छन्द के छ परिवार की प्रस्तुति-छेरछेरा परब
सार छन्द-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
कूद कूद के कुहकी पारे,नाचे झूमे गाये।
चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।
पाख अँजोरी पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।
दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।
कइसे चालू होइस तेखर,किस्सा एक सुनावौं।
हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।
युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर के द्वारे।
राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।
आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।
हैहय वंशी शूर वीर के ,रद्दा जोहय नैना।
सबो चीज मा हो पारंगत,लहुटे जब राजा हा।
कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।
राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।
राज रतनपुर हा मनखे मा,मेला असन भराये।
सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।
रहे पूस पुन्नी के बेरा,खुले रहे दरवाजा।
कोनो पाये रुपिया पइसा,कोनो सोना चाँदी।
राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।
राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।
पूस महीना के ये बेरा, सबके झोली भरबों।
ते दिन ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।
ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।
राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।
कोसलपुर माटी कहलाये, दुलरू धान कटोरा।
मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।
अन्न देव के घर आये ले, सबके मन हरसावै।
अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।
गूँजे सब्बे गली खोर मा,सुघ्घर छेरिक छेरा।
वेद पुराण ह घलो बताथे,इही समय शिव भोला।
पारवती कर भिक्षा माँगिस,अपन बदल के चोला।
ते दिन ले मनखे मन सजधज,नट बन भिक्षा माँगे।
ऊँच नीच के भेद मिटाके ,मया पिरित ला टाँगे।
टुकनी बोहे नोनी घूमय,बाबू मन धर झोला।
देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।
करे सुवा अउ डंडा नाचा, घेरा गोल बनाये।
झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।
दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।
हरे बछर भरके तिहार ये,छेरिक छेरा गा लौ।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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अमृतध्वनि छंद
छेरिक छेरा छेर के, लइका करै गुहार।
दरबर दरबर रेंग के,झाँकय सब घर द्वार।।
झाँकय सब घर,द्वार धान ला,माँगे बर जी।
बाँधे कनिहा,बाजै घँघरा,खनर खनर जी।।
नाचय कूदय, धूम मचावय, रेंगत बेरा।
आय परब तब,हाँसत गावै,छेरिक छेरा।।
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम
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लावणी छंद - बोधन राम निषादराज
पूस माह के पुन्नी आगे,
छेरिक छेरा आगे ना।
सुनलव मोरे भाई बहिनी,
धरम करम सब जागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे........
होत बिहनिया देखौ लइका,
बर चौरा सकलावत हे।
कनिहा बाँधे बड़े घाँघरा,
नाचत अउ मटकावत हे।।
देवव दाई-ददा धान ला,
कोठी सबो भरागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे........
मुठा मुठा सब धान सकेलय,
टुकनी हा भर छलकत हे।
छत्तीसगढ़ी रीति नियम ये,
मन हा सुग्घर कुलकत हे।।
छेरिक छेरा परब हमर हे,
भाग घलो लहरागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे........
देखव संगी चारों कोती,
बने घाँघरा बाजत हे।
बोरा चरिहा टुकना बोहे,
बहुते लइका नाचत हे।।
छेरिक छेरा नाच दुवारी,
खोंची खोंची माँगे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे.........
