हरिगीतिका छंद - श्री मनीराम साहू
(1)
तैं नइ थकच तैं नइ रुकच,रइथच गड़े गा खेत तैं
दिनभर अँड़े जम्मो बुता,करथच लगाके चेत तैं।
तोला कहयँ दाता सबो,धरती म हच भगवान तैं।
परमारथी हच देंवता,रखथच सबो के ध्यान तैं।
(2)
भोले भला करथच तहीं,दाता तहीं संसार के।
देथच सबो सुख ला ग तैं,झोली भरे दुख टार के।
आये हववँ महुँ हा शरन,पूरो बबा तैं आस ला।
हँव मैं भजत तोला जपत,झन टोरबे बिस्वास ला।
(3)
छिन-छिन जपव हिरदे रखव, दसरथ तनय अवधेश ला।
श्री राम जी हा मेटही,जम्मो हमर कल्लेश ला।
दाता उही दुख सब हरय ,जग जीव पालनहार हे।
भव ले लगाही पार वो,बस नाम ओकर सार हे।
(4)
बंशी बजावय मोहना,बइठे कदम के डार मा।
सुन तान आवयँ गोपिका,जमुना नदी के पार मा।
सुध-बुध भुलयँ अउ झूम जयँ,धुन मा सबो रम जायँ जी।
बिनती करयँ कर जोर के,सरलुग खड़े बजवायँ जी।
रचनाकार - श्री मनीराम साहू
(1)
तैं नइ थकच तैं नइ रुकच,रइथच गड़े गा खेत तैं
दिनभर अँड़े जम्मो बुता,करथच लगाके चेत तैं।
तोला कहयँ दाता सबो,धरती म हच भगवान तैं।
परमारथी हच देंवता,रखथच सबो के ध्यान तैं।
(2)
भोले भला करथच तहीं,दाता तहीं संसार के।
देथच सबो सुख ला ग तैं,झोली भरे दुख टार के।
आये हववँ महुँ हा शरन,पूरो बबा तैं आस ला।
हँव मैं भजत तोला जपत,झन टोरबे बिस्वास ला।
(3)
छिन-छिन जपव हिरदे रखव, दसरथ तनय अवधेश ला।
श्री राम जी हा मेटही,जम्मो हमर कल्लेश ला।
दाता उही दुख सब हरय ,जग जीव पालनहार हे।
भव ले लगाही पार वो,बस नाम ओकर सार हे।
(4)
बंशी बजावय मोहना,बइठे कदम के डार मा।
सुन तान आवयँ गोपिका,जमुना नदी के पार मा।
सुध-बुध भुलयँ अउ झूम जयँ,धुन मा सबो रम जायँ जी।
बिनती करयँ कर जोर के,सरलुग खड़े बजवायँ जी।
रचनाकार - श्री मनीराम साहू
बधाई हो भाई जी
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर हरिगीतिका छंद के सृजन हे भाई मनी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
वाह्ह भैया।सुन्दर लेखनी ल नमन।बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना मनी भाई
ReplyDeleteगुरुदेव ला सादर पयलगी अउ आप सबला अंतस ले धन्यवाद
ReplyDeleteअलग अलग भाव उपर आधारित शानदार हरिगीतिका बधाई ।रचनाकार मनी राम साहू जी को कोटिशः बधाई ।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार हरिगीतिका छंद भैया।बधाई अउ शुभकामना
ReplyDeleteबधाई।बहुत बढ़िया हरिगीतिका छंद सृजन करे हव मनीराम जी।।
ReplyDeleteबधाई।बहुत बढ़िया हरिगीतिका छंद सृजन करे हव मनीराम जी।।
ReplyDeleteवाह मितान जी आनन्द आगे
ReplyDeleteवाह मितान जी आनन्द आगे
ReplyDeleteबधाई साहू जी सुग्घर हरिगीतिका।वाह
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन सर।सादर बधाई
ReplyDeleteभगवान एती मानथन पर ख्याल ओकर नइ करन।
ReplyDeleteजानके घर के समस्या ध्यान ओकर नइ रखन।।
लद जथे करजा मा जानव फेर हो जाथे मरन।
टँग जथे फाँसी म भैया देखके हम चुप रथन।।
बहुत सुंदर रचना मनीराम जी....सादर बधाई
वाह्ह्ह्ह्ह् भइया बड़ सुग्घर हरिगीतिका
ReplyDeleteसुघ्घर रचना बर बधाई भैया।।
ReplyDeleteमनी भईया सुघ्घर , बधाई हो
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