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Friday, September 15, 2017

उल्लाला छंद - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान

उल्लाला छंद - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान

काठी के नेवता

कोने जानय जिंनगी, जाही कतका  दूर तक ।
बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।।

टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो डोकरी ।
मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।।

अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा ।
हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।।

रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा ।
सजे धजे मटकत रहिस, मारत जे हा शान गा ।।

देख देख ये बात ला, मैं हा सोचंव बात गा।
मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा।

अपने काठी के खबर, मैं हा आज पठोत हंव।
जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।

रचनाकार - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान
नवागढ़, बेमेतरा
छत्तीसगढ़

9 comments:

  1. शाश्वत सत्य लिए आपके उल्लाला ,बधाई सर

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  2. वाहःहः भाई सूरज ला दीपक के प्रणाम हे

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  3. वाह्ह् वाह्ह रमेश भैया आपके रचना पढके मन भाव ले भर जथे।

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  4. बडे़ भैया जी, बहुतेच सुग्घर उल्लाला।

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  5. बहुत सुग्घर उल्लाला छंद लिखे हव ,रमेश भैया।बधाई अउ शुभकामना ।

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  6. सुग्घर उल्लाला छंद चौहान जी

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  7. बहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई

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  8. जीवन के अंतिम सत्य , वाह्ह्ह्ह्ह् भइया

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  9. उल्लाला हे ज्ञान के। गनती के दिन प्रान के।।
    प्रेम प्रीत ला बाँट लौ। अपनो बर दिन छाँट लौ।।

    बहुत सुंदर उल्लाला छंद भाई...तहे दिल से बधाई... आपला

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