छंदकार :-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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मनोज वर्मा:
*अमृत ध्वनि छंद*
धरके झोला खॉंध मा, सब मॉंगत हे धान।
परब छेरछेरा सुघर, हरे धरम अउ दान।।
हरे धरम अउ, दान करौ शुभ, मंगल सब झन।
पसर पसर सब, हाथ बढ़ाके, बॉंटव अन धन।।
पावव अन धन, टुकनी चरिहा, सब भर भरके।
नाचव गावव, खुशी मनावव , झोला धरके।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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कुण्डलियाँ छंद
धर के झोला टोपली,ढोलक अउ मिरदंग।
परब छेरछेरा हबय,रेंगव टोली संग।।
रेंगव टोली संग, कहव सब छेरिक छेरा।
देही कोदो धान,घरो घर बिहना बेरा।।
कर लौ अन के दान,पसर सूपा भर भर के।
बलि ले माँगय दान,रूप हरि वामन धर के।।
कौशल कुमार साहू
छंद साधक -4 'अ '
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: दोहा छंद- विजेन्द्र वर्मा
पाथे बड़ आशीष वो,करथे जे हा दान।
आय छेरछेरा परब,झोली भर दे धान।।
बढ़थे धन हा दान ले,अतका अब तो जान।
करले बढ़िया काम तँय,मिलही संगी मान।।
अन्न दान सब ले बड़े,होथे जग मा दान।
ज्ञानी ध्यानी संत हा,बात कहे हे जान।।
सब के आस्था के घलो,बड़का आय तिहार।
दान धरम कर के इहाँ,बाँटव मया दुलार।।
दान धरम ले होय जी,मनखे मन के नाम।
भूखे कउनो मत रहय,करलौ अइसन काम।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला- रायपुर
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*छेरछेरा तिहार*
जयकारी छंद
ये पुन्नी के सुघर तिहार।
माँगय लइका चाउँर दार।।
झोला धरके काँधे भार ।
आवय झँगलू सब घर सार।।
बरा फरा अउ अरसा चार।
लेवत सोनू गा बाजार ।।
धान बेच के मनय तिहार।
खुशी मनावय जी संसार।।
नवा साल के बडे़ तिहार।
फसल मिलय सुख के आधार।
गाडा़ गाडा़ कोठी धान।
मिहनत के फल पाव किसान।
दान धरम ला करय किसान।
सगरी जग के दाता जान।
पातर पनियर पसिया झोर।
ताकत मा नइहे कमजोर।
खूब दान करलौ जी आज।
सबझन माँगव नइये लाज।
कहिके छेरिक छेरा सार ।
धान सबो ला देवा ढार।
धनेश्वरी सोनी गुल
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उल्लाला छंद - श्लेष चन्द्राकर
शीर्षक - छेरछेरा परब
भेद भुलाके लोग सब, करथें अन के दान जी।
परब छेरछेरा हरै, सत मा बड़ा महान जी।।
छोटे बडे़ किसान सब, खुश रहिथें बड़ आज गा।
सूपा ले अन दान कर, करथें सुग्घर काज गा।।
लइका बड़े सियान का, सबझिन बर ये खास हे।
येकर ले सबके जुड़ें, श्रद्धा अउ विश्वास हे।।
देवी माँ शाकंभरी, लेय रिहिन अवतार जी।
उनकर ये सम्मान के, हरै नीक त्यौहार जी।।
आज पूस पुन्नी हरै, भरथे मेला गाँव मा।
सकलाथें सब लोग हा, बर पीपर के छाँव मा।।
लोक परब ये खास गा, इखँर अलग पहिचान हे।
गरब सबो करथन अबड़, हमर राज के शान हे।।
संगी-साथी साथ मा, चिटको बखत बिताव गा।
बने छेरछेरा परब, जुरमिल सबो मनाव गा।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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दोहा
लइका मन माँगत हवे,माई कोठी धान।
भरके राखे हव चलो, कुछ तो कर लव दान।।
परब छेरछेरा सुनो,बछर पुरे ले आय।
छेरिक छेरा धान दे,कहि लइकन चिल्लाय।।
झोला टुकनी हे धरे,पारत हवे गुहार।
दान धरम करलो बने,छेरछेरा तिहार।।
बाजा गाजा हे धरे, लइका अऊ सियान।
भरके सूपा दव बने,हरय बड़े पुन दान।।
धरे मंजीरा हाथ में, ड़फली रहे बजाय।
जय जय जय श्री राम जी,कहि के गीत सुनाय।।
आगे मोर दुवार में, बेटी ओ कर दान ।
देबो बड़ आशीष ओ,होय तोर कल्याण ।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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कुंडलियाँ छंद
(1 )
भेदभाव ला छोड़के, मानँव पूष तिहार।
