन हे,
कतको लड़े लड़ाई, करे आर पार हे।
मार काट मचे भारी, सालों साल युद्ध जारी,
दूनो कोती मरे पर, कहाँ माने हार हे।
लाखों बलिदान दे के, हजारों के जान लेके,
सोन के चिरइया बर,खोले संसार हे।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
बेरा नव निरमान के-बलराम चन्द्राकर
उल्लाला छंद के पहला प्रकार
जुलमिल रेंगव साथ ये, बेरा नव निरमान के।
मनुस-मनुस सम्मान के, हिन्द देश जय गान के।।
मुकुट हिमालय देश के, सागर के पहरा हवै।
युग-युग ले पावन करत, गंगा के लहरा हवै।।
सत्य अहिंसा न्याय बर, पुरखा तजिन परान ला।
बर्बर दुनिया ले बचा, राखिन हिन्दुस्तान ला।।
ऊँच-नीच के रोग हा, डँसिस फेर ये देश ला।
अइसन अवगुण हा हमर, बाँट डरिस परिवेश ला।।
चलौ ज्ञान विज्ञान ले, लाबो नवा बिहान फिर।
भेदभाव पाखंड हर, करथे अउ खाई गहिर।।
नारी शिक्षा ले हमर, जग मा बाढ़त मान हर।
बराबरी अधिकार ले, पढ़त हवै संतान हर।।
करम-धरम के हर सबक, मन मा धारव नेक रे।
नियम देश कानून ला, मानव हो के एक रे।
भ्रष्ट तंत्र के नाश कर, गढ़ौ सुघर भारत नवा।
खावौ किरिया देश बर, शुद्ध रहै पानी हवा।।
जुन्ना होगे बात हा, राजा लाट नवाब के।
लोकतंत्र मा तुम इहाँ, मालिक हव हर ख्वाब के।।
भाग्यविधाता अब तिहीं, नेता अधिकारी तिहीं।
तँय किसान मजदूर हर, जिम्मेदारी मा तिहीं।
सबो दोष गुण के हमर, हर हिसाब पीढ़ी लिहीं।
छोड़न स्वारथ भाव ला, छिहीं-बिहीं ये कर दिहीं।।
बिरथ बड़ाई ले कभू, ककरो झन अपमान हो।
मनखे बनौ सुजान रे, छोटे बड़े समान हो।।
तोर मोर के मोह मा, पिसत हवै इंसान रे।
राजनीति के खेल मा, अउ गड्ढा झन खान रे।।
धरम पंथ अउ जाति ले, झगरा झंझट दासता।
राष्ट्र धर्म सब ले उपर, चलन सबो ये रासता ।।
परन करन हिलमिल रहन, सब मा एक परान रे।
विश्व पटल मा फिर बनै, भारत देश महान रे।।
रचना :
छंद साधक -
बलराम चंद्राकर भिलाई
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
कुलदीप सिन्हा- गणतंत्र पर्व ( आल्हा छंद )
हमर देश हा देथे हरदम,
विश्व शांति के सब ला मंत्र।
आवव जुरमिल आज मनाबो,
गाँव शहर में हम गणतंत्र।।1।।
फहर फहर फहराबो झण्डा,
बाद मनाबो हम त्योहार।
जन गण मन के गाबो गाना,
बाँट सबो ला मया दुलार।।2।।
सरकारी कार्यालय मन मा,
आज तिरंगा सब फहराय।
पहिली संझा प्रथम नागरिक,
जनता ला संदेश सुनाय।।3।।
गाँव गाँव अउ शहर शहर मा
घर आँगन मा दीप जलाय।
लइका सियान आज सबो मिल,
मन ही मन मा खुशी मनाय।।4।।
दिवस आज गणतंत्र पर्व हे,
हँसी खुशी के दिन ये आय।
येखर सेती चारों कोती,
ढोल नगाड़ा सबो बजाय।।5।।
फहरे हावे अमर तिरंगा,
इही देश के हरय ग शान।
हम सब भारत वासी मन ला,
येखर ले मिलथे पहिचान।।6।।
इनला पाये बर गा कतको,
करे हवे तन के बलिदान।
जेखर करजा कभू नहीं जी,
छूट सकय गा हिन्दुस्तान।।7।।
अब में जादा का बतलाओं,
सिरिफ करत हवँ में परनाम।
जेखर जिनगी मा तुम जानो,
होय समय के पहिली शाम।।8।।
छन्दकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल सलोनी ( धमतरी )
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
शक्ति छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
पुजारी बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।
पसर मा धरे फूल अउ हार ला।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये मया मीत डोरी रहे।
सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।
बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं तेल बनके दिया भीतरी।
इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।
पुजारी बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन देस ला मैं गियानी करौं।
वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत मात सेवा सदा मैं बढ़ौ।
फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।
