*जी नइ बाचय*(सुखी सवैया)
जुड़हा ग हवा ढुढरावत हे अब जी नइ बाँचय लागत हावय।
कतको कथरी लदके रहिबे बड़ घेख्खर जाड़ तभो ग जनावय।
कुहरा म ढँकाय रथे बिहना अउ बादर ओंट सुरूज लुकावय।
चिटको अँगना नइ आवत हे कतको झन घाम बबा ल बलावय।1
सिपचावव गा लकड़ी खरसी झट फूँकव जी कउड़ा ल दगावव।
लमिया तब हाथ ल सेंकव जी तन आँच परे बढ़िया सुख पावव।
लइका मन थोकुन दूर हटौ तिर मा बइठे झन तो इँतरावव।
छटके लुक हा चट ले जरथे पहिरे कपड़ा ल सकेल बँचावव।2
चोवा राम 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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