रोला छन्द श्री गजानंद पात्रे
(1)
मिलके आघू बढ़व,करव पूरा सब सपना।
सुघ्घर गढ़व सुराज,कोन दूसर सब अपना।।
सुनलौ आज गुहार,चीख करथे महतारी।
बिसरत संस्कृति आज,याद कर पात्रे पारी।।
(2)
कोठी कोठी धान,खुशी होवय जी भारी।
चहके खेती खार,संग लइका महतारी।।
राहर तिवरा मूंग,हवय खेती के बेरा ।
आगे हमर तिहार,माघ पूस छेरछेरा।।
(3)
जिनगी बइला जान,हवे गाड़ा ये काया।
जीयत भरके साथ,फेर बिरथा हे माया।।
आघू बाढ़य हाथ,सुखी जीवन के ओरा।
चिंता छोड़व माथ,थाम उन्नति के डोरा।।
रचनाकार - गजानन्द पात्रे
छत्तीसगढ़
(1)
मिलके आघू बढ़व,करव पूरा सब सपना।
सुघ्घर गढ़व सुराज,कोन दूसर सब अपना।।
सुनलौ आज गुहार,चीख करथे महतारी।
बिसरत संस्कृति आज,याद कर पात्रे पारी।।
(2)
कोठी कोठी धान,खुशी होवय जी भारी।
चहके खेती खार,संग लइका महतारी।।
राहर तिवरा मूंग,हवय खेती के बेरा ।
आगे हमर तिहार,माघ पूस छेरछेरा।।
(3)
जिनगी बइला जान,हवे गाड़ा ये काया।
जीयत भरके साथ,फेर बिरथा हे माया।।
आघू बाढ़य हाथ,सुखी जीवन के ओरा।
चिंता छोड़व माथ,थाम उन्नति के डोरा।।
रचनाकार - गजानन्द पात्रे
छत्तीसगढ़
बधाई हो पात्रे जी।सुग्घर रोला छंदछंद।
ReplyDeleteबधाई हो सर जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रोला छंद भइया
ReplyDeleteबढ़िया रोला छंद सृजन करे हव पात्रे भाई
ReplyDeleteसुग्घर रोला छंद बधाई पात्रे जी।
ReplyDeleteसुग्घर रोला छंद बधाई पात्रे जी।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रोला छंद,गजानन्द भैया। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबढिया पात्रे सर जी
ReplyDeleteश्रद्धेय गुरुदेव ल नमन अउ आप सबो ल सहृदय धन्यवाद।।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर रोला रचना पात्रे जी। बधाई हे।
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर रोला गजानंद जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर रोला गजानंद जी बधाई हो
ReplyDeleteसुग्घर रोला छंद बहुत बहुत बधाई सर जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रोला छंद सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रोला छंद सर।सादर बधाई
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