पुजारी बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
बलिदानी (सार छंद)
कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश धरम बर मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कौने झेले गोली।
कोन लगाये माथ मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके गरजे,काँपे देख फसादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
अपन देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिलामय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने मन सब बैरी होगे,कोन भला छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख हाल बलिदानी मनके,बरसे नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह द्वेष के आगी भभके,माते मारी मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
रोला छंद - बोधन राम निषादराज
(गणतन्त्र दिवस)झंडा ऊँचा आज,अगासा फहरत हावै।
आजादी के गोठ,चिरइया आज सुनावै।।
जय जवान जय घोष,लगावौ जम्मो भाई।
सुग्घर राहय देश, मोर ये भारत माई।।
संगी चलव मनाव,आय हे सुघ्घर बेरा।
ए गणतंत्र तिहार,देख ले सोन बसेरा।।
पावन मौका आय,झूम के नाचौ गावौ।
भूलौ झन उपकार,आज सब खुशी मनावौ।।
लोकतन्त्र के पर्व, मनावौ भारतवासी।
समझौ रे अधिकार,बनौ झन कखरो हाँसी।।
जात-पात के संग,करौ झन आज लड़ाई।
झन हो लहू लुहान,रहौ सब भाई-भाई।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
आप सबो छन्दकार मन ला सुघ्घर लेख अउ गणतंत्र पर्व के बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteसादर बधाई
ReplyDeleteआप जम्मो साहित्कार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई👍💐💐
ReplyDeleteरोला छंद -आशा आजाद"कृति"
महापर्व गणतंत्र दिवस
महापर्व गणतंत्र, चलौ जी सबो मनाबो ।
जनमन सुग्घर गान, सुघर मिलजुल के गाबो ।।
भारत के अभिमान, मान अउ सान तिरंगा ।
ए भुइयाँ के जान, बहत हे नदियाँ गंगा ।।
तीन रंग हे शान, आज झण्डा फहराबो ।
आजादी के नाव, अपन सब माथ झुकाबो ।।
हावै अमर शहीद, सबो ला शीश नवावौ ।
ए भुइयाँ के शान, गीत वंदे ला गावौ ।।
जय जय हमर जवान, इही गूँजय शुभ नारा ।
जय जय हमर किसान, देश के इही अधारा ।।
भारत सुघ्घर देश, जिहाँ शुभ रक्त बहे हे ।
ए भुइयाँ हा खूब, दरद अउ कष्ट सहे हे ।।
करलौ नित परनाम, इही हे पावन माटी ।
अब्बड़ लड़िन शहीद, युद्ध ला जंगल घाटी ।।
करिन नेक बलिदान, धन्य हे जिनगी जानौ ।
भूख प्यास ला त्याग, देह त्यागिन ये मानौ ।।
छंदकार - आशा आजाद"कृति"
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
आप जम्मो साहित्कार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई👍💐💐
ReplyDeleteरोला छंद -आशा आजाद"कृति"
महापर्व गणतंत्र दिवस
महापर्व गणतंत्र, चलौ जी सबो मनाबो ।
जनमन सुग्घर गान, सुघर मिलजुल के गाबो ।।
भारत के अभिमान, मान अउ सान तिरंगा ।
ए भुइयाँ के जान, बहत हे नदियाँ गंगा ।।
तीन रंग हे शान, आज झण्डा फहराबो ।
आजादी के नाव, अपन सब माथ झुकाबो ।।
हावै अमर शहीद, सबो ला शीश नवावौ ।
ए भुइयाँ के शान, गीत वंदे ला गावौ ।।
जय जय हमर जवान, इही गूँजय शुभ नारा ।
जय जय हमर किसान, देश के इही अधारा ।।
भारत सुघ्घर देश, जिहाँ शुभ रक्त बहे हे ।
ए भुइयाँ हा खूब, दरद अउ कष्ट सहे हे ।।
करलौ नित परनाम, इही हे पावन माटी ।
अब्बड़ लड़िन शहीद, युद्ध ला जंगल घाटी ।।
करिन नेक बलिदान, धन्य हे जिनगी जानौ ।
भूख प्यास ला त्याग, देह त्यागिन ये मानौ ।।
छंदकार - आशा आजाद"कृति"
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
सुग्घर संग्रह
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संग्रह
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संग्रह सबक रचनाकार ल बधई।
ReplyDelete