त्रिभंगी छंद-मनोज वर्मा
हे वीणापाणी ,हवव अज्ञानी ,ज्ञान जोत ला ,लाव इहाँ।
तँय सुन ले मइया, प्रेम करइया ,शरन तोर मँय ,पाँव उहाँ।
मँय करलव सुरता ,दुख के हरता मया प्रेम के ,गाँव मिले।
आ माँ बइठ गले ,सुर राग मिले, गीत ल गुरतुर ,छाँव मिले।
हे जगत बनइया, बुद्धि धरइया, पाठ लिखइया ,पाँव परौ।
मँय हवव अज्ञानी ,तँय हँस दानी ,मोरे दुख सब ,कष्ट हरौ।
कब आहूंँ मइया ,धीर बँधइया, मया दया के ,डोर बँधै।
कर किरपा माता, जगत विधाता, मइया सबके ,काज सधै।
मनोज वर्मा
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