मत्तगयंद सवैय्या छंद - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
(1)
सावन के महिना बड़ पावन,काँवरिया बन पुन्न कमाबो।
फोंक नदी म नहावत खोरत मंदिर जाय के फूल चढ़ाबो।
काँवर मा जल बोह के आवत जावत शंकर के गुन गाबो।
देत असीस सदाशिव शंकर हाँथ लमावत माँगत आबो।
(2)
खेत भरे न भरे मन मोर तभो बरसात के बूँद थिरागे।
का मन भीतर हे बदरा बिन कारन काबर मूड़ पिरागे।
काबर काम बिगाड़त हावस का बरसा जल तोर सिरागे।
कारन आज बता प्रभु काबर मोर किसान के भाग रिसागे।
(3)
हे गुरुदेव कृपा करहू मन मूरख मोर सुजान करौ जी।
काजर ले करिया मन हे गुरु उज्जर आप समान करौ जी।
अंतस हे कठवा पथरा गुरु मंत्र ले चेतन प्रान करौ जी।
लौह सही तन जंग लगे गुरु पारस आप धियान करौ जी।
(4)
पैजनिया ल बजावत रेंगत खोर गली ल जगावय गोरी।
हाँसत बोलत ठोलत जावत हे कनिहा लचकावय गोरी।
सेंट लगे महँगा कपड़ा तन अब्बड़ हे ममहावय गोरी।
सुग्घर हे सम्हरे पहिरे मुँह देखत मा सरमावय गोरी।
(5)
तीज तिहार लगे मनभावन जे बड़ पावन रीत धरे हे।
द्वार सुहावन लागत हे जस आज नता जग जीत डरे हे।
गाँव गली मुसकावत हे बहिनी मन के शुभ पाँव परे हे।
आज सबे हिरदे खुश हे बिटिया बर सुग्घर भाव भरे हे।
(6)
आज पधारत हे गणराज चलौ मिलके करबो अगुवानी।
नाँव गणेश गजानन जेखर मातु हवै गउरी महरानी।
कातिक जेखर बन्धु लगे अउ बाप सदाशिव औघट दानी।
झाँझ मृदंग धरौ मनुवा सँग श्रीफल हाथ चरू भर पानी।
रचनाकार - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
ग्राम - गोरखपुर (कवर्धा) जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
(1)
सावन के महिना बड़ पावन,काँवरिया बन पुन्न कमाबो।
फोंक नदी म नहावत खोरत मंदिर जाय के फूल चढ़ाबो।
काँवर मा जल बोह के आवत जावत शंकर के गुन गाबो।
देत असीस सदाशिव शंकर हाँथ लमावत माँगत आबो।
(2)
खेत भरे न भरे मन मोर तभो बरसात के बूँद थिरागे।
का मन भीतर हे बदरा बिन कारन काबर मूड़ पिरागे।
काबर काम बिगाड़त हावस का बरसा जल तोर सिरागे।
कारन आज बता प्रभु काबर मोर किसान के भाग रिसागे।
(3)
हे गुरुदेव कृपा करहू मन मूरख मोर सुजान करौ जी।
काजर ले करिया मन हे गुरु उज्जर आप समान करौ जी।
अंतस हे कठवा पथरा गुरु मंत्र ले चेतन प्रान करौ जी।
लौह सही तन जंग लगे गुरु पारस आप धियान करौ जी।
(4)
पैजनिया ल बजावत रेंगत खोर गली ल जगावय गोरी।
हाँसत बोलत ठोलत जावत हे कनिहा लचकावय गोरी।
सेंट लगे महँगा कपड़ा तन अब्बड़ हे ममहावय गोरी।
सुग्घर हे सम्हरे पहिरे मुँह देखत मा सरमावय गोरी।
(5)
तीज तिहार लगे मनभावन जे बड़ पावन रीत धरे हे।
द्वार सुहावन लागत हे जस आज नता जग जीत डरे हे।
गाँव गली मुसकावत हे बहिनी मन के शुभ पाँव परे हे।
आज सबे हिरदे खुश हे बिटिया बर सुग्घर भाव भरे हे।
(6)
आज पधारत हे गणराज चलौ मिलके करबो अगुवानी।
नाँव गणेश गजानन जेखर मातु हवै गउरी महरानी।
कातिक जेखर बन्धु लगे अउ बाप सदाशिव औघट दानी।
झाँझ मृदंग धरौ मनुवा सँग श्रीफल हाथ चरू भर पानी।
रचनाकार - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
ग्राम - गोरखपुर (कवर्धा) जिला - कबीरधाम
छत्तीसगढ़
वाह वाह।लाजवाब मत्तगयंद सवैया लिखे हव ,सुखदेव भैया आनंद आगे ।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteवाह वाह।लाजवाब मत्तगयंद सवैया लिखे हव ,सुखदेव भैया आनंद आगे ।बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय मोहन भैया
Deleteभाई सुखदेव अति सुंदर नाम के अनुसार सुख देने वाला सृजन करे हव भाई
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
श्रद्धेय गुरुदेव श्री निगम जी के कोटिश चरण वंदन जेखर कृपा ले आज हमू मन आप जैसे विदुषी मन के सराहना पावत हन।बहुत बहुत धन्यवाद दीदी प्रणाम।
Deleteबहुत बढ़िया अहिलेश्वर जी।
ReplyDeleteसुग्घर सवैया।
बहुत बहुत धन्यवाद कन्हैया सर जी
Deleteवाह्ह्ह् वाह्ह्ह्।बहुतेच सुग्घर मत्तगयनद सवैया रचे हव अहिलेश्वर जी। भाव अउ विधान देखते बनत हे।छत्तीसगढ़ी छन्द अउ आपके यश सदा बाढ़ते राहय।
ReplyDeleteसादर प्रणाम बादल भैया सदैव आशिर्वाद मिलत रहै।
Deleteबधाई हो सुखदेव भाई।। बड़ सुघ्घर सवैया।।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय पात्रे भैया
Deleteप्रणाम
बड़ सुघ्घर सवैया बड़े भैया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद खैरझिटिया सर जी
Deleteजोरदार सवैया अहिलेश्वर जी
ReplyDeleteजोरदार सवैया अहिलेश्वर जी
ReplyDeleteसादर धन्यवाद अजय "अमृतांशु" सर जी
Deleteवाह्ह्ह्ह्ह् भइया शानदार जानदार सवैया
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह् भइया शानदार जानदार सवैया
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद दुर्गा शंकर सर जी।
Deleteसुखदेव भईया बहुँत सुघ्घर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अतनु सर जी।
Deleteबहुत बढ़िया लिखे हव सुखदेव भाईई
ReplyDeleteसराहना बर सादर आभार दीदी।
Deleteज़बरदस्त भाई अहिलेश्वर...चलन दौ...अइसने...
ReplyDeleteआशिर्वाद बने रहै आदरणीय गुप्ता भैया।
Deleteसादर धन्यवाद।
बेहतरीन सृजन सर ।सादर बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन सर ।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ज्ञानु सर जी
Deleteबहुत बढ़िया सृजन भैया जी बधाई आप ला
ReplyDelete