उल्लाला छंद - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान
काठी के नेवता
कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक ।
बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।।
टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो डोकरी ।
मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।।
अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा ।
हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।।
रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा ।
सजे धजे मटकत रहिस, मारत जे हा शान गा ।।
देख देख ये बात ला, मैं हा सोचंव बात गा।
मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा।
अपने काठी के खबर, मैं हा आज पठोत हंव।
जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।
रचनाकार - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान
नवागढ़, बेमेतरा
छत्तीसगढ़
काठी के नेवता
कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक ।
बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।।
टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो डोकरी ।
मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।।
अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा ।
हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।।
रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा ।
सजे धजे मटकत रहिस, मारत जे हा शान गा ।।
देख देख ये बात ला, मैं हा सोचंव बात गा।
मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा।
अपने काठी के खबर, मैं हा आज पठोत हंव।
जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।
रचनाकार - श्री रमेश कुमार सिंह चौहान
नवागढ़, बेमेतरा
छत्तीसगढ़
शाश्वत सत्य लिए आपके उल्लाला ,बधाई सर
ReplyDeleteवाहःहः भाई सूरज ला दीपक के प्रणाम हे
ReplyDeleteवाह्ह् वाह्ह रमेश भैया आपके रचना पढके मन भाव ले भर जथे।
ReplyDeleteबडे़ भैया जी, बहुतेच सुग्घर उल्लाला।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर उल्लाला छंद लिखे हव ,रमेश भैया।बधाई अउ शुभकामना ।
ReplyDeleteसुग्घर उल्लाला छंद चौहान जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteजीवन के अंतिम सत्य , वाह्ह्ह्ह्ह् भइया
ReplyDeleteउल्लाला हे ज्ञान के। गनती के दिन प्रान के।।
ReplyDeleteप्रेम प्रीत ला बाँट लौ। अपनो बर दिन छाँट लौ।।
बहुत सुंदर उल्लाला छंद भाई...तहे दिल से बधाई... आपला