चौपई छन्द - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बइगा
चौपई छंद ( बइगा )
मोला तें असने झन जान,पकड़ौ मँय हर मरी मसान।
रतिहा जावँव मँय समसान,मोर भूत ले हे पहिचान।1।
मँय बइगा हँव ताबड़ तोड़,भूत भागथे पटकू छोड़।
टोन्ही रहिथे हाँथे जोड़,मोर आज भी धरथे गोड़।।2।।
जंतर मंतर हे भरमार,जानत हावँव पूरा सार।
दुखिया मन के दुख ला टार,करथँव मँय हर भूत सँहार।।3।।
देख पिसाचिन हर घबराय,ये बइगा हर काबर आय।
छाँव देख गा जाय लुकाय,पकड़ाये अड़बड़ पछताय।।4।।
भोले बाबा के हे देन,जादू मंतर के हे चेन।
साधक जे गुरुवन से लेन,बढ़िया बइगा बनथे तेन ।।5।।
असने गा कहिथे सब जान,मोर कहे ला सिरतो मान।
जाबे ऊहाँ छुटे परान,जल्दी पहुँचाही समसान।।6।।
ओ ढोंगी बइगा हे जान,जेहर माँगय पइसा दान।
कुकरी बकरा तें झन लान,अइसन ऊपर लाठी तान।।7।।
जादू ले नइ लइका होय,काबर मनखे पइसा खोय।
टोना जादू कुछ ना होय,पाखण्डी बाबा सब कोय।।8।।
येखर मन ले दुरिहा राख,येकर थोरिक नइ हे साख।
काबर छानत हाबच ख़ाक,डाक्टर के घर ला तँय झाँक।।9।।
करही ओहर बने निदान,ओ भुइयाँ के भगवान।
जेन बिमारी तेला लान,सब के ओला हे पहिचान।।10।।
भूत प्रेत ना मरी मसान,टोना जादू नइ हे जान।
हरे बिमारी सिरतो मान,डाक्टर करथे तुरत निदान।।11।।
नो हँव बइगा में हर जान,देवत हँव तोला मँय ज्ञान।
कहना अब तँय मोरो मान,झन रहिबे तँय हर अनजान।12।।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
बइगा
चौपई छंद ( बइगा )
मोला तें असने झन जान,पकड़ौ मँय हर मरी मसान।
रतिहा जावँव मँय समसान,मोर भूत ले हे पहिचान।1।
मँय बइगा हँव ताबड़ तोड़,भूत भागथे पटकू छोड़।
टोन्ही रहिथे हाँथे जोड़,मोर आज भी धरथे गोड़।।2।।
जंतर मंतर हे भरमार,जानत हावँव पूरा सार।
दुखिया मन के दुख ला टार,करथँव मँय हर भूत सँहार।।3।।
देख पिसाचिन हर घबराय,ये बइगा हर काबर आय।
छाँव देख गा जाय लुकाय,पकड़ाये अड़बड़ पछताय।।4।।
भोले बाबा के हे देन,जादू मंतर के हे चेन।
साधक जे गुरुवन से लेन,बढ़िया बइगा बनथे तेन ।।5।।
असने गा कहिथे सब जान,मोर कहे ला सिरतो मान।
जाबे ऊहाँ छुटे परान,जल्दी पहुँचाही समसान।।6।।
ओ ढोंगी बइगा हे जान,जेहर माँगय पइसा दान।
कुकरी बकरा तें झन लान,अइसन ऊपर लाठी तान।।7।।
जादू ले नइ लइका होय,काबर मनखे पइसा खोय।
टोना जादू कुछ ना होय,पाखण्डी बाबा सब कोय।।8।।
येखर मन ले दुरिहा राख,येकर थोरिक नइ हे साख।
काबर छानत हाबच ख़ाक,डाक्टर के घर ला तँय झाँक।।9।।
करही ओहर बने निदान,ओ भुइयाँ के भगवान।
जेन बिमारी तेला लान,सब के ओला हे पहिचान।।10।।
भूत प्रेत ना मरी मसान,टोना जादू नइ हे जान।
हरे बिमारी सिरतो मान,डाक्टर करथे तुरत निदान।।11।।
नो हँव बइगा में हर जान,देवत हँव तोला मँय ज्ञान।
कहना अब तँय मोरो मान,झन रहिबे तँय हर अनजान।12।।
रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
बहुँत बहुँत धन्यवाद गुरुदेव। आपमन के आशीर्वाद ले अउ बने बने छंद के रचना होवत रइही।
ReplyDeleteप्रणाम।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद राजेश जी।
Deleteभाई जी ये बईगा तो छा गए हे
ReplyDeleteअपन आप से छंद ईजाद होइस हे
बहुत बढ़िया चौपई छंद भाई
धन्यवाद दीदी।
Deleteअबड़ सुघ्घर भाव अउ प्रेरणदायक सिरजाय हव भईया
ReplyDeleteधन्यवादधन्यवाद निषाद जी।
Deleteबहुत बढ़िया बइगा(चौपई)छंद हे बड़े भइया।।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बइगा(चौपई)छंद हे बड़े भइया।।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बइगा(चौपई)छंद हे बड़े भइया।।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
Deleteवाह्ह वाह्ह्ह् दिलीप जी ।समाज ला सन्देश देवत सारगर्भित चौपाई बर बहुत बहुत शुभकामना ।
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteबेहतरीन चौपई छन्द बर दिलीप जी ला कोटिशः बधाई ।
ReplyDeleteबहुत शानदार चौपई छंद,गुरुदेव ।बधाईहो
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
ReplyDeleteवढ़िया चौपई छंद!बधाई
ReplyDeleteवढ़िया चौपई छंद!बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुघ्घर सर जी
ReplyDeleteजोरदार हवै दिलीप भैया
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