किरीट सवैया - इंजी.गजानंद पात्रे
1
पाँव बढे सत मारग मा अउ हाथ बढ़े सत कारज खातिर।
देखव लूटत जी अब चोर फिरे पहिचान करौ ठग शातिर।
पाप छले बनके छलिया जग मा बइठे चुपके अब माहिर।
काबर हौ सिधवा बनके अब लूटत हे सब अस्मत बाहिर।।
2
लौ चतवार बने सुख मारग ला झन झाकव जी मुँह दूसर।
देख हवे जग पाप भरे तन कूटत हाथ धरे अब मूसर।।
हे अँधियार भरे मन मा करिया घुघवा नरियावय घूसर।
जाँगर राहत जोर दया धन बाँट मया झन सो तँय फूसर।।
3
तैं करिया करिया रहिगे नइ तो बरसे मन झूमर बादर।
रोवत हे सब माथ धरे अउ तैं हस सोवत ओढ़ ग चादर।।
मैं कइसे तन चीर दिखावव बाजत हे मन मा दुख मांदर।
तैं झन जी बनबे लबरा नइ तो कइसे करही जग आदर।।
4
पालनहार तहीं जग के अब तो भर दे सबके सुख सागर।
देख परे सब जंगल बंजर खेत- सुखावत हे तन जाँगर।।
रोवत हे मन अंतस हा बइठे ठलहा बइला अउ नाँगर।
हे बदरा अब तो बरसा जल होय ख़ुशी सब दू मन आगर।।
5
भेद करै लड़की लड़का करिया करिया मन ओकर हावय।
जानव जेकर से दुनिया सिरजे ममता रुप मातु कहावय।।
कोख रखै जब नौ महिना सहिके दुख ला हमला जग लावय।
हे महिमा तिरिया जग वेद पुरान घलो गुनगान ल गावय।।
6
बोझ हवे लड़की कहिके कुछ चाहत हे लड़का जनमे घर।
मानय जी लड़का घर के कुल ता लड़की बनही धन दूसर।
सोंच रखै अइसे मनखे कब होवय जी इखरो मन साक्षर।
आवव मान बढ़ाइन जी मिलके बस जानव एक बरोबर।।
7
हे लछमी दुरगा जइसे जग मा अब ये अबला न कहावय।
हाथ धरे कहुँ खप्पर ला तब दुश्मन के सिर काट मढ़ावय।।
ऊँच हिमालय मा चढ़गे अउ चाँद धरे पग मान बढ़ावय।
पूजत हे जग नौ दिन ला महिमा सुनके मन खूब सुहावय।।
रचनाकार - इंजी.गजानंद पात्रे
1
पाँव बढे सत मारग मा अउ हाथ बढ़े सत कारज खातिर।
देखव लूटत जी अब चोर फिरे पहिचान करौ ठग शातिर।
पाप छले बनके छलिया जग मा बइठे चुपके अब माहिर।
काबर हौ सिधवा बनके अब लूटत हे सब अस्मत बाहिर।।
2
लौ चतवार बने सुख मारग ला झन झाकव जी मुँह दूसर।
देख हवे जग पाप भरे तन कूटत हाथ धरे अब मूसर।।
हे अँधियार भरे मन मा करिया घुघवा नरियावय घूसर।
जाँगर राहत जोर दया धन बाँट मया झन सो तँय फूसर।।
3
तैं करिया करिया रहिगे नइ तो बरसे मन झूमर बादर।
रोवत हे सब माथ धरे अउ तैं हस सोवत ओढ़ ग चादर।।
मैं कइसे तन चीर दिखावव बाजत हे मन मा दुख मांदर।
तैं झन जी बनबे लबरा नइ तो कइसे करही जग आदर।।
4
पालनहार तहीं जग के अब तो भर दे सबके सुख सागर।
देख परे सब जंगल बंजर खेत- सुखावत हे तन जाँगर।।
रोवत हे मन अंतस हा बइठे ठलहा बइला अउ नाँगर।
हे बदरा अब तो बरसा जल होय ख़ुशी सब दू मन आगर।।
5
भेद करै लड़की लड़का करिया करिया मन ओकर हावय।
जानव जेकर से दुनिया सिरजे ममता रुप मातु कहावय।।
कोख रखै जब नौ महिना सहिके दुख ला हमला जग लावय।
हे महिमा तिरिया जग वेद पुरान घलो गुनगान ल गावय।।
6
बोझ हवे लड़की कहिके कुछ चाहत हे लड़का जनमे घर।
मानय जी लड़का घर के कुल ता लड़की बनही धन दूसर।
सोंच रखै अइसे मनखे कब होवय जी इखरो मन साक्षर।
आवव मान बढ़ाइन जी मिलके बस जानव एक बरोबर।।
7
हे लछमी दुरगा जइसे जग मा अब ये अबला न कहावय।
हाथ धरे कहुँ खप्पर ला तब दुश्मन के सिर काट मढ़ावय।।
ऊँच हिमालय मा चढ़गे अउ चाँद धरे पग मान बढ़ावय।
पूजत हे जग नौ दिन ला महिमा सुनके मन खूब सुहावय।।
रचनाकार - इंजी.गजानंद पात्रे
अलख जगाय के काम करे हव पात्रे सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी।
Deleteअलख जगाय के काम करे हव पात्रे सर जी
ReplyDeleteबेहतरीन किरीट सवैया छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन किरीट सवैया छंद मा रचना सर।सादर बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद सादर आभार।
Deleteधन्यवाद सादर आभार।
Deleteबहुत शानदार विषय चयन कर लाजवाब किरीट सवैया लिखे हावन ,गजानंद भैया।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत शानदार विषय चयन कर लाजवाब किरीट सवैया लिखे हावन ,गजानंद भैया।बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteधन्यवाद वर्मा जी।
Deleteधन्यवाद वर्मा जी।
Deleteशानदार सवैया भइया वाह्ह्ह्ह्ह्
ReplyDeleteधन्यवाद संगी।
Deleteधन्यवाद संगी।
Deleteबहुते बढ़िया किरीट सवैया पात्रे जी।
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर
ReplyDeleteबहुँत सुघ्घर
ReplyDeleteबहुतेच बढ़िया सर जी
ReplyDeleteबहुतेच बढ़िया सर जी
ReplyDeleteवाहःहः पात्रे भैया बहुत सुघ्घर सुघ्घर सवैया रचे हव
ReplyDeleteबधाई हो
आप सबो ला बहुत बहुत धन्यवाद।।
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