रोला छन्द - श्री दिलीप कुमार वर्मा
दारू
राजा होथे रंक,नसा के ये चक्कर मा।
पूँजी सबो सिराय,लगे आगी घर-घर मा।
करथे तन ला ख़ाक,सचरथे सबो बिमारी।
जल्दी आवय काल,बिखरथे लइका नारी।।1।।
दारू तन मा जाय,असर करथे बड़ भारी।
पीने वाला मान,छोड़थे दुनिया दारी।
मनखे होय अचेत,कहे ओ आनी बानी।
थोरिक नही लिहाज,करय अपने मन मानी।।2।।
दारू के ये रंग,चढे जब मनखे ऊपर।
उड़य हवा के संग,समझ हीरो गा सूपर।
सुनय नहीं ओ बात,जात अपने दिखलाथे।
उतरय दारू रंग,लहुट घर रोवत आथे।।3।।
पी ये नइ हच तँय,नसा तोला पी यत हे।
तोरे तन ला खाय,मजा मा ओ जीयत हे।
दारू छोड़व आज,काल जिनगी मिल जाही।
हरियाही तन काल,ख़ुशी हो सुख ला पाही।।4।।
रचनाकार श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
नशा नाश के जड़ हवे।बड़ सुघ्घर रोला छंद दिलीप भैया ।बधाई!!
ReplyDeleteआभार पात्रे जी।
Deleteशानदार रोला सर जी
ReplyDeleteअभार वर्मा जी।
Deleteनशा नाश के जड़ हवे।बड़ सुघ्घर रोला छंद दिलीप भैया ।बधाई!!
ReplyDeleteदारू के नुकसान ला बतावत ,सुग्घर रोला छंद,गुरुदेव दिलीप वर्मा जी।बधाई।
ReplyDeleteआभार वर्मा जी।
Deleteशानदार रोला सर जी
ReplyDeleteशानदार रोला सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद साहू जी
Deleteसिरतोन दारु हमर बर नसकान करइया जिनिस आय,बहुतेच सुग्घर रोला छंद वर्मा जी।
ReplyDeleteसिरतोन दारु हमर बर नसकान करइया जिनिस आय,बहुतेच सुग्घर रोला छंद वर्मा जी।
ReplyDeleteआभार साहूजी।
Deleteबहुत सुग्घर रोला छंद में रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद ज्ञानु जी।
Deleteबहुत सुग्घर रोला छंद में रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteसुग्घर सीख देवत रोला छन्द सर जी वाह्ह्ह्ह्ह्
ReplyDeleteधन्यवाद दुर्गाशंकर जी।
Deleteवाह वाह दिलीप वर्मा जी। दारु जइसे सामाजिक बुराई ला विषय बना के सुग्घर शिक्षाप्रद रोला के सिरजन करे हव। हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteधन्यवाद बादल भैया।
ReplyDeleteअब्बड़ सुघ्घर रोला सृजन हे दिलीप भाई जी
ReplyDeleteबधाई हो
बड़ सुग्घर रोला छंद वर्मा सर जी।
ReplyDeleteसुघ्घर रोला छंद लिखे हव दिलीप भाई बधाई हो
ReplyDeleteसुघ्घर रोला भईया जी
ReplyDeleteसुघ्घर रोला भईया जी
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