अन्न दान के हे परब, बाँटव मया दुलार ।।
बाँटव मया दुलार, जगत मा नाम कमाँलव ।
तज दव मांसाहार, दार अउ
चटनी खालव ।।
अध्धी बोतल छोड़, तजव जी आज पाव ला ।
पबरित हवय तिहार, , भुलादव भेद भाव ला ।।
कुन्णलियाँ ( 2)
छेरिक छेरा गौटिया, दे कोठी के धान ।
मिलही ए संसार मा, तोला सुग्घर मान ।।
तोला सुग्घर मान, मिले अउ धन हा बाढे ।
दे चुरकी भर धान, दुवारी सब झन ठाडे़ ।।
निचट मचायें सोर, धान ला हेरिक हेरा ।
एके सुर नरियाँय , गौटिया छेरिक छेरा ।।
कुन्णलियाँ ( 3 )
डंडा घर घर नाचके, पावँय पैसा धान ।
झूमँय माँदर ताल मा, गावँय गीत सुहान ।।
गावँय गीत सुहान, घरो घर हल्ला भारी ।
परब दान के आय, मनावँय सब नर नारी ।।
कतको मातँय मंद, खाथ हें कुकरा अंडा ।
हुडदंगी मन पोठ, पुलिस के खावँय डंडा ।।
पुरूषोत्तम ठेठवार
छंदकार (सत्र -5 )
ग्राम - भेलवाँटिकरा
जिला - रायगढ
छत्तीसगढ
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मीता अग्रवाल: छेरछेरा
कुण्डलियां छंद
झोला टुकनी धर फिरे,टूरा टुरी सियान।
पूस पुन्नी के परब हे,करम धरम के मान।
करम-धरम के मान,फसल पाके हे भाई।
घर-घर माँगय आज,धान अन-धन दे दाई।
माई कोठी धान,बाँटथेआज सबो-ला।
अन्न दान के परब,मानथे भर-धर झोला।।
(2)
जावय संगी साथ मा,पूस पुन्नी माआस।
महापरब हे दान के,छत्तीसगढ़ म खास।
छत्तीसगढ़ म खास, नीक त्यौहार मनावय।
छेरिक छेरा गात,गाँव रद्दा सकलावय।
बडे बिहनिया आज,घरों घर चाँउर पावय।
लोक परब के मान,करें बर घर-घर जावय।।
रचनाकार-मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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: चौपई छंद ( छेरछेरा )
पावन पूस महीना जान।
घर मा लावै मिंज किसान।
भरे अपन कोठी मा धान।
पूजा वोखर करे सियान।।1।।
रहे भरे जब घर मा धान।
पुन्नी ला दिन सुघ्घर मान।
खुश होके सब करथे दान।
कोनो पइसा कोनो धान।।2।।
तब ले मानय जान तिहार।
हँसी खुशी जम्मो परिवार।
राँधय चीला रोटी खाय।
कोनो छप्पन भोग बनाय।।3।।
मड़ई गाँव म घलो भराय।
मनखे मन सब देखे जाय।
जम्मो चीज बिके बर आय।
खेल खिलौना लइका लाय।।4।।
हावे कतको अउ इतिहास।
दान दक्षिणा होगिस खास।
आइस गा सब झन ला रास।
जम गे मनखे के विश्वास।।5।।
नाम छेरछेरा हे जान।
पाछू येखर हवे विज्ञान।
जे करथे ये दिन गा दान।
वोला दानी कहे सुजान।।6।।
हवे कथा अउ कतको लेख।
खोल घलो किताब ला देख।
कतको येमा हे मिनमेख।
वेद शास्त्र मा हे उल्लेख।।7।।
कतको करै पुण्य के स्नान।
कोनो करै दीप के दान।
कोनो गंगा तीरथ जाय।
कोनो नदिया ताल नहाय।।8।।
जान छेरछेरा ला मान।
"दीप" डपट के कर तैं दान।
पाबे जग मा तँय सम्मान।
तोर सबो करही गुणगान।।9।।
छन्दकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल सलोनी ( धमतरी )
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वाह वाह बहुत सुंदर संकलन, गुरुदेव मन ला अउ जम्मो साधक भाई बहिनी ला छेरछेरा तिहार के बहुत बधाई
ReplyDeleteसबो साधक छंदकार मन ल बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन। बहुत बहुत बधाईयॉं
ReplyDeleteसुघ्घर संकलन आप सबो ल नँगत ले बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन आप सब ल बधई
ReplyDeleteआप सबो ल बहुतेच बधाई
ReplyDeleteजम्मो आदरणीय मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर छेर छेरा तिहार के रचना आनि बानी के छंद लिखोईया जम्मो साधक भाई बहिनी मनला बहुत बहुत बधाई हो मोर डहर ले पढ़के बहुत अच्छा लागिस बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संकलन हे गुरुदेव। बहुत सुघ्घर कृति बर जम्मो आदरणीय छंद साधक मन ला बधाई। अउ ये उदिम करइया गुरुदेव ला एक बार फिर से बधाई।
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