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Monday, January 11, 2021

जी नइ बाचय*(सुखी सवैया)

 *जी नइ बाचय*(सुखी सवैया)


जुड़हा ग हवा ढुढरावत हे अब जी नइ बाँचय लागत हावय।

कतको कथरी लदके रहिबे बड़ घेख्खर जाड़ तभो ग जनावय।

कुहरा म ढँकाय रथे बिहना अउ बादर ओंट सुरूज लुकावय।

चिटको अँगना नइ आवत हे कतको झन घाम बबा ल बलावय।1


सिपचावव गा लकड़ी खरसी झट फूँकव जी कउड़ा ल दगावव।

लमिया तब हाथ ल सेंकव जी  तन आँच परे बढ़िया सुख पावव।

लइका मन थोकुन दूर हटौ तिर मा बइठे झन तो इँतरावव।

छटके लुक हा चट ले जरथे पहिरे कपड़ा ल सकेल बँचावव।2


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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