सरसी छन्द - श्री सुखन जोगी
(1) नारी
नारी हर तो नोहैं अबला , हक ल बराबर बाँट|
हक अपन पाय खातिर ओमन , निकलिन बेड़ी काट|
दुर्गा काली झाँसी देखव, धरथें रूप हजार |
पापी मन के मुड़ी ल काटिन , धरके जी तलवार|
आज काल के नारी देखव , कतको करथें काज
कतको गीता फोगाट सरी, रखे ददा के लाज |
महिला दिवस म मैंहा बंदौं , घर के माता पाँव|
जग जननी जेला कहिथैं जी, देथे ममता छाँव |
(2) होली
झुमर झुमर नाचत हे सरसों, परसा छिटकै रंग |
सुक्खा करही देखन लागे , सेमरा हवै संग |
पुरवा करे सरर सइया ता , कोयल गावै फाग |
घोरे हे मतौना मऊँहा, कौआँ देवै राग |
करिया करिया बादर छागे , भाग मँजुर गय जाग|
नाँच नाँच भीगे पानी मा , मन के बुझाय आग |
आगे आगे फागुन राजा , धरे नँगारा ढोल |
धर पिचका सब संगी साथी, रंग लगाबो घोल |
गली गली पारा मोहल्ला , करबो सब हुड़दंग|
बुरा नहीं मानव होली हे , कहिके करबो तंग |
लाली पिंवरा संगे हरियर , धर जाबोन गुलाल|
चाहे कोनो रहय रचाबो, हम तो ओखर गाल |
होली हे भइ होली हे हो ,बुरा नहीं तैं मान |
आपस के झगरा ला मेटव , गा लौ फागुन गान |
टिनक टिनक टिमकी हा बाजे ,ढम ढम बाजे ढोल |
चारो दिशा म गूँजत हावै , होली हे के बोल |
रचनाकार - श्री सुखन जोगी
ग्राम - डोंड़की (बिल्हा)
छत्तीसगढ़
(1) नारी
नारी हर तो नोहैं अबला , हक ल बराबर बाँट|
हक अपन पाय खातिर ओमन , निकलिन बेड़ी काट|
दुर्गा काली झाँसी देखव, धरथें रूप हजार |
पापी मन के मुड़ी ल काटिन , धरके जी तलवार|
आज काल के नारी देखव , कतको करथें काज
कतको गीता फोगाट सरी, रखे ददा के लाज |
महिला दिवस म मैंहा बंदौं , घर के माता पाँव|
जग जननी जेला कहिथैं जी, देथे ममता छाँव |
(2) होली
झुमर झुमर नाचत हे सरसों, परसा छिटकै रंग |
सुक्खा करही देखन लागे , सेमरा हवै संग |
पुरवा करे सरर सइया ता , कोयल गावै फाग |
घोरे हे मतौना मऊँहा, कौआँ देवै राग |
करिया करिया बादर छागे , भाग मँजुर गय जाग|
नाँच नाँच भीगे पानी मा , मन के बुझाय आग |
आगे आगे फागुन राजा , धरे नँगारा ढोल |
धर पिचका सब संगी साथी, रंग लगाबो घोल |
गली गली पारा मोहल्ला , करबो सब हुड़दंग|
बुरा नहीं मानव होली हे , कहिके करबो तंग |
लाली पिंवरा संगे हरियर , धर जाबोन गुलाल|
चाहे कोनो रहय रचाबो, हम तो ओखर गाल |
होली हे भइ होली हे हो ,बुरा नहीं तैं मान |
आपस के झगरा ला मेटव , गा लौ फागुन गान |
टिनक टिनक टिमकी हा बाजे ,ढम ढम बाजे ढोल |
चारो दिशा म गूँजत हावै , होली हे के बोल |
रचनाकार - श्री सुखन जोगी
ग्राम - डोंड़की (बिल्हा)
छत्तीसगढ़
सुग्घर सरसी छंद जोगी जी
ReplyDeleteहोली हे भई होली हे बहुत सुघ्घर सरसी छंद भाई सुखन
ReplyDeleteहोली हे भई होली हे बहुत सुघ्घर सरसी छंद भाई सुखन
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर सरसी छन्द बर भाई सुखन जोगी जी ला बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सरसी छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सरसी छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सरसी छंद,सुखन भैया। बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्....
ReplyDeleteबड़ सुग्घर भाई ....
हिरदे.ले बधाई....
सादर......
वाहःहः सुघ्घर सरसी छंद सृजन करे हव भाई
ReplyDeleteबधाई हो
वाह्ह्ह्ह्ह् भइया जी सुग्घर रचना
ReplyDeleteहोली तिहार के रंग ल अपन सरसी छंद के बँधना म बढ़िया बाँधे हव सुखन भाई।बधाई।।
ReplyDeleteहोली तिहार के रंग ल अपन सरसी छंद के बँधना म बढ़िया बाँधे हव सुखन भाई।बधाई।।
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया जोगी भईया जी
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया जोगी भईया जी
ReplyDeleteसुघ्घर सरसी छंद सृजन करे हव
ReplyDeleteबधाई हो भाईजी
सुघ्घर सरसी छंद सृजन करे हव
ReplyDeleteबधाई हो भाईजी
बहुत बढ़िया भाई
ReplyDeleteसुखन भैया बहुत बढ़िया छन्द सृजन
ReplyDeleteवाह्ह् सुन्दर सरसी छंद के सृजन बर सुखन सर जी ला बहुत बहुत बधाई